अपमान सभी का होता है। कभी हम किसी का अपमान कर जाते हैं और दूसरों के द्वारा तो अपमानित होते ही रहते हैं। अपमान का भी जवाब दिया जा सकता है। दो तरीके हैं। पहला, सम्मान प्रकट कर दें। और दूसरा, जिस घटना के कारण अपमान हुआ, उसको सफलता में बदल दें। यह भी अपनी बेइज्जती का बड़ा जवाब बन जाएगा। क्योंकि, जैसे ही कोई हमारा अपमान करता है तो करने वाला तो अहंकार से प्रेरित था ही, हमारे भी अहंकार को चोट लगती है। और अगर हम अहंकार को सहलाने में ऊर्जा लगाएंगे तो अपमान का जवाब ठीक से नहीं दे पाएंगे। रावण ने अपनी सभा में हनुमान जी का जमकर अपमान किया। हनुमान जी ने दोनों रास्ते अपनाए। पहले तो रावण को सम्मान दिया। सुंदरकांड में उसका वर्णन है। और उसके बाद देखा कि रावण को सम्मान देने का कोई फायदा नहीं है तो उन्होंने लंका जला दी। लंका दहन सफलता के सर्वोच्च मापदंड में गिना जाता है। और रावण को जवाब मिल गया। हम भी अपमान के प्रति ये दो काम कर सकते हैं।