राकेश शर्मा से भी पहले अंतरिक्ष में पहुंची थी इस भारतीय की आवाज, गुरुदेव ने दिया था ‘सुरश्री’ का खिताब

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हर सदी में कोई न कोई आवाज ऐसी होती है, जो कि सदियों तक लोगों के कानों में तो गूंजती ही है साथ ही साथ उसकी खनक रूह को छू जाती है. कभी-कभी यह आवाज इतनी खास हो जाती है कि धरती से अंतरिक्ष तक में गूंजने लगती है. एक ऐसी ही आवाज थी केसरबाई केरकर की. वो न सिर्फ जादुई आवाज की मल्लिका थीं, बल्कि उनकी गायकी अंतरिक्ष तक जा पहुंची थी. केसरबाई केरकर ऐसी पहली भारतीय गायिका थीं, जिनकी आवाज भारत के पहले अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा से भी पहले अंतरिक्ष में गूंजी थी. चलिए आज आपको इनके बारे में विस्तार से बताते हैं. छोटी उम्र में ही कर ली सुरों से दोस्तीकेसरबाई केलकर 13 जुलाई 1892 को गोवा के एक छोटे से गांव में जन्मी थीं. उस वक्त गोवा में पुर्तगालियों का शासन हुआ करता था. भारत में उस वक्त अंग्रेजों का राज था. बचपन से ही उनके अंदर संगीत को लेकर एक अलग लगाव था. देवदासी परंपरा में जन्मी केसरबाई केलकर को देखकर लोगों ने यही सोचा था कि उनकी मंजिल सिर्फ मंदिर तक ही सीमित होगी. लेकिन उन्होंने परंपराओं को तोड़ते हुए सुरों के साथ अपनी दोस्ती की व अपनी आवाज को आसमान तक पहुंचा दिया. केसरबाई को संगीत से बहुत लगाव था, तो उन्होंने सिर्फ 16 साल की उम्र में ही शास्त्रीय संगीत सीखना शुरू कर दिया था और इसके लिए वे मुंबई चली आई थीं. उस वक्त उन्होंने कई गुरुओं से शिक्षा ली थी, लेकिन उनको जिस सुर की तलाश थी, वो इच्छा अभी भी अधूरी थी.विरासत बन गया 'जात कहां हो'केसरबाई केलकर का सपना था कि वे उस्ताद अल्लादिया खान से शिक्षा लें. वे उनके पास गईं, उन्होंने केसरबाई को तीन महीने परखने के बाद मना कर दिया था. लेकिन वे निराश होकर रुकीं नहीं, उन्होंने तब शाहू महाराज से मदद मांगी और यहीं से उनकी जिंदगी में एक नया मोड़ आया. 25 साल उन्होंने अपने सुर साधना में लगा दिए. कहा जाता है कि वे गाती नहीं थीं, बल्कि संगीत में ही सांस लेती थीं. उनका मानना था कि संगीत को सिर्फ महसूस किया जा सकता है, बल्कि बेचा नहीं जा सकता. इसीलिए वे रिकॉर्डिंग नहीं करती थीं. फिर भी राग भैरवी में गाया उनका एक गाना 'जात कहां हो' देश को मिला जो कि एक विरासत बन गया.नासा ने अंतरिक्ष में भेजी उनकी आवाज1977 में नासा का भेजा Voyager 1 यान जो कि हमारे सौरमंडल से भी आगे जा रहा था, इसके साथ 27 देशों की सबसे सुंदर आवाजें दर्ज थीं. उनका गाया 'जात कहां हो' एथ्नोम्यूजिकॉलजिस्ट रॉबर्ट ई. ब्राउन के सुझाव पर चुना गया था. उनका कहना था कि यह हिंदुस्तान के संगीत की सबसे सुंदर रिकॉर्डिंग में से एक है. वे इतना सुंदर गाती थीं कि 1938 में रवींद्रनाथ टैगोर ने उनको 'सुरश्री' की उपाधि दी थी, जिसका अर्थ होता है 'सुरों की रानी'. इसके अलावा उनको पद्म भूषण के अलावा कई सम्मान भी मिले. 1977 में ही केसरबाई का निधन हो गया था, लेकिन आज भी उनकी आवाज अंतरिक्ष में कहीं पर गूंज रही है. यह भी पढ़ें: क्या सच में होता है हॉलीवुड फिल्मों वाला मल्टीवर्स, इसके पीछे क्या कहता है विज्ञान?