किताब- काश मुझे यह पता होता (बेस्टसेलर किताब ‘व्हाय हैज नो बडी टोल्ड मी दिस बिफोर’ का अनुवाद) लेखिका- डॉ. जूली स्मिथ अनुवाद- यामिनी रामपल्लीवार प्रकाशक- मंजुल प्रकाशन मूल्य- 499 रुपए ‘काश मुझे यह पता होता’ मशहूर क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. जूली स्मिथ द्वारा लिखी गई एक सेल्फ-हेल्प बुक है। यह किताब हमें ऐसी लाइफ स्किल्स सिखाती है, जिनकी मदद से हम अपनी जिंदगी के मुश्किल दौर में भी आगे बढ़ सकते हैं। खास बात ये है कि डॉ. जूली स्मिथ ने इसमें कई चैप्टर की शुरुआत रोचक कहानियों से की है और इनके जरिए छोटी-छोटी चीजें सिखाई हैं। इससे मेंटल हेल्थ से जुड़ी इन जानकारियों को समझना और अपनी जिंदगी में अपनाना आसान हो जाता है। इस किताब का हर चैप्टर एक मिनी-गाइड की तरह है। आप कहीं से भी शुरू कर सकते हैं, कहीं पर भी खत्म कर सकते हैं। किताब क्या कहती है? आपने कभी तो सुना होगा कि किताबें सबसे अच्छी दोस्त होती हैं। ‘काश मुझे यह पता होता’ किताब भी ऐसी ही दोस्त है, जो मुश्किल वक्त में कंधे पर हाथ रखकर कहती है, “चिंता मत कर, मैं हूं न!" जीवन में तनाव, चिंता, उदासी, आत्मविश्वास की कमी, दुख या भय कोई भी स्थिति आए। इनका सामना कैसे करना है, यह इसकी कंप्लीट गाइड बुक है। ये किताब क्यों है इतनी खास? जिंदगी में कई बार ऐसा होता है जब सब कुछ ठहर सा जाता है। मूड ऐसा होता है कि बस अंधेरे कमरे में छुप जाओ, डर इतना लगता है कि अपने हर कदम पर शक होता है और ओवरथिंकिंग इतनी बढ़ जाती है कि दिमाग काम करना बंद कर देता है। ये किताब इन सब मुश्किलों को एक-एक करके सुलझाती है। वो भी इतने आसान तरीके से कि आपको लगेगा, "अरे, ये तो मैं भी कर सकता हूं।" ये किताब सबके लिए उस मिनी साइकोलॉजिस्ट की तरह है, जो बिना मोटी फीस लिए जिंदगी को पटरी पर लाने के टिप्स देती है। इसमें 7 बड़े भावनात्मक पहलू हैं, जो हम सब कभी-न-कभी झेलते हैं। इन्हें यह किताब कैसे सुलझाती है, देखिए- अब इन सबको थोड़ा और विस्तार से समझिए, क्योंकि ये सिर्फ किताब की बातें नहीं हैं, जिंदगी की हकीकत हैं। 1. मूड खराब है तो छोटे प्लान बनाओ कभी-कभी सुबह उठते ही ऐसा लगता है कि आज का दिन ढेर सारी टेंशन का पिटारा है। इस डर से कई बार तो बिस्तर से उठने का मन भी नहीं होता है। ऐसा लगता है कि आज छोड़ो, कल देखेंगे। किताब कहती है कि मूड को ठीक करने के लिए बड़े-बड़े प्लान मत बनाओ। छोटे-छोटे कदम ही काफी हैं। क्या करें? सुबह 5 मिनट बाहर खली हवा में टहलो, एक गिलास पानी पी लो या किसी दोस्त को कॉल या मैसेज कर लो। 2. मोटिवेशन खत्म हो गया है तो लें आदत का सहारा कुछ दिन ऐसे होते हैं जब कोई काम शुरू करने का मन ही नहीं करता है। अगर कुछ लिखने बैठे हैं तो दिमाग में कोई ख्याल ही नहीं आता है। कोई काम कर रहे हैं तो बीच में ही छोड़ देने का मन करता है, लेकिन डॉ. जूली लिखती हैं कि मोटिवेशन कोई जादू की छड़ी नहीं है। ये बॉडी मसल की तरह होती है। जितना वर्कआउट करो, उतनी मजबूत होती है। क्या करें? जब मोटिवेशन खत्म हो गया हो तो खुद से ये सवाल करें कि अभी आपके लिए सबसे जरूरी चीज क्या है? इसके लिए जरूरी काम इतने बार दोहराएं कि वह आदत बन जाए। किसी आदत को बिना मोटिवेशन के भी पूरा किया जा सकता है। 3. सेल्फ डाउट हो तो अपने बेस्ट फ्रेंड बनो हम सब अपने आपको अक्सर कोसते रहते हैं- "मैं तो फेलियर हूं," "मुझसे कुछ नहीं होगा।" ज्यादातर लोगों के साथ ऐसा होता है। ये किताब कहती है कि खुद से वैसे बात करो जैसे अपने बेस्ट फ्रेंड से करते हो। क्या करें? गलती होने पर खुद से कहो, "चलो, कोई बात नहीं। अगली बार कमाल कर दूंगा।" कमियों को पहचानकर उन्हें ठीक करें। 4. ओवरथिंकिंग का भूत लॉजिक से भगाओ रात को सोने से पहले दिमाग में सवालों का मेला लग जाता है। "कल क्या होगा?" "अगर बॉस नाराज हो गया तो?" इस ओवरथिंकिंग के चक्कर में लोग देर रात तक जागते रहते हैं। किताब कहती है कि अपने सोचने के तरीके को चैलेंज करो। क्या करें? खुद से सवाल पूछो कि, "क्या ये सोच सच है? इसके पीछे कोई सबूत है क्या?" 5. दुख से कैसे उबरना है तो इसे गले लगाओ जब कोई करीबी चला जाता है या कोई सपना टूटता है तो लगता है कि जिंदगी खत्म सी हो गई है। लोग कई दिन तक उदास बने रहते हैं। किताब कहती है कि दुख को दबाने से वो और बड़ा होता है, उसे महसूस करो। क्या करें? अपने दर्द को वक्त दो- रो लो, किसी से बात कर लो या कुछ लिख डालो। 6. डर को दोस्त बनाओ, ये इतना बुरा नहीं इस दुनिया के सबसे अमीर और सबसे ताकतवर शख्स को भी डर लगता है। कोई नया प्रोजेक्ट शुरू करने से पहले सबके पसीने छूटते हैं, लेकिन किताब कहती है कि डर को भगाने की कोशिश मत करो। उसे समझो और साथ लेकर चलो। क्या करें? डर को छोटे-छोटे टुकड़ों में बांटो और प्लानिंग के साथ एक-एक कदम आगे बढ़ाओ। जैसे-जैसे काम आगे बढ़ेगा डर भी कम होता जाएगा। 7. जिंदगी का रोलरकोस्टर आए तो सीट बेल्ट बांध लो दुनिया के हर शख्स की जिंदगी में उतार-चढ़ाव आते हैं। मान लीजिए किसी की जॉब छूट गई है और लग रहा है कि अब सब खत्म हो गया है, लेकिन किताब कहती है कि हर मुश्किल वक्त एक सबक की तरह होता है- धैर्य रखो। अपनी कमियों कपर काम करो और उन्हें ठीक करके पहले से बेहतर करो। क्या करें? उम्मीद का दामन थामे रखो और छोटे-छोटे लक्ष्य बनाओ। नए रास्ते खुलने लगेंगे। इसे क्यों पढ़ें? आसान और मजेदार: किताब को पढ़ते समय लगता है, जैसे कोई दोस्त गप्पे मार रहा हो। तुरंत काम करने वाले टिप्स दिए गए हैं, आज पढ़ो, आज आजमाओ। सबके लिए कुछ न कुछ: स्टूडेंट, पैरेंट्स, ऑफिस जाने वाले लोग- सबके लिए फिट है। भटकी जिंदगी को नक्शा दिखाती है किताब यह किताब जिंदगी का वो नक्शा है, जो जिंदगी में भटके हुए राहगीरों को सही रास्ता बताता है। ये किताब आपको बताती है कि मुश्किलें तो आएंगी, लेकिन आपके भीतर उन्हें हराने की ताकत भी है। अगर आप भी कभी सोचते हैं, "काश कोई मुझे पहले ये समझा देता," तो ये किताब आपके लिए ही लिखी गई है।.......................ये बुक रिव्यू भी पढ़ें... बुक रिव्यू- खुद को साबित करना नहीं, स्वीकारना जरूरी: सबको खुश करने के चक्कर में खुद को न खोएं, जिंदगी अपनी शर्तों पर जिएं यह किताब हमें सिखाती है कि कैसे हम अपनी जिंदगी में असली खुशी और मानसिक सुकून हासिल कर सकते हैं। इसकी खास बात यह है कि यह एक युवक और एक दार्शनिक के बीच संवाद शैली में लिखी गई है। पूरा रिव्यू पढ़िए...