Independence Day 2025: 1947 में जब आजादी के दौरान भारत और पाकिस्तान दो मुल्कों का बंटवारा हुआ, तो दोनों देशों की राजनीतिक सीमाएं तो बदल गईं, लेकिन असल चुनौती थी लोगों की बुनियादी जरूरतों को पूरा करना. भारत में तो धीरे-धीरे विकास शुरू हुआ, लेकिन पाकिस्तान में लोगों की बुनियादी जरूरतें खासतौर से बिजली, पानी और सड़क, गरीबी, बेरोजगारी जैसी सुविधाओं के लिए वर्षों तक जूझना पड़ा.पाकिस्तान बनने के काफी समय के बाद देश के कई हिस्सों में बिजली पहुंची, लेकिन कुछ बड़े-बड़े इलाके ऐसे थे, जो आजादी के बाद भी लगभग 40 साल तक अंधेरे में डूबे रहे. चलिए उनके बारे में जानें.कौन से इलाके अंधेरे में रहे?आजाद भारत के बाद सिंध प्रांत के कुछ हिस्से जैसे कि बलूचिस्तान और सरहदी सूबा (अब खैबर पख्तूनख्वा) जैसे क्षेत्र 1980 के दशक तक बिजली की गंभीर समस्या से जूझ रहे थे. इन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को न सिर्फ बुनियादी सुविधाओं की कमी का सामना करना पड़ रहा था, बल्कि शिक्षा, रोजगार और स्वास्थ्य की भी खूब समस्या झेलनी पड़ी थी. चलिए जानें कि इन इलाकों में बिजली और अन्य सुविधाएं क्यों नहीं मिल पाईं.क्यों अंधेरे में रह गए ये इलाके?बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा के पहाड़ी और दुर्गम इलाकों के लिए भौगोलिक मुश्किलें बड़ी समस्या है. यहां बिजली के खंभे और तार लगाना आसान काम नहीं था.दूसरी बड़ी समस्या यह थी कि आजादी के बाद पाकिस्तान की शुरुआती सरकारें बड़े शहरों और उद्योगों को बिजली देने पर ज्यादा ध्यान दे रही थीं. इस वजह से दूरदराज के ग्रामीण और जनजातीय क्षेत्र पीछे छूट गए.बलूचिस्तान में अलगाववादी आंदोलनों और स्थानीय संघर्षों ने विकास कार्यों की रफ्तार धीमी कर दी. तभी राजनीतिक अस्थिरता और बगावत की वजह से विकास ने रफ्तार नहीं पकड़ी.शुरुआती दौर में पाकिस्तान में आर्थिक संसाधनों की कमी थी, इसलिए आर्थिक स्थिति कमजोर थी. जिससे लंबी दूरी की बिजली परियोजनाएं टलती रहीं.पाकिस्तान के इन इलाकों में कब आया बदलाव?1980 के दशक में पाकिस्तान में कुछ बड़े बिजली प्रोजेक्ट शुरू हुए, जिसके बाद वहां पर बदलाव की शुरुआत हुई. जब पाकिस्तान के सिंध प्रांत में गुड्डू थर्मल पावर प्लांट और खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में सिंधु नदी पर तरबेला डैम से उत्पादन बढ़ा. इसके बाद धीरे-धीरे ट्रांसमिशन लाइनें उन इलाकों तक पहुंचीं. 1980 के आखिर और 1990 की शुरुआत में कई गांवों में पहली बार बिजली के बल्ब जले और लोगों के घरों में रोशनी हुई. आज के दौर में क्या है स्थितिआज के समय में बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा ही हालत बहुत ज्यादा अच्छी नहीं है. अभी भी यहां पर ज्यादातर हिस्सों में बिजली तो है, लेकिन समस्या अभी भी खत्म नहीं हुई है. लोडशेडिंग और बिजली चोरी आम है. कई दूरदराज के गांव में अभी भी 24 घंटे बिजली नहीं आती है. आधुनिक इंडस्ट्री और बिजनेस के लिए पावर सप्लाई अब भी पर्याप्त नहीं है.यह भी पढ़ें: भारत को आजादी देने से पहले खो गई थी अंग्रेजों की यह चीज, आज तक नहीं ढूंढ पाया कोई