सुप्रीम कोर्ट बोला-संरक्षक लुटेरा बन जाए, तो सजा देना जरूरी:ITBP जवान की बर्खास्तगी को बरकरार रखा; 20 साल पहले कैश लूट का दोषी था

Wait 5 sec.

सुप्रीम कोर्ट ने 20 साल पुराने मामले में फैसला सुनाते हुए कहा कि जब संरक्षक ही लुटेरा बन जाए जो उसे सजा देना जरूरी हो जाता है। इसी के साथ कोर्ट ने भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) के उस फैसले को बरकरार रखा है, जिसने कैश लूट मामले में एक कॉन्स्टेबल को बर्खास्त कर दिया था। मामला साल 2005 का है, कॉन्स्टेबल को जवानों की सैलरी के लिए लाए गए कैश बॉक्स की सुरक्षा की जिम्मेदारी दी गई थी। बाद में कॉन्स्टेबल ने बॉक्स का ताला तोड़कर कैश निकाल लिया था। ITBP ने उसे नौकरी से निकाल दिया था। बाद में जवान उत्तराखंड हाईकोर्ट पहुंचा, जहां कोर्ट ने ITBP से अपने फैसले पर पुनर्विचार करने को कहा था। फिर मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की बेंच ने शुक्रवार को उत्तराखंड हाईकोर्ट के आदेश को खारिज करते हुए कहा कहा कि, इस तरह के अपराधों में दोषी पाए गए कॉन्स्टेबल को उचित दंड देना अनुशासनात्मक प्राधिकारी का कर्तव्य है। कोर्ट ने कहा- जब बात सुरक्षाबलों की हो, तो जिम्मेदारी बढ़ जाती हैसुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि, जहां जिम्मेदारी की बात हो तो अर्धसैनिक बलों में इसकी भावना और अधिक होनी चाहिए। जहां अनुशासन, नैतिकता, निष्ठा, सेवा के प्रति समर्पण और विश्वसनीयता नौकरी के लिए आवश्यक हैं। कोर्ट ने कहा कि कॉन्स्टेबल जागेश्वर सिंह एक अनुशासित अर्धसैनिक बल का सदस्य था, जो एक संवेदनशील सीमा क्षेत्र में तैनात था। उसे कैश बॉक्स की सुरक्षा की जिम्मेदारी दी गई थी। हालांकि, उसने अपने विश्वास और भरोसे को दरकिनार कर कैश बॉक्स को तोड़ दिया। अब जानिए पूरा मामला क्या हैकॉन्स्टेबल जागेश्वर सिंह को 30 नवंबर, 1990 को ITBP में भर्ती किया गया था और वह 4-5 जुलाई, 2005 की मध्यरात्रि को कोटे में संतरी के रूप में ड्यूटी कर रहा था, जहां जवानों को सैलरी के रूप में दिए जाने वाले लाखों रुपए से भरे कैश बॉक्स रखे हुए थे। सिंह ने कथित तौर पर ताला तोड़ दिया और नकदी ले ली, इसके बाद कैश बॉक्स को कोटे से लगभग 200 गज की दूरी पर छिपा दिया और पोस्ट से भाग गया। जब घटना कंपनी कमांडर को पता चली तो उन्होंने तुरंत आस-पास के इलाके के साथ-साथ उत्तरकाशी की ओर जाने वाले वाहन की भी तलाशी ली, लेकिन आरोपी भाग निकला। कंपनी कमांडर ने तब मामले की सूचना बटालियन के कमांडिंग ऑफिसर को दी और बाद में 6 जुलाई, 2005 को कॉन्स्टेबल के खिलाफ FIR दर्ज की गई। FIR के बाद कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी हुई, जिसमें जवान दोषी पाया गया। गिरफ्तार होने पर जवान ने अपराध कबूल कर लिया जिसके बाद उसे 14 नवंबर, 2005 को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया। बाद में जवान ने हाईकोर्ट में बर्खास्तगी के फैसले को चुनौती दी और दावा किया कि उसका बयान दबाव में दिया गया था। हालांकि, हाईकोर्ट उसके इस तर्क से सहमत नहीं था कि उसने दबाव में बयान दिया था, लेकिन उसने ITBP से सेवा से बर्खास्तगी की सजा के अपने फैसले पर पुनर्विचार करने को कहा था। ------------------- ये खबर भी पढ़ें... पहलगाम हमले की न्यायिक जांच से सुप्रीम कोर्ट का इनकार, कहा- सुरक्षाबलों का मनोबल गिराना चाहते हैं क्या, ऐसी अर्जियां मत लाइए सुप्रीम कोर्ट ने पहलगाम में हुए आतंकी हमले की न्यायिक जांच का आदेश देने से इनकार कर दिया है। इसके साथ ही जस्टिस सूर्यकांत और एनके सिंह की बेंच ने याचिकाकर्ता को फटकार भी लगाई। कोर्ट ने कहा कि यह संवेदनशील समय है। पूरा देश एकजुट होकर आतंकवाद के खिलाफ खड़ा है। क्या आप सिक्योरिटी फोर्स का मनोबल गिराना चाहते हैं। ऐसी याचिकाएं कोर्ट में मत लाइए। पढ़ें पूरी खबर...