रावण कहा करता था, मैं मदिरा की दुर्गंध मिटा दूंगा। रक्त का रंग लाल से काला कर दूंगा। नदियों का रंग तो उसने रक्त से लाल कर ही दिया था। चूंकि वह उस समय सर्वशक्तिमान था, इसलिए उसने जो चाहा, किया। लेकिन अंतिम दृश्य याद रखें। जिसके इशारे पर मौत नाचती थी, उसको रणांगन में एक वनवासी, तपस्वी अपने बाणों से धूल-धूसरित कर गया। राम जैसे सदाशय व्यक्ति को भी रावण को मृत्यु देनी पड़ी। इस समय हमारी नई पीढ़ी योग्य है पर रावण की तरह आचरण ना करे। हमारे युवा जितनी रिस्पेक्ट नहीं चाहते, उससे ज्यादा रिस्पॉन्स चाहते हैं। और महत्व मिलने की चाहत मनुष्य को गलत मार्ग पर ले जाती है। आज कहा जाता है कि दुनिया में हर साल जो बीस मृत्यु होंगी, उनमें से एक शराब के कारण होगी। जिस भारत में लगातार धार्मिक आयोजन बढ़ रहे हैं, उस देश में महिला और पुरुष शराब भी अधिक संख्या में पीने लग गए हैं। तो विजयादशमी पर विचार करें कि बाहर के रावण को मारने से पहले भीतर के रावण को मुक्ति दे दी जाए।