शीला भट्ट का कॉलम:ट्रम्प की मनमानी ने हमारे लिए नई मुश्किलें खड़ी की

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2001 में गुजरात के मुख्यमंत्री बनने के बाद से नरेंद्र मोदी ने ज्यादातर जीत ही देखी है। संकट की अधिकतर परिस्थितियों पर से उन्होंने नियंत्रण नहीं खोया। लेकिन ट्रम्प अब मोदी के लिए मुश्किलें खड़ी कर रहे हैं। मोदी को 11 सालों से जानने के बाद हम यह दावा तो कर सकते हैं कि वे इससे भी बाहर आ जाएंगे, लेकिन सवाल है कि वे ऐसा कैसे करेंगे? कारण, इस बार वे ऐसी चुनौती का सामना कर रहे हैं, जिसका समाधान उनके हाथों में नहीं है। ऐसे तो डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत ही नहीं, दुनिया के तमाम देशों को चौंकाया है, लेकिन भारत के लिए उनका रुख ज्यादा सख्त है। दावा किया जा रहा है कि ट्रम्प भारत से इसलिए नाराज हैं, क्योंकि भारत ने नोबेल शांति पुरस्कार पाने के उनके दावे को प्रायोजित करने पर सहमति नहीं दी। इसके अलावा, ट्रम्प भारत द्वारा रूस से सस्ते दामों पर तेल आयात करने पर भी आपत्ति जता रहे हैं। लेकिन ट्रम्प का यह दावा गलत है कि भारत अप्रत्यक्ष रूप से यूक्रेन के साथ युद्ध जारी रखने में रूस की मदद कर रहा है।ट्रम्प ने भारतीय वस्तुओं पर 50% टैरिफ लगाया है और आने वाले वर्षों में एच1बी वीसा की इस वक्त चल रही व्यवस्था को खत्म करना चाहते हैं। लेकिन हालात हमारी सोच से कहीं ज्यादा गंभीर हैं। वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल तीन दिवसीय यात्रा पर अमेरिका गए थे। लेकिन उनके अमेरिकी समकक्ष हॉवर्ड लुटनिक ने उनसे मुलाकात तक नहीं की। ट्रम्प और उनकी सरकार भारत को तब तक परेशान और आहत करने पर तुली हुई है, जब तक मोदी ट्रम्प की शर्तों पर सहमत नहीं हो जाते। अगर भारत-अमेरिका व्यापार-वार्ता फलीभूत नहीं होती है, तो ट्रम्प के भारत-विरोधी फैसले जल्द ही प्रभावी हो जाएंगे। इसका हमारी अर्थव्यवस्था पर असर पड़ना तय है। नौकरियां छिन सकती हैं और विदेशी मुद्रा भंडार कम हो सकता है। जीएसटी सुधारों ने मोदी सरकार की इस मुश्किल दौर से उबरने में कुछ मदद की है। लेकिन दिवाली के बाद इसका उत्साह भी ठंडा पड़ जाएगा। इससे यह भी पता चलता है कि चुनाव से पहले बिहार में 75 लाख महिलाओं को 10-10 हजार रुपए देने की योजना क्यों शुरू की। ढाका और काठमांडू में युवा पीढ़ी के सड़क-विद्रोहों ने भी चिंताएं बढ़ाई हैं। इसकी तुलना में लेह में युवाओं का विद्रोह यकीनन सीमित रहा, अलबत्ता वहां भी विरोध-प्रदर्शनों में चार की मौत हो गई। यह ऐसी चेतावनी है, जिसे सरकार नजरअंदाज नहीं कर सकती। मोदी का तीसरा कार्यकाल अब तक सुचारु नहीं रहा है। पहलगाम में आतंकी हमला, ट्रम्प की धमकाऊ कूटनीति, उच्च टैरिफ और अमेरिकी वीसा व्यवस्था में बदलाव का भारत पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ेगा। ट्रम्प प्रशासन का पाकिस्तान से दोस्ताना व्यवहार और उनके भारत-विरोधी फैसले सीधे तौर पर हमें ललकार रहे हैं। अभी तक तो मोदी ने स्थिति को संभालने में अनुकरणीय धैर्य दिखाया है, लेकिन सरकार के पास समय की कमी है क्योंकि घरेलू राजनीति भी अस्थिर है। 2024 में कांग्रेस ने अपनी सीटों की संख्या दोगुनी कर ली और भाजपा को बहुमत खोने की मनोवैज्ञानिक क्ष​ति हुई। इस सबके बावजूद पार्टी अपने मतदाताओं को एकजुट करने की कोशिश चतुराई से कर रही है। लेकिन अब, घरेलू राजनीति में भी ट्रम्प फैक्टर अहम हो गया है। मोदी ट्रम्प की मांगों के आगे झुक नहीं सकते, वहीं भारत को अमेरिकी बाजार के अलावा रातोंरात अपने सामान बेचने का कोई विकल्प भी नहीं मिल सकता। कपड़ा, दवा, सॉफ्टवेयर तकनीक और हीरे जैसे श्रम-प्रधान क्षेत्रों में राष्ट्रीय संकट की आशंका है। चीन ट्रम्प की मनमानी से अप्रभावित रह सकता है, क्योंकि उसकी अर्थव्यवस्था 19 ट्रिलियन डॉलर की है, जबकि भारत की लगभग 4 ट्रिलियन डॉलर की ही है। ये भारत के लिए चुनौतीपूर्ण समय है, प्रधानमंत्री के लिए तो और ज्यादा। अब भारत की घरेलू राजनीति में भी ट्रम्प फैक्टर अहम हो गया है। मोदी ट्रम्प की मांगों के आगे झुक नहीं सकते, वहीं भारत को अमेरिकी बाजार के अलावा रातोंरात अपने सामान बेचने का कोई विकल्प भी नहीं मिल सकता।(ये लेखिका के अपने विचार हैं)