अतंरिक्ष एक ऐसी जगह है, जहां पर अब इंसानों की पहुंच हो चुकी है. भले ही वहां पर गुरुत्वाकर्षण नहीं है, ऑक्सीजन नहीं है, लेकिन एस्ट्रोनॉट्स मिशन के लिए पूरी सुरक्षा और इंतजाम के साथ वहां पहुंचते हैं और अपने मिशन को सफलतापूर्वक अंजाम देते हैं. हालांकि अंतरिक्ष में सब कुछ धरती की तरह आसान नहीं है कि कोई भी जरूरत पड़ने पर चीजें आसानी से मिल जाएं. ऐसे में सोचने की बात है कि अगर अंतरिक्ष में कोई अंतरिक्ष यात्री बीमार हो जाता है, तो क्या होता है? क्या नासा उसे तुरंत वहां से धरती पर वापस बुला लेता है, या फिर किसी तरह से स्पेस में ही उसका इलाज होता है. चलिए समझते हैं कि अंतरिक्ष में नासा की रेस्क्यू टीम कैसे काम करती है.क्या अंतरिक्ष में हो सकते हैं बीमारअंतरिक्ष कोई पिकनिक स्पॉट तो है नहीं और दूसरी चीज वहां पर भी इंसान ही जाते हैं, रोबोट नहीं. ऐसे में कभी न कभी कुछ न कुछ तो बीमारी हो ही सकती है. अंतरिक्ष में रेडिएशन, माइक्रोग्रैविटी और तमाम चुनौतियां हैं, जिनको कि धरती से बैठकर हम नहीं समझ सकते हैं. ऐसे में अंतरिक्ष में यात्रियों को भेजने से पहले नासा उनकी कड़ी ट्रेनिंग कराता है. अंतरिक्ष में एकदम से माहौल बदलने पर इंसानों को सिरदर्द, उल्टी जैसी हल्की-फुल्की चीजें हो सकती हैं. इसके अलावा कोई चोट लगना या फिर हार्ट अटैक या अपेंडिसाइटिस को सकता है. अगर वहां ऐसा हुआ तो इतनी दूरी पर इलाज का सिस्टम पूरी तरह से अलग है.अंतरिक्ष में कैसे दी जाती है दवाईअंतरिक्ष में एक मिनी हॉस्पिटल जैसा सेटअप मौजूद रहता है, इसको हेल्थ मेंटेनेंस सिस्टम कहा जाता है. इसमें कई सारी दवाइयां, बैंडेज, इजेंक्शन और बेसिक टूल्स जैसे कि बीपी, शुगर मॉनिटर की मशीनें, अल्ट्रासाउंड और डेंटल किट तक शामिल होती है. हर एस्ट्रोनॉट को करीब 40 घंटे की मेडिकल ट्रेनिंग दी जाती है, इसके जरिए लोग सीखते हैं कि कैसे इंजेक्शन देना है या किसी छोटी चोट का इलाज करना है. वहां पर एक दो क्रू मेंबर्स को क्रू मेडिकल ऑफिसर बनाया जाता है, जो कि थोड़ा ज्यादा ट्रेंड होते हैं. लेकिन अगर बीमारी गंभीर हो जैसे कि हार्ट अटैक या कोई फ्रैक्चर तब क्या होता है?रेस्क्यू मिशननासा पर कोई सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टर तो नहीं होता है, लेकिन ह्मूस्टन में मिशन कंट्रोल सेंटर है, जहां पर 24*7 स्पेस मेडिसिन में स्पेशल ट्रेनिंग वाले डॉक्टर्स मौजूद रहते हैं. ये लोग वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए एस्ट्रोनॉट्स की मदद करते हैं. वो बताते हैं कि मरीज को क्या करना है, ऑक्सीजन देना है या फिर दवा देनी है. अगर इन सबसे भी मदद नहीं मिलती है, तो फिर अगला कदम होता है उसको वहां से वापस धरती पर लेकर आना, यानि इमरजेंसी इवैक्युएशन. ऐसी परिस्थिति में ISS पर एक या दो स्पेसक्राफ्ट डॉक किए रहते हैं. ये लाइफबोट की तरीके से काम करते हैं. इमरजेंसी की परिस्थिति में बीमार एस्ट्रोनॉट को इसमें बैठाकर धरती पर लेकर आते हैं.यह भी पढ़ें: भारत या फिर बांग्लादेश, ट्रिब्युनल के फैसले के बाद शेख हसीना को कहां होगी 6 महीने की जेल?