जरूरत की खबर- डे केयर में मासूम के साथ क्रूरता:सही डे केयर का चुनाव कैसे करें, चेक करें ये 5 चीजें, बरतें 10 जरूरी सावधानियां

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उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा में 15 माह की बच्ची के साथ डे केयर सेंटर में हुई क्रूरता का सीसीटीवी सामने आया है। इसमें एक सहायिका बच्ची को बुरी तरह पीटते, पटकते और काटते हुए नजर आ रही है। यह घटना हर माता-पिता के लिए चेतावनी है कि वे अपने बच्चों के लिए डे केयर चुनते समय सतर्क रहें और सुरक्षा से जुड़ी जरूरी जांच जरूर करें। इसलिए, जरूरत की खबर में आज बात करेंगे कि डे केयर चुनते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? साथ ही जानेंगे कि- एक्सपर्ट: डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी, वरिष्ठ मनोचिकित्सक, भोपाल सवाल- डे केयर में बच्चों के साथ होने वाला दुर्व्यवहार उनके मानसिक स्वास्थ्य पर कैसा असर डालते हैं? जवाब- वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी बताते हैं कि बचपन में होने वाला ट्रॉमा बच्चे के भावनात्मक और मानसिक विकास पर गहरा असर डालता है। बचपन में हुए दुर्व्यवहार से उनमें डर, असुरक्षा और अविश्वास की भावना घर कर सकती है। यह न केवल आत्मविश्वास को कमजोर करता है, बल्कि सामाजिक जुड़ाव कम कर देता है और लंबे समय में गंभीर मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकता है। सवाल- माता-पिता को बच्चे के लिए डे केयर चुनते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? जवाब- डे केयर का चुनाव सिर्फ सुविधाओं के आधार पर नहीं, बल्कि सुरक्षा, भरोसे और स्टाफ के व्यवहार को देखते हुए करना चाहिए। माता-पिता को सेंटर के लाइसेंस, निगरानी व्यवस्था, स्टाफ की ट्रेनिंग और आपातकालीन स्थितियों से निपटने की तैयारियों की जांच करनी चाहिए। बच्चों के लिए सुरक्षित माहौल और प्रशिक्षित देखभाल करने वाले ही सही डे केयर की पहचान हैं। सवाल- डे केयर सेंटर का लाइसेंस क्यों महत्वपूर्ण होता है? जवाब- लाइसेंस इस बात की गारंटी है कि वह सेंटर सरकार द्वारा निर्धारित नियमों और सुरक्षा मानकों का पूरी तरह पालन करता है। लाइसेंसधारी सेंटर में बच्चों की देखभाल के लिए बेसिक हाइजीन, सुरक्षा, और प्रशिक्षित स्टाफ की उपलब्धता सुनिश्चित होती है। बिना लाइसेंस के संचालित सेंटर पर भरोसा करना जोखिम भरा हो सकता है क्योंकि ऐसे स्थानों पर बच्चों की सुरक्षा और उनकी भलाई के मानक अक्सर पूरे नहीं होते हैं। सवाल- भारत में बच्चों की सुरक्षा के लिए कौन-कौन से प्रमुख कानून बनाए गए हैं? जवाब- सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता सरोज कुमार सिंह बताते हैं कि बच्चों की सुरक्षा के लिए हमारे देश में कई कानून मौजूद हैं। जैसे जुवेनाइल जस्टिस एक्ट, 2015, जो बच्चों के साथ मारपीट या दुर्व्यवहार करने वालों को सख्त सजा देता है। POCSO एक्ट, 2012 खासतौर पर बच्चों को छेड़छाड़ और यौन उत्पीड़न से बचाने के लिए है। वहीं राइट टू एजुकेशन एक्ट, 2009 यह सुनिश्चित करता है कि स्कूल और डे केयर में बच्चों को हमेशा सुरक्षित और साफ-सुथरा माहौल मिले। ये सभी कानून मिलकर बच्चों को हर तरह से सुरक्षित रखने का काम करते हैं। सवाल- बच्चे को डे केयर भेजने से पहले किन चीजों को देखकर तय करें कि वह सुरक्षित और सही जगह है? जवाब- डे केयर का चुनाव सिर्फ एक लोकेशन या फीस का मामला नहीं है, यह बच्चे की सुरक्षा, सेहत और मानसिक विकास से जुड़ा फैसला होता है। इसलिए माता-पिता को सबसे पहले डे केयर का लाइसेंस और रजिस्ट्रेशन देख लें ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वह सरकारी मानकों के मुताबिक काम कर रहा है। इसके अलावा स्टाफ की ट्रेनिंग, बच्चों के साथ उनका व्यवहार और स्टाफ-टू-चाइल्ड रेशियो (एक स्टाफ कितने बच्चों की देखभाल कर रहा है) देखें क्योंकि यह सीधे बच्चे की सुरक्षा और देखभाल की क्वालिटी को प्रभावित करता है। सीसीटीवी कैमरों की उपलब्धता, इमरजेंसी मेडिकल सपोर्ट और बाहर जाने-आने का सिक्योरिटी सिस्टम भी देखें। सवाल- अगर किसी डे केयर सेंटर में बच्चों के साथ दुर्व्यवहार होता है तो माता-पिता को क्या कदम उठाने चाहिए? जवाब- सबसे पहले घटना की रिपोर्ट संबंधित पुलिस थाने में दर्ज कराएं। साथ ही सेंटर के खिलाफ स्थानीय बाल सुरक्षा अधिकारी या बाल कल्याण समिति से शिकायत करें। कानूनी मदद लेने के लिए किसी वकील से संपर्क करें और बच्चों की मेडिकल जांच भी करवाएं। ऐसी घटनाओं को सोशल मीडिया या मीडिया के माध्यम से भी उजागर किया जा सकता है ताकि अन्य माता-पिता सतर्क रहें। सवाल- माता-पिता को अपने बच्चे की डे केयर सेंटर की नियमित निगरानी कैसे करनी चाहिए? जवाब- माता-पिता को चाहिए कि वे समय-समय पर अचानक डे केयर विजिट करें ताकि वहां का वास्तविक माहौल देख सकें। बच्चे से प्यार से बातचीत करें और पूछें कि उसका दिन कैसा बीता, किसके साथ खेला और क्या खाया। स्टाफ से रोजमर्रा की दिनचर्या, खाने-पीने और व्यवहार में आए बदलावों की जानकारी लें। अगर संभव हो तो समय-समय पर CCTV फुटेज देखने की आदत डालें। बच्चे के पहनावे, चोट-खरोंच या मूड में अचानक बदलाव को हल्के में न लें। ये संकेत किसी समस्या की ओर इशारा कर सकते हैं। ………………… ये खबर भी पढ़िए…जरूरत की खबर- स्मार्टफोन सुन रहा है आपकी हर बात:अपने पर्सनल डेटा और प्राइवेसी को कैसे रखें सुरक्षित, फोन में ऑफ करें ये फीचर सोचिए, आप दोस्त से एसी, फ्रिज या कपड़ों की बात करते हैं और थोड़ी देर में फोन पर उन्हीं के विज्ञापन दिखने लगते हैं। न सर्च किया, न वेबसाइट देखी फिर भी! दरअसल, स्मार्टफोन आपके टच के साथ आवाज भी सुनता है। यह सामान्य है, लेकिन गलत इस्तेमाल पर प्राइवेसी के लिए खतरा बन सकता है। पूरी खबर पढ़िए...