कानून की किस धारा के तहत शादी कराते हैं आर्य समाज मंदिर, ये कितने मान्य?

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हिंदू धर्म में शादी एक पवित्र संस्कार माना जाता है, जो कि सोलह संस्कारों में से एक होता है. यह एक ऐसा बंधन होता है, जिसमें कि दो लोगों को सात जन्म तक साथ निभाने के वचन लेने होते हैं. विवाह महत्वपूर्ण अनुष्ठानों में शामिल होने की वजह से वैदिक मंत्रों और रीति-रिवाजों के द्वारा पूर्ण किया जाता है. लेकिन कुछ लोग शादी में तमाम तरह का दिखावा करने की बजाय सीधे और सिंपल अंजाद में शादी करना पसंद करते हैं. ऐसे में वे आर्य समाज मंदिर से शादी कर लेते हैं. चलिए जानें कि कानून की किस धारा के तहत आर्य समाज मंदिर शादी कराते हैं. क्या है आर्य समाज वैलिडेशन एक्टस्वामी दयानंद सरस्वती के द्वारा आर्य समाज की स्थापना की गई थी. इस समाज के मंदिर होते हैं, जहां पर हिंदू रीति-रिवाज के जरिए शादी संपन्न कराई जाती है. भारत में आर्य समाज की शादी के लिए एक एक्ट भी बनाया गया है, जिसे कि आर्य समाज वैलिडेशन एक्ट 1937 कहा जाता है. यह एक्ट आर्य समाज की शादी की वैधता के संबंध में बताता है. इस अधिनियिम से ही स्पष्ट हो जाता है कि आर्य समाज में की गईं शादियां वैध होती हैं. बस कानून में बताए गए नियम का ठीक से पालन करना चाहिए. क्या कहता है नियमआर्य समाज मूर्ति पूजा में भरोसा नहीं करता है, लेकिन आर्य समाज को हिंदू धर्म का ही अंग माना जाता है. यहां पर शादियां हिंदू वैदिक रिवाज के तहत ही होती हैं. यहां पर पति-पत्नी अग्नि के सात फेरे लेते हैं. जो शर्त हिंदू मैरिज एक्ट 1955 के अंतर्गत दी गई होती है, वही शर्त आर्य समाज मंदिर में शादी करने पर लागू होती है. हिंदू मैरिज एक्ट में किसी भी शादी को करने के लिए पक्षकारों को स्वस्थ चित्त का होना चाहिए, साथ ही साथ उनकी आयु वैध होनी चाहिए, व उनको एक दूसरे का सपिंड (एक ही पूर्वज से संबंधित) नहीं होना चाहिए. आर्य समाज मंदिर में यही शर्त लागू होती है. अमूमन लोग आर्य समाज की शादी जाति प्रथा से बचने के लिए, त्वरित और सादगी पूर्वक अंदाज में करते हैं. यह भी पढ़ें: बुलेट से लेकर बुलडोजर तक, जानें दुनिया के दूसरे देशों को क्या-क्या बेचता है भारत?