माता-पिता और बच्चे का रिश्ता दुनिया के सबसे अनमोल रिश्तों में से एक है। बचपन में पेरेंट्स अपने बच्चे की हर छोटी-बड़ी जरूरतों का ख्याल रखते हैं, उन्हें प्यार और सुरक्षा देते हैं। इसी तरह वृद्धावस्था में माता-पिता की देखभाल करना बच्चों की नैतिक और सामाजिक जिम्मेदारी मानी जाती है, लेकिन कई बार बच्चे अपने बूढ़े माता-पिता की उपेक्षा करने लगते हैं। वे अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ लेते हैं और उन्हें अकेला छोड़ देते हैं। ऐसी स्थिति में कई बार बुजुर्ग माता-पिता खुद को असहाय महसूस करते हैं। उन्हें ये नहीं पता होता है कि उनके पास कुछ ऐसे कानूनी अधिकार हैं, जिनकी मदद से वे अपने बच्चों से मासिक भरण-पोषण की मांग कर सकते हैं। इसके अलावा वे अपनी संपत्ति वापस लेने का कानूनी अधिकार भी रखते हैं। तो चलिए, आज ‘जानें अपने अधिकार’ कॉलम में हम बात करेंगे कि सीनियर सिटिजन की मदद के लिए देश में कौन से कानून हैं? साथ ही जानेंगे कि- एक्सपर्ट: एडवोकेट सरोज कुमार सिंह, सुप्रीम कोर्ट, नई दिल्ली सवाल- भारतीय कानून में सीनियर सिटिजन की क्या परिभाषा है? जवाब- भारतीय कानून के मुताबिक, 60 वर्ष या उससे अधिक उम्र के व्यक्ति को सीनियर सिटिजन माना जाता है। वहीं 80 वर्ष या उससे अधिक उम्र के व्यक्ति को अति वरिष्ठ नागरिक यानी सुपर सीनियर सिटिजन माना जाता है। सवाल- बुजुर्गों के साथ बढ़ती दुर्व्यवहार की घटनाओं के पीछे की वजह क्या है? जवाब- एडवोकेट सरोज कुमार सिंह बताते हैं कि सीनियर सिटिजन के साथ दुर्व्यवहार का बड़ा कारण उनका फाइनेंशियल रूप से सशक्त न होना है। अक्सर बुजुर्गों के साथ होने वाली इन घटनाओं के पीछे उनके सगे-संबंधी ही होते हैं। कुछ मामलों में खराब पारिवारिक रिश्ते या सीनियर सिटिजन का लंबे समय से किसी गंभीर बीमारी से जूझना भी एक वजह है। सवाल- बुजुर्गों के लिए घरेलू हिंसा क्या है? जवाब- बुजुर्गों के लिए घरेलू हिंसा केवल मारपीट नहीं होती है। इसमें कई तरह की प्रताड़नाएं शामिल होती हैं, जो शारीरिक, मानसिक, आर्थिक या भावनात्मक हो सकती हैं। भारत में घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 और सीनियर सिटिजन एक्ट, 2007 दोनों मिलकर बुजुर्गों को इन अत्याचारों से कानूनी सुरक्षा देते हैं। सवाल- भारत में सीनियर सिटिजन या बुजुर्ग पेरेंट्स को लेकर क्या कानून है? जवाब- भारतीय कानून में सीनियर सिटिजन के लिए मेंटेनेंस एंड वेलफेयर ऑफ पेरेंट्स एंड सीनियर सिटिजन एक्ट, 2007 बनाया गया है। साथ ही नेशनल पॉलिसी फॉर ओल्डर पर्सन भी बनाई गई है। इन दोनों में सीनियर सिटिजन की सभी जरूरतें जैसे फाइनेंशियल सिक्योरिटी, मेडिकल सिक्योरिटी, भरण-पोषण के लिए खर्च और सुरक्षा को कवर किया गया है। इसके अलावा सभी पर्सनल कानून (हिंदू एडॉप्शन लॉ, मुस्लिम पर्सनल लॉ, क्रिश्चियन लॉ या पारसी लॉ) में सीनियर सिटिजन का ख्याल करने का प्रावधान है। हालांकि समस्या यह है कि अधिकांश सीनियर सिटिजन को इन कानूनों के बारे में जानकारी नहीं होती है। इसकी वजह से बहुत से लोग अपने अधिकार से वंचित रह जाते हैं। सवाल- मेंटेनेंस एंड वेलफेयर और पेरेंट्स एंड सीनियर सिटिजन एक्ट, 2007 क्या कहता है? जवाब- मेंटेनेंस एंड वेलफेयर और पेरेंट्स एंड सीनियर सिटिजन एक्ट 2007 के मुताबिक, कोई भी ऐसा वरिष्ठ नागरिक जो अपनी कमाई से अपनी देखभाल करने में सक्षम न हो, उसकी मदद करना उसके परिवार (बेटा, बेटी बहू, दामाद या पोते-पोती) का फर्ज है। इस एक्ट के तहत रिश्तेदारों को भी कवर किया गया है। यहां रिश्तेदार का अर्थ उस व्यक्ति से है, जो किसी भी वरिष्ठ नागरिक की मृत्यु के बाद उनकी चल या अचल संपत्ति का वारिस होगा। अगर किसी भी वरिष्ठ नागरिक के बच्चे, बहू, दामाद उसकी देखभाल करने में अक्षम रहते हैं तो इसके खिलाफ शिकायत की जा सकती है और उनसे गुजारा भत्ता की मांग की जा सकती है। इसकी लिमिट 10 हजार रूपए महीना तय की गई है। सवाल- क्या सीनियर सिटिजन देखभाल न करने पर अपने बच्चों को दी हुई संपत्ति वापस ले सकते हैं? जवाब- मेंटेनेंस एंड वेलफेयर और पेरेंट्स एंड सीनियर सिटिजन एक्ट 2007 के मुताबिक, अगर सीनियर सिटिजन को उनके बच्चे या अन्य उत्तराधिकारी ठीक से केयर नहीं कर रहे हैं तो वे अपनी दी हुई संपत्ति को वापस लेने ले सकते हैं। संपत्ति वापस लेने के लिए सीनियर सिटिजन ट्राइब्यूनल (न्यायाधिकरण) में याचिका दायर कर सकते हैं। कोर्ट संपत्ति का ट्रांसफर कैंसिल कर सकता है और संपत्ति माता-पिता को लौटा सकता है। सवाल- अगर बच्चे मानसिक या शारीरिक रूप से असमर्थ हैं, तब क्या यह कानून लागू होगा? जवाब- अगर संतान स्वयं मानसिक या शारीरिक रूप से सक्षम नहीं है तो यह कानून उन पर लागू नहीं होगा। ऐसी स्थिति में संपत्ति को वापस लेने के बजाय, सरकार या किसी ट्रस्ट के माध्यम से बच्चे या सीनियर सिटिजन की देखभाल की जा सकती है। सवाल- अगर बच्चा माता-पिता की देखभाल करने से इनकार कर दे तो उसे क्या सजा हो सकती है? जवाब- अगर कोई बेटा या बहू बुजुर्ग माता-पिता के साथ दुर्व्यवहार करती है तो यह घरेलू हिंसा के अंतर्गत आता है। कोर्ट संतान को घर छोड़ने का आदेश दे सकता है। अपराध साबित होने पर 3 साल तक की जेल हो सकती है। सवाल- क्या केवल सगे बेटे ही माता-पिता की देखभाल के लिए बाध्य हैं? जवाब- इस कानून के तहत माता-पिता अपने बेटे या बेटी दोनों से भरण-पोषण की मांग कर सकते हैं। अगर माता-पिता की कोई संतान नहीं है लेकिन कोई अन्य उत्तराधिकारी (जैसे बहू-दामाद) उनकी संपत्ति का इस्तेमाल कर रहा है तो वे भी माता-पिता की देखभाल के लिए बाध्य हो सकते हैं। नीचे दिए पॉइंट्स से समझिए कि माता-पिता एवं वरिष्ठ नागरिक भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007 किन लोगों पर यह कानून लागू होता है। .................ये आलेख भी पढ़िएजानें अपने अधिकार- लोन चुकाने में देरी:रिकवरी एजेंट कर रहे परेशान, जानिए कहां और कैसे करें शिकायत, क्या है RBI की गाइडलाइंस कुछ किस्त टूटते ही बैंक रिकवरी एजेंट्स के फोन आने लगते हैं। ये एजेंट्स कई बार गलत तरीके से बात करते हैं। गाली-गलौज और धमकियां देकर परेशान करते हैं। कई बार ये एजेंट्स घर के दरवाजे पर आकर बुरा बर्ताव करते हैं। पूरा आलेख पढ़िए...