सक्सेस मंत्रा- इंपैथी: जब दूसरे का दुख-दर्द अपना हो जाए:इंपैथी ही है माइक्रोसॉफ्ट की सफलता का राज, बॉस बनना है तो सीखें इंपैथी

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साल 2014 में सत्य नडेला जब माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ बने, तब कंपनी दुनिया की सबसे ताकतवर टेक कंपनियों में से एक थी। तकनीकी रूप से बेहतरीन, रेवेन्यू भी बढ़ रहा था, लेकिन नडेला को कुछ खटक रहा था। उन्होंने ध्यान से देखा तो पाया कि कंपनी में लोग बस प्रतिस्पर्धा में जुटे हुए थे। वे एक-दूसरे की भावनाओं और परिस्थियों को अनदेखा कर रहे थे। नडेला ने इसे बदलने की ठानी। टीम लीडर्स से लेकर इंजीनियर्स तक सबको ‘इंपैथी’ के मूल्य अपनाने के लिए प्रेरित किया। धीरे-धीरे माइक्रोसॉफ्ट का कल्चर बदलने लगा। लोग एक-दूसरे की मदद करने लगे, गलतियों पर तानों की जगह सॉल्यूशन देने लगे। इससे कंपनी के प्रोडक्ट्स भी बदले। अब वे सिर्फ फंक्शनल नहीं, बल्कि इमोशनली कनेक्टेड बनने लगे। लोगों को अपनापन सा महसूस होने लगा। इस सोच ने माइक्रोसॉफ्ट को एक इनोवेटिव कंपनी के साथ इमोशनली इंटेलिजेंट कंपनी भी बना दिया। आज के सक्सेस मंत्रा कॉलम का टॉपिक है इंपैथी यानी समानुभूति। हम समझेंगे कि लीडरशिप और सक्सेस के लिए इंपैथी सबसे अंडररेटेड लेकिन जरूरी स्किल है। इंपैथी कैसे हमारी सफलता के सफर को आसान बनाती है और इसे अपनी जिंदगी में कैसे उतार सकते हैं। इंपैथी और सिंपैथी में फर्क है जब कोई दुखी होता है तो हम अक्सर कहते हैं कि "मुझे तुम्हारे लिए बुरा लग रहा है।" यह सिंपैथी है, जिसे हिंदी में सहानुभूति कहते हैं। वहीं इंपैथी इससे एक कदम आगे की बात है यानी समानुभूति। इसमें हम खुद से पूछते हैं कि "अगर मैं इसकी जगह होता, तो क्या महसूस करता?" इंपैथी में सिर्फ देखना नहीं, बल्कि महसूस करना होता है। यह एहसास हमें दूसरे के दर्द से जोड़ता है, जैसे हम उसके साथ चल रहे हों। यही असली इंसानियत है। नडेला ने बेटे की बीमारी से सीखी इंपैथी भारतीय मूल के सत्य नडेला ने एक इंटरव्यू में बताया था कि उनके बेटे की गंभीर न्यूरोलॉजिकल बीमारी ने उन्हें इंपैथी का मतलब सिखाया था। उन्होंने एक पिता होने के नाते नर्स, डॉक्टर और केयरगिवर्स के नजरिए को समझने की कोशिश की। इससे उनके मन में लोगों के प्रति इंपैथी जागी। यहीं से उनके लीडरशिप स्टाइल में भी बदलाव आया। इंपैथी क्यों जरूरी है? हार्वर्ड बिजनेस स्कूल की एक रिसर्च के मुताबिक, इंपैथेटिक लीडर्स के साथ कोई टीम ज्यादा लॉयल, मेहनती और इनोवेटिव होती है। इसका मतलब है कि अगर लीडर टीम के प्रति इंपैथेटिक है तो टीम वर्कर्स को ज्यादा अपनापन महसूस होता है। उन्हें लगता है कि उनका टीम लीडर उनकी हर भावना को समझता है और उनके साथ खड़ा हुआ है। इसलिए टीम के टारगेट और प्रोजेक्ट्स को सफल बनाना उनका काम है। इंपैथी कैसे विकसित करें? किसी को सलाह देने से पहले, उसे समझने की कोशिश इंपैथी है। यह तब पैदा होती है, जब हम किसी की बात बिना समझे, टोके या जज किए पूरे ध्यान से सुनते हैं। इसके लिए सिंपल तरीका ये है कि खुद से सवाल करें कि अगर मैं इसकी जगह होता तो मुझे कैसा महसूस होता? इस तरह के सवाल से हम किसी की परिस्थिति को उसके नजरिए से देख पाते हैं। इंपैथी विकसित करने का पूरा तरीका, ग्राफिक में देखिए- इंपैथी के क्या फायदे हैं? इंपैथी का मतलब सिर्फ दूसरों को अच्छा महसूस करवाना नहीं है, यह खुद को भी गहराई से समझने की शुरुआत है। जब हम किसी की भावनाओं को सच में महसूस करते हैं तो हमारी बातचीत में अपनापन आता है, रिश्ते मजबूत होते हैं और तनाव का सॉल्यूशन मिल जाता है। इंपैथी हमें सिर्फ अच्छा श्रोता नहीं बनाती, बल्कि एक बेहतर इंसान, बेहतर दोस्त और बेहतर लीडर भी बनाती है। जब हम दूसरों को समझते हैं तो धीरे-धीरे हम खुद को भी समझने लगते हैं। यही बदलाव हमारे अंदर इमोशनल इंटेलिजेंस, समझदारी और सेल्फ-अवेयरनेस लाता है और यही तो हर सफल और संतुलित जीवन की नींव है। इंपैथी मतलब ये नहीं कि आप सहमत भी हों इंपैथी का मतलब यह नहीं कि आप हर बात से सहमत हों या कमजोर बन जाएं। यह सिर्फ दिल की नहीं, दिमाग की भी समझदारी है। इंपैथी दूसरों के लिए नहीं, खुद को बेहतर इंसान बनाने का जरिया है। जब हम किसी चीज को बेहतर ढंग से समझते हैं, तब ही सही फैसले ले पाते हैं और रिश्ते मजबूत बनते हैं। इंपैथी को लेकर लोगों में जो भ्रांतियां हैं, वे गलत हैं। ग्राफिक में देखिए- बहुत ज्यादा इंपैथी क्यों नुकसानदायक हो सकती है? अगर आप हर किसी का दुख तुरंत अपने ऊपर ले लेते हैं तो धीरे-धीरे आप मन से, शरीर से और सोच से थकने लगते हैं। ये वैसा ही है जैसे हर रोज किसी और का भारी बैग उठाना। यह थोड़ी देर तो ठीक है, लेकिन रोज-रोज उठाते रहेंगे तो आपकी कमर झुकने लगेगी। बहुत ज्यादा इंपैथी रखने से हम अपनी भावनाओं में उलझ जाते हैं। जब कोई रो रहा हो तो हम भी रोने लगते हैं। जब किसी को दुख हो तो हम खुद भी दुखी हो जाते हैं। इससे दो बड़ी दिक्कतें होती हैं। कई बार लोग ज्यादा इंपैथी में दूसरों की तकलीफ अपने दिल पर इतना अधिक ले लेते हैं कि खुद की मानसिक सेहत बिगड़ जाती है। उन्हें नींद नहीं आती, चिंता बनी रहती है और हर वक्त लगता है कि उन्हें ही सब कुछ ठीक करना है। .................सक्सेस मंत्रा कॉलम का ये आलेख भी पढ़िए सक्सेस मंत्रा- ब्रह्मांड से शरीर तक, सबकुछ अनुशासन से चलता: सफलता का सबसे बड़ा राज डिसिप्लिन, महान लोगों की तरह अपनाएं अनुशासन के 5 तरीके दिन और रात का बदलना हो या सूरज का एक तय गति से हर दिन उगना-डूबना। पृथ्वी का अपनी धुरी पर घूमना हो या ऋतुओं का आना-जाना... पूरी प्रकृति एक अदृश्य अनुशासन से बंधी हुई है। पूरा आलेख पढ़िए...