1947 यानी आजादी का साल भारत के इतिहास में हमेशा के लिए एक ऐसा मोड़ लेकर आया, जिसने करोड़ों लोगों की लाइफ को बदल कर रख दिया. देश को आजादी मिली, लेकिन साथ में बंटवारे की बहुत भारी कीमत भी देनी पड़ी थी. आजादी के बाद भारत और पाकिस्तान दो अलग देशों के रूप में सामने आए. इस बंटवारे के पीछे एक नाम सबसे ज्यादा चर्चा में रहा, जो मोहम्मद अली जिन्ना का था. जिन्ना को पाकिस्तान का संस्थापक कहा जाता है. उन्होंने धर्म के आधार पर एक अलग देश की मांग की और उसे हासिल भी किया. आपको यह जानकर हैरानी होगी कि जिस शख्स ने भारत को मजहब के नाम पर दो टुकड़ों में बांट दिया, वह खुद जातिवाद और धार्मिक भेदभाव के खिलाफ थे. आइए जानते हैं कि धर्म के नाम पर भारत को बांटने वाले जिन्ना कैसे जातिवाद के खिलाफ थे?जिन्ना का परिवार और धर्म परिवर्तन की कहानीमोहम्मद अली जिन्ना के पूर्वज हिंदू थे. उनका परिवार गुजरात के काठियावाड़ इलाके से था. जिन्ना के दादा का नाम प्रेमजीभाई मेघजी ठक्कर था, जो एक लोहाना जाति के व्यापारी थे. प्रेमजी भाई का कारोबार मछली से जुड़ा था, लेकिन उनकी जाति में मांसाहार पूरी तरह से वर्जित था. इस वजह से समाज में उन्हें विरोध झेलना पड़ा. जिससे नाराज होकर उन्होंने अपना धर्म बदल लिया और मुसलमान बन गए. उसी रास्ते पर जिन्ना का परिवार भी आगे बढ़ा. इस तरह से एक सामाजिक बहिष्कार और जातीय संकीर्णता के चलते जिन्ना का परिवार धर्म परिवर्तन की ओर गया. यह कहानी बताती है कि कहीं न कहीं जातिवाद के खिलाफ एक असहमति जिन्ना के खून में थी.जिन्ना कैसे जातिवाद के खिलाफ थे?जिन्ना ने ऐसा बयान दिया था, जो आज भी चर्चा में रहता है. उन्होंने कहा था कि आप आजाद हैं, अपने मंदिरों में जाने के लिए, अपनी मस्जिदों में जाने के लिए, या किसी और पूजा स्थल में जाने के लिए. राज्य का धर्म से कोई लेना-देना नहीं होगा. समय के साथ हिंदू और मुसलमानों के बीच फर्क मिटेगा. न हिंदू, हिंदू रहेगा, न मुसलमान. मुसलमान कम से कम राजनीतिक दृष्टि से. जैसे मुसलमानों में भी कई जातियां हैं, पठान, पंजाबी, शिया, सुन्नी. वैसे ही हिंदुओं में भी ब्राह्मण, खत्री, बंगाली, मद्रासी. अगर यह भेदभाव नहीं होता तो भारत बहुत पहले आजाद हो चुका होता. आने वाले समय में लोग पहले भारतीय होंगे, फिर हिंदू या मुसलमान. वह भी धार्मिक नहीं, बल्कि राजनीतिक पहचान के तौर पर,यह भाषण सुनने से पता चलता है कि वह जातिवाद के खिलाफ थे. इतिहासकारों के अनुसार, यह भाषण जिन्ना की नीति का हिस्सा था. इसका मकसद भारत सरकार को यह यकीन दिलाना था कि पाकिस्तान अपने यहां के अल्पसंख्यकों के साथ अच्छा व्यवहार करेगा, इसलिए भारत को भी अपने 3.5 करोड़ मुसलमानों को पाकिस्तान भेजने के बजाय भारत में ही रहने देना चाहिए. यह भाषण एक राजनीतिक चाल भी माना जाता है. इसका असली मकसद पाकिस्तान को उस भारी जनसंख्या पलायन से बचाना था, जो उसे कमजोर कर सकता था. यह भी पढ़ें: नेहरू या जिन्ना, कौन था ज्यादा रईस? जानें किसके पास था कितना पैसा