सवाल- मैं नोएडा की रहने वाली हूं और मेरी एक 6 साल की बेटी है। हाल ही में हमारे घर में बेटे का जन्म हुआ। इसके बाद से मेरी दिनचर्या पूरी तरह बदल गई है। पहले मैं अपनी बेटी के साथ खूब समय बिताती थी। लेकिन अब मेरा ज्यादातर समय बेटे की फीडिंग, नींद, नैपी बदलने और डॉक्टर विजिट में निकल जाता है। मेरी बेटी यह सब नोटिस करती है और उसे लगता है कि मम्मा हमेशा छोटे भाई के साथ व्यस्त रहती हैं। पिछले कुछ समय से मैंने महसूस किया है कि वह धीरे-धीरे खुद में सिमटने लगी है। कभी वह कहती है, ‘अब मम्मा मुझसे प्यार नहीं करतीं’, तो कभी चुपचाप कोने में बैठी रहती है। उसके व्यवहार में अकेलापन साफ दिखाई देता है। मेरा सवाल है कि कहीं इससे बच्ची के मन में असुरक्षा या रिजेक्शन की भावना तो पैदा नहीं हो रही है? मैं अपने बेटे की देखभाल भी अच्छे से करना चाहती हूं। साथ ही बेटी को भी ये कमतर महसूस नहीं होने देना चाहती। मैं कैसे बैलेंस बनाऊं कि बेटी प्यार और वैल्यू दोनों महसूस करे? कृपया मेरा मार्गदर्शन करें। एक्सपर्ट: डॉ. अमिता श्रृंगी, साइकोलॉजिस्ट, फैमिली एंड चाइल्ड काउंसलर, जयपुर जवाब- आपके सवाल में एक संवेदनशील मां की बेचैनी झलकती है, जो दोनों बच्चों के बीच बराबर प्यार और उपस्थिति बनाए रखना चाहती है। यह हर उस मां की आवाज है, जो दो बच्चों के बीच संतुलन बनाने की कोशिश करती है। यह सच है कि छोटे बच्चों में भावनाओं को व्यक्त करने की समझ नहीं होती है। इस उम्र में वे ‘मम्मा सिर्फ मेरी है’ वाली भावना में रहते हैं। ऐसे में नए भाई या बहन के आने पर जब मम्मा का ज्यादा समय छोटे बच्चे के साथ बीतता है तो वह इसे ‘प्यार बंट जाना’ समझ सकते हैं। ये बहुत ही सामान्य बात है। हालांकि यहां समझने वाली बात ये है कि आपकी बच्ची अकेलापन महसूस कर रही है क्योंकि इस समय उसके साथ कोई भी खेलने या बातचीत करने वाला नहीं है। कई बार ये स्थिति बच्चों में प्रतिद्वंद्विता और इमोशनल इनसिक्योरिटी का कारण बन सकती है। इस समस्या के निराकरण के लिए सबसे पहले बतौर पेरेंट आपको बच्ची के व्यवहार में आए छोटे-छोटे बदलावों को नोटिस करना होगा। अगर इनमें से कुछ संकेत आपकी बच्ची में भी नजर आ रहे हैं तो इसे बिल्कुल भी नजरअंदाज न करें क्योंकि यही वह समय है, जब उसे आपके भरोसे की सबसे ज्यादा जरूरत है। दो बच्चों की पेरेंटिंग में संतुलन बहुत जरूरी अक्सर दूसरे बच्चे के जन्म के बाद माता-पिता जाने-अनजाने में बड़े बच्चे को ‘अब तो ये बड़ा हो गया है’ की कैटेगरी में रख देते हैं। लेकिन सच यह है कि भावनात्मक रूप से वह अब भी उतना ही नाजुक है, जितना पहले था। इसलिए जरूरत है कि उसे केवल प्यार ही नहीं, बल्कि यह भरोसा भी महसूस कराया जाए कि उसके रिश्ते, उसकी अहमियत और उसके इमोशन आज भी उतने ही कीमती हैं। अगर माता-पिता रोजमर्रा की छोटी-छोटी बातों में यह संतुलन बना लें तो दोनों बच्चों के बीच प्यार, सहयोग और आत्मविश्वास से भरा रिश्ता पनपेगा। इसके लिए पेरेंट्स नीचे दी गई इन 13 बातों का विशेष ख्याल रखें। बेटी की मासूमियत को नजरअंदाज न करें अक्सर छोटे बच्चे की देखभाल में व्यस्त रहते हुए पेरेंट्स बड़े बच्चे को ‘तू तो समझदार है’ या ‘अब तू बड़ी हो गई है’ जैसी बातें कहकर टाल देते हैं। वहीं जब वह देखती है कि भाई के रोने पर मम्मा तुरंत दौड़कर जाती हैं। लेकिन उसकी उदासी पर कोई ध्यान नहीं देता तो उसके मन में यह भावना घर करने लगती है कि ‘शायद अब मैं उतनी अहम नहीं हूं’। यह एहसास धीरे-धीरे उसकी आत्म-छवि और आत्मविश्वास को भीतर से तोड़ सकता है। इसलिए बच्ची की मासूमियत का भी खास ख्याल रखें। बड़ी बेटी के लिए खास समय तय करें दिन में कम-से-कम 15–20 मिनट का समय सिर्फ अपनी बड़ी बेटी के लिए निर्धारित करें। इस समय न मोबाइल हो, न छोटे भाई की डिस्टर्बेंस, बस आप और वह। इन पलों में वही करें, जो वह चाहती है। चाहे खेलना हो, बातें करना हो या कोई कहानी सुनना। यह छोटा-सा समय उसे यह भरोसा दिलाता है कि मम्मा से उसका रिश्ता आज भी उतना ही अनमोल है, जितना पहले था। यह आपका छोटा-सा प्रयास, उसके इमोशनल बैंक अकाउंट में बड़े भरोसे के रूप में जमा होता है। बेटे की केयर में बेटी को ‘सहयोगी’ बनाएं जब आप बेटे की देखभाल में व्यस्त हों तो बड़ी बेटी को इस प्रक्रिया से अलग करने की बजाय उसे इसका हिस्सा बनाएं। जैसे उससे डायपर लाने को कहें या प्यार से बताएं कि “भैया को बहुत अच्छा लगता है, जब तुम उसके पास होती हो।” इससे वह खुद को उपेक्षित महसूस नहीं करेगी, बल्कि जरूरी और जिम्मेदार समझेगी। इससे वह धीरे-धीरे जुड़ाव महसूस करने लगेगी। बच्ची की भावनाओं काे अनदेखा न करें अगर बच्ची कभी कहे कि ‘आप अब मुझसे प्यार नहीं करतीं’ तो उसे डांटने या अनसुना करने के बजाय प्यार से कहें कि ‘मुझे पता है, तुम्हें ऐसा लग रहा होगा, लेकिन तुम मेरी परी हो और हमेशा रहोगी।’ उसका गुस्सा, ईर्ष्या या उदासी उसकी उम्र और स्थितियों के अनुसार बिल्कुल सामान्य हैं। जब आप उसकी भावनाओं को नकारने की बजाय धैर्य से सुनेंगी तो उसके भीतर सुरक्षा की भावना पनपेगी। कहानियों की मदद लें बच्चों को दुनिया और रिश्तों की अहमियत समझाने का सबसे असरदार तरीका कहानियां होती हैं। उसे ऐसी कहानियां सुनाएं, जिनमें कोई बड़ी बहन अपने छोटे भाई की देखभाल करती है और मम्मा उसे प्यार से ‘हीरो’ कहती हैं। जब बच्ची खुद को उस किरदार में देखती है तो यह जिम्मेदारी उसे बोझ नहीं लगती है। इस तरह की कहानियां भाई-बहन के रिश्ते में अपनत्व भी बढ़ाती हैं। अंत में यही कहूंगी कि घर में नए बच्चे के आने पर मम्मा का समय और ध्यान बंटना स्वाभाविक है। लेकिन बड़े बच्चे की भावनाएं भी उतनी ही गहरी और सच्ची होती हैं। उसके मन में उपेक्षा, असुरक्षा या प्यार बंटने का डर जगह बनाए, उससे पहले उसे यह एहसास कराना जरूरी है कि वह अब भी उतनी ही अहम, उतनी ही प्यारी और उतनी ही खास है, जितनी हमेशा से रही है।