जब गांधी जी ने तिरंगे को सलामी देने से कर दिया था इनकार, जानें क्यों कही थी यह बात?

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भारत में हर साल 15 अगस्त के दिन आजादी का जश्न मनाया जाता है. इस बार देश अपना 79वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है. अंग्रेजी हुकूमत से मुक्ति के बाद से ये दिन पूरे देशवासियों के लिए बेहद खास है. भारत के इतिहास में आजादी को लेकर कई घटनाएं हैं. एक घटना ये भी है कि एक बार राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भारत के राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे को सलामी देने से इंकार कर दिया था. गांधी जी ने ऐसा क्यों किया, क्या था इसके पीछे का कारण? चलिए जानते हैं. तिरंगे को लेकर हुआ था विवादभारत का राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा आज हमारी शान और गर्व का प्रतीक है. इसमें तीन रंग केसरिया, सफेद और हरा है. बीच में अशोक चक्र देश की एकता, शांति और प्रगति का संदेश देते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि आजादी के समय तिरंगे को लेकर एक बड़ा विवाद हुआ था, जिसमें खुद महात्मा गांधी शामिल थे? गांधी जी ने 1931 में तिरंगे के डिजाइन को अपनी मंजूरी दी थी और इसे कांग्रेस के अधिवेशनों में फहराया जाता था.तिरंगे में बदलाव से गांधी जी की नाराजगीलेकिन 1947 में संविधान सभा ने तिरंगे के डिजाइन में बदलाव का फैसला किया. पिंगली वेंकैया द्वारा डिजाइन किए गए नए तिरंगे में चरखे की जगह सम्राट अशोक के धर्म चक्र को शामिल किया गया. इस बदलाव से गांधी जी बहुत दुखी हुए. उस वक्त गांधी जी लाहौर में थे. संविधान सभा में कुछ गैर-कांग्रेसी सदस्यों ने तर्क दिया कि चरखा कांग्रेस पार्टी का प्रतीक है और राष्ट्रीय ध्वज में इसे शामिल करना उचित नहीं होगा. गांधी जी ने इस बदलाव पर अपनी नाराजगी खुलकर जाहिर की.गांधी जी के मुताबिक चरखे का मतलब उन्होंने कहा, 'मैं इस झंडे को सलामी नहीं दूंगा, जिसमें चरखा नहीं है.' उनका मानना था कि चरखा केवल सूत कातने का उपकरण नहीं. ये ना केवल गरीबों को रोजगार और आमदनी मुहैया करा रहा था बल्कि ये मानवीयता, सादगी और किसी को कष्ट ना देने के अलावा गरीबों और अमीरों के बीच अटूट बंधन का प्रतीक भी था. हालांकि, जवाहरलाल नेहरू और सरदार पटेल ने गांधी जी को समझाया कि अशोक चक्र भी अहिंसा और धर्म का प्रतीक है, जो भारत की प्राचीन संस्कृति को दर्शाता है. आखिरकार, गांधी जी ने इस नए डिजाइन को स्वीकार किया. 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने तिरंगे को भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया और 15 अगस्त 1947 को यह पहली बार स्वतंत्र भारत में लहराया.इसे भी पढ़ें- जब गांधी जी के सामने पहली बार लगे मुर्दाबाद के नारे, प्रार्थना अधूरी छोड़कर चले गए थे बापू