आजकल के इस भागदौड़ भरी जिंदगी में लोगों के पास समय की बहुत कमी है. हर इंसान कम समय में जल्द से जल्द अपने मंजिल तक पहुंचना चाहता है. यही वजह है कि सफर करते समय भी लोग एक्सप्रेस ट्रेन या फ्लाइट का उपयोग करते हैं लेकिन आज हम बात करेंगे भारत की एक ऐसी ट्रेन की जो न केवल देश की सबसे धीमी ट्रेन है, बल्कि दुनिया की सबसे धीमी ट्रेनों में भी शुमार है. फिर भी लोग इसमें बैठना पसंद करते हैं चलिए जानते हैं इस ट्रेन के बारे में और ये भी जानते हैं कि ये ट्रेन कहां चलती है.जानें ट्रेन कहां से कहां तक जाती हैदेश की सबसे धीमी गति से चलने वाली ट्रेन का नाम है मेट्टूपालयम ऊटी नीलगिरी पैसेंजर ट्रेन. जो तमिलनाडु के मेट्टुपालयम से ऊटी तक 46 किलोमीटर की दूरी तय करती है और इसे इस दूरी को पूरा करने में करीब 5 घंटे लगते हैं यानी इसकी औसत गति मात्र 10 किलोमीटर प्रति घंटा है. इतनी धीमी रफ्तार कि एक साइकिल सवार भी इसे आसानी से पीछे छोड़ सकता है. लेकिन फिर भी यह ट्रेन पर्यटकों और रेल प्रेमियों के बीच बेहद लोकप्रिय है. ऐसा क्यों चलिए इसका कारण जानते हैं.क्यों चलती है इतनी धीरेइसका कारण है इसका अनूठा रास्ता और खूबसूरत प्राकृतिक नजारे. यह ट्रेन नीलगिरि पहाड़ियों के बीच से होकर गुजरती है. इस ट्रेन में यात्रा करने वाले लोग इन्हीं सुंदर प्राकृतिक स्थलों का आनंद लेने के लिए इसमें बैठते हैं. इसके लकड़ी के डिब्बे और खिड़कियों से दिखने वाले हरे-भरे जंगल, चाय के बागान और झरनों के नजारे यात्रियों को मंत्रमुग्ध कर देते हैं. यही वजह है कि इसकी धीमी गति यात्रियों को बोर नहीं करती, बल्कि उन्हें प्रकृति के करीब लाती है. हर साल हजारों पर्यटक, खासकर विदेशी सैलानी, इस ट्रेन की सवारी करने आते हैं. नीलगिरि माउंटेन रेलवे को यूनेस्को ने विश्व धरोहर का दर्जा दिया है. ये ट्रेन नीलगिरि माउंटेन रेलवे मीटर गेज ट्रैक पर चलती है जहां 16 सुरंगे 250 पुल और 200 से ज्यादा मोड़ आते हैं. इन मोड़ों और ढलानों के कारण ट्रेन की गति को सीमित रखना पड़ता है. कब चलती है ये ट्रेनयह ट्रेन मेट्टुपालयम से सुबह 7 बजकर 10 मिनट पर चलती है और करीब 12 बजे ऊटी पहुंचती है. वापसी में यह ऊटी से दोहर 2 बजे निकलती है और शाम 5 बजकर 30 मिनट तक मेट्टुपालयम पहुंच जाती है. यात्री इसके टिकट को आईआरसीटीसी की वेबसाइट से ऑनलाइन बुक कर सकते हैं.इसे भी पढ़ें- इस गांव में हुआ था पतियों का कत्लेआम, 50 महिलाओं ने खुद उजाड़ा था अपना सुहाग