गुरु पूर्णिमा का दिन हमारे जीवन में मार्गदर्शक शक्तियों का सम्मान करने के लिए समर्पित है. उस दिन जब चन्द्रमा उगता है तो कई लोग यह सोचने लगते हैं: कैसे कोई सच्चा गुरु पा सकता है? इस अंतर्दृष्टि वाले कॉलम में, आध्यात्मिक गुरु, वैश्विक रहस्यवादी और दूरदर्शी, सद्गुरु गुरु को खोजने की हमारी सामान्य धारणाओं को तोड़ते हैं और एक गहन मार्ग उजागर करते हैं, जो चुनाव में नहीं, बल्कि लालसा में निहित है.सद्गुरु: गुरु खोजने की कोशिश मत करें क्योंकि अगर आप किसी को चुनते हैं, तो आप किस तरह का गुरु चुनेंगे? जिस तरह के गुरु के साथ आप सहज हों, जिस तरह का गुरु आपको पसंद हो. कृपया गौर करें कि आप कैसे किसी चीज़ को पसंद करते हैं और कैसे किसी चीज़ को नापसंद करते हैं. जो चीज़ आपके अहंकार को सहारा देती है, वह आपको अच्छी लगती है. जो चीज़ आपके अहंकार को परेशान करती है, आपको अच्छी नहीं लगती. अगर आप दोस्त बनाते हैं, तो आप किस तरह के दोस्त बनाते हैं? कोई ऐसा जो आपके अहंकार को बढ़ाए. अगर कोई रोज़ाना आपके अहंकार को चोट पहुँचाता है, तो वह आपका दुश्मन बन जाता है. तो अगर कोई गुरु आपके अहंकार को बढ़ाता है, तो वह आपके लिए अच्छा गुरु नहीं होगा.गुरु एक खास तरह का दोस्त होता है जो रोज़ाना आपके अहंकार को चोट पहुँचाता है, जो हर दिन आपका टायर पंचर करके छोड़ता है. तो अपने गुरु को मत चुनें, बस अपनी लालसा को तीव्र करें. आप बस अपनी लालसा को बहुत गहरा बनाएं. इतना गहरा कि आपके शरीर की हर कोशिका चिल्ला उठे, “मैं जानना चाहता हूँ.” वह आपको ढूँढ़ लेंगे. वह लगातार दुनिया को स्कैन कर रहे हैं और देख रहे हैं कि वैसी लालसा कहाँ है. ढूँढ़ना मुश्किल है, पता है?तो जब आप कहते हैं कि मैंने बहुत से गुरु देखे हैं, तो आपने लोगों को देखा होगा लेकिन आपने किसी गुरु को नहीं देखा. अब अगर आपने मुझे देखा है, तो इसका मतलब यह नहीं है कि मैं आपका गुरु हूँ. क्योंकि अगर आप सिर्फ़ मेरे शब्दों को सुन रहे हैं और आपको वह अच्छे लगते हैं, और मैं थोड़ा ज़्यादा समझ में आता हुआ लगता हूँ, जितना आप खुद से समझ पाते, तो वह गुरु नहीं हैं. जब तक आप उनकी मौजूदगी से पूरी तरह अभिभूत नहीं हो जाते जो कि पूरी तरह से अतार्किक है, और आपके अंदर हर चीज कहती है, "चलो यहाँ से भाग चलते हैं" लेकिन आप कभी भागेंगे नहीं, इसका मतलब है कि आपको अपना गुरु मिल गया है.आपका तर्क कहता है "चलो यहाँ से चले जाते हैं." आपको यह पसंद नहीं है लेकिन आप जा नहीं पाते. अगर आप उनके साथ बैठते हैं, तो आपको बहुत ख़तरा महसूस होता है. आप भाग जाना चाहते हैं, लेकिन आपके अंदर की हर चीज किसी तरह वहाँ रहना चाहती है. जब आप उस स्थिति में पहुँचते हैं तो आपको अपना गुरु मिल गया है. तब तक यह ठीक है, आप उनके साथ हों क्योंकि आपको तर्क पसंद है, आपको खाना पसंद है या जो भी आपको पसंद है. वह ठीक है लेकिन यह मत मानिए कि आपको अपना गुरु मिल गया है या आपको गुरु खोजना है. कभी भी गुरु की तलाश मत करें. बस अपनी लालसा को इस तरह तीव्र कर दें कि आपके शरीर की हर कोशिका जानने के लिए चीख उठे. तब यह घटित होगा.[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.]