हाल ही में अमेरिका ने भारत से आयातित वस्तुओं पर 25% रेसिप्रोकल टैरिफ लगाया. कहा गया है कि इसका उद्देश्य अमेरिकी व्यापार घाटे को कम करना है. इसके अलावा अमेरिका ने भारत द्वारा रूस से तेल खरीदने को लेकर अतिरिक्त 25% टैरिफ की चेतावनी दी गई है, जिससे कुल टैरिफ दर 50% हो गई है. ऐसे में हाल ही में रूस के उप राजदूत रोमन बाबुश्किन ने मीडिया से बातचीत में कहा है कि अगर भारत को अमेरिकी बाजार में अपना सामान बेचने में कोई दिक्कत है तो रूस का दरवाजा खुला है. उन्होंने कहा है कि हम भारतीय निर्यात के स्वागत के लिए पूरी तरह से तैयार हैं. ऐसे में सवाल यह है कि अगर भारत खुद दुनिया का सबसे बड़ा बाजार है तो उसे अमेरिका में अपना सामान बेचने की जरूरत आखिर क्यों पड़ रही है, चलिए जानें.भारत अमेरिका के व्यापारिक रिश्ते140 करोड़ की आबादी के साथ भारत दुनिया का सबसे बड़ा उपभोक्ता बाजार है. मोबाइल से लेकर कपड़े और दवाइयों तक, हर सेक्टर में यहां अरबों की डिमांड है, लेकिन इसके बावजूद भारत की अर्थव्यवस्था में अमेरिका को निर्यात की अहम भूमिका बनी हुई है. आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि 2024-25 में भारत ने करीब 48 अरब डॉलर का माल अमेरिका को निर्यात किया था. इसमें ज्वैलरी, कपड़े, फार्मा और इंजीनियरिंग उत्पाद सबसे ज्यादा शामिल रहे. अमेरिका भारत का सबसे बड़ा एक्सपोर्ट मार्केट है, इसपर लाखों नौकरियां निर्भर हैं. लेकिन हाल ही में अमेरिका ने भारत से आने वाले कई उत्पादों पर ट्रंप ने 25% अतिरिक्त टैरिफ लगा दिया है, जिससे करीब आधे निर्यात प्रभावित होंगे.घरेलू और विदेशी बाजारभारत का घरेलू बाजार बहुत बड़ा जरूर है, लेकिन यह एक ही बार में देश की उत्पादन क्षमता को यहां खपाया नहीं सकता है. उदाहरण के लिए, ज्वैलरी और टेक्सटाइल उद्योग की उत्पादन क्षमता घरेलू मांग से कहीं ज्यादा है. ऐसे में विदेशी बाजार खासकर अमेरिका, भारतीय उद्योगों को स्थायी मांग और बेहतर दाम देता है. अमेरिकी उपभोक्ताओं की क्रय क्षमता भारत की तुलना में ज्यादा है, जिससे भारतीय उत्पाद वहां हाई रेट पर बिकते हैं.विदेशी मुद्रा और वैश्विक पहचानअमेरिका को होने वाले निर्यात से भारत को भारी मात्रा में विदेशी मुद्रा मिलती है. यह विदेशी मुद्रा रुपये को स्थिर रखने और आयात संतुलन साधने में जरूरी भूमिका निभाती हैं. ऐसे में विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका जैसे विकसित बाजारों में भारत की मौजूदगी सिर्फ व्यापार तक सीमित नहीं है, बल्कि इससे वैश्विक स्तर पर भारतीय उत्पादों की साख भी मजबूत होती है. जब अमेरिकी उपभोक्ता भारतीय दवाओं और टेक्नोलॉजी पर भरोसा जताते हैं तो फिर यूरोप और एशिया के बाजारों में भी उसका असर दिखाई देता है.यह भी पढ़ें: इस राज्य के लोग देते हैं सबसे ज्यादा टैक्स? जानें टॉप-5 राज्यों के नाम