सुप्रीम अदालत ने कहा है कि बोलो, लेकिन बोलकर कमाना है तो संभलकर बोलना है. पर संवेदना, भावना और मर्यादा की त्रिवेणी में कहीं व्यंग्य, हास्य और फ्री-स्पीच डूब न मरें. क्या निर्गुण भावों की परिभाषा और परिधि अदालत तय कर पाई है… ताऊ उवाच.