'NIA के मामलों की सुनवाई के लिए स्पेशल कोर्ट बने':सुप्रीम कोर्ट बोला- नहीं तो अंडरट्रायल आरोपियों को जमानत देने पर मजबूर होंगे

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सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि NIA (राष्ट्रीय जांच एजेंसी) के मामलों की जल्द सुनवाई के लिए स्पेशल कोर्ट और अलग इन्फ्रास्ट्रक्चर जरूरी है। जल्द नहीं बनाया गया, तो अदालतें आरोपियों को जमानत देने पर मजबूर होंगी। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने शुक्रवार को कहा, 'अगर केंद्र और राज्य सरकारें टाइम से सुनवाई के लिए स्पेशल कोर्ट नहीं बनातीं, तो अदालतों के पास अंडरट्रायल आरोपियों को जमानत देने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचेगा।' कोर्ट एक ऐसे मामले की सुनवाई कर रही थी जिसमें आरोपी सालों से जेल में बंद है, जबकि अभी तक मुकदमे की सुनवाई शुरू भी नहीं हुई थी। कोर्ट बोला- तेज सुनवाई के लिए अलग विशेष अदालतें जरूरी कोर्ट ने कहा कि UAPA और MCOCA जैसे गंभीर मामलों में तेज सुनवाई के लिए अलग विशेष अदालतें जरूरी हैं। कोर्ट ने NIA सचिव के हलफनामे पर भी नाराजगी जताई और कहा कि उसमें कहीं यह नहीं बताया गया कि ट्रायल में तेजी लाने के लिए सरकार ने क्या ठोस कदम उठाए। SC ने विशेष मामलों में धीमी सुनवाई पर चिंता जताई सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले भी विशेष मामलों में धीमी सुनवाई पर चिंता जताई थी। कोर्ट ने कहा, “जब एक व्यक्ति सालों से जेल में है और मुकदमा शुरू ही नहीं हुआ, तब जमानत देना या न देना, सीधे संविधान के अनुच्छेद 21 (व्यक्तिगत स्वतंत्रता) का उल्लंघन बन जाता है।” 16 जुलाईः SC ने अदालतों में टॉयलेट की हालत पर सख्त रुख अपनाया इससे पहले 16 जुलाई को देश की अदालतों में टॉयलेट जैसी बुनियादी सुविधा की हालत पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया था। कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए कहा था कि देश के 25 में से 20 हाईकोर्ट ने अब तक ये नहीं बताया कि उन्होंने टॉयलेट की सुविधा सुधारने के लिए क्या कदम उठाए हैं? सुप्रीम कोर्ट ने 15 जनवरी 2025 को सभी हाईकोर्ट, राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया था कि हर अदालत में पुरुष, महिला, दिव्यांग और ट्रांसजेंडर्स के लिए अलग-अलग टॉयलेट होने चाहिए। उचित स्वच्छता पाना संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत एक मौलिक अधिकार है। पूरी खबर पढ़ें... -------------------------- सुप्रीम कोर्ट से जुड़ी ये खबरें भी पढ़ें... सुप्रीम कोर्ट बोला- केंद्र-राज्य सरकारें हेट स्पीच को रोकें: लेकिन नागरिकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनी रहे सुप्रीम कोर्ट ने 14 जुलाई को कहा था कि केंद्र और राज्य सरकारें हेट स्पीच यानी नफरत फैलाने वाले भाषणों को रोकें। साथ ही इस बात का ध्यान रखें कि नागरिकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन न हो। जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने कहा- लोग नफरत भरे भाषण को बोलने की आजादी समझ रहे हैं, जो गलत है। पूरी खबर पढ़ें...