Jagdeep Dhankhar on Emergency: इमरजेंसी के 50 साल के मौके पर बीजेपी देश भर में संविधान हत्या दिवस के नाम पर अलग-अलग कार्यक्रम कर रही है. इसी मौके पर देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने एक कार्यक्रम के दौरान आपातकाल का जिक्र करते हुए कहा कि आपातकाल लागू करना लोकतंत्र को नष्ट करने के लिए भूकंप से कम नहीं था.कुमाऊं विश्वविद्यालय नैनीताल में आयोजित स्वर्ण जयंती समारोह के दौरान कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि 50 वर्ष पहले इसी दिन विश्व का सबसे पुराना सबसे बड़ा और अब सबसे जीवंत लोकतंत्र एक गंभीर संकट से गुजरा. यह संकट अप्रत्याशित था जैसे कि लोकतंत्र को नष्ट कर देने वाला एक भूकंप, यह था आपातकाल थोपना. वह रात अंधेरी थी, कैबिनेट को किनारे कर दिया गया था. 'तत्कालीन राष्ट्रपति ने भी संवैधानिक मूल्यों को कुचल दिया'धनखड़ ने इमरजेंसी को लेकर कहा कि उस समय की प्रधानमंत्री, जो उच्च न्यायालय के एक प्रतिकूल निर्णय का सामना कर रही थीं ने पूरे राष्ट्र की उपेक्षा कर, व्यक्तिगत हित के लिए निर्णय लिया. तत्कालीन राष्ट्रपति ने भी संवैधानिक मूल्यों को कुचलते हुए आपातकाल की घोषणा पर हस्ताक्षर कर दिए. इसके बाद जो 21–22 महीनों का कालखंड आया, वह लोकतंत्र के लिए अत्यंत अशांत और अकल्पनीय था. यह हमारे लोकतंत्र का सबसे अंधकारमय काल था.आपातकाल का जिक्र करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि उस दौरान एक लाख चालीस हजार लोगों को जेलों में डाल दिया गया. उन्हें न्याय प्रणाली तक कोई पहुंच नहीं मिली. वे अपने मौलिक अधिकारों की रक्षा नहीं कर सके. नौ उच्च न्यायालयों ने साहस दिखाया और कहा आपातकाल हो या न हो मौलिक अधिकार स्थगित नहीं किए जा सकते. हर नागरिक के पास न्यायिक हस्तक्षेप के जरिए अपने अधिकारों को प्राप्त करने का अधिकार है.'आपातकाल के दौरान देश की सर्वोच्च अदालत धूमिल हो गई'उपराष्ट्रपति ने कहा कि देश में आपातकाल के दौरान देश की सर्वोच्च अदालत धूमिल हो गई और उसने 9 हाईकोर्ट के निर्णयों को पलट दिया. उसने दो बातें तय की, कि आपातकाल की घोषणा कार्यपालिका का निर्णय है, यह न्यायिक समीक्षा के अधीन नहीं है. यह भी कहा कि आपातकाल की अवधि भी कार्यपालिका ही तय करेगी. साथ ही नागरिकों के पास आपातकाल के दौरान कोई मौलिक अधिकार नहीं होंगे. यह जनता के लिए एक बड़ा झटका था.‘संविधान हत्या दिवस’ का जिक्र करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि युवाओं को इस पर चिंतन करना चाहिए क्योंकि जब तक वे इसके बारे में जानेंगे नहीं, समझेंगे नहीं. क्या हुआ था प्रेस के साथ? किन लोगों को जेल में डाला गया? वे ही बाद में इस देश के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति बनेंगे. यही कारण है कि युवाओं को जागरूक बनाना जरूरी है. बहुत सोच-समझकर आज की सरकार ने तय किया कि इस दिन को ‘संविधान हत्या दिवस’ के रूप में मनाया जाएगा.ये भी पढ़ें:नीदरलैंड पहुंचकर ट्रंप ने फिर लिया भारत-PAK सीजफायर का क्रेडिट, बोले- मैंने दी थी ट्रेड डील की धमकी