ग्रेटर नोएडा में 21 अगस्त को हुई निक्की भाटी की संदिग्ध मौत ने सबको झकझोर द‍िया. इस केस का सबसे बड़ा मोड तब आया जब निक्की के 6 साल के बेटे का वीडियो सामने आया. मासूम ने अपने बयान में कहा कि पिता ने मां को पीटा और फिर जलाकर मार डाला. सोशल मीडिया पर वायरल यह गवाही अब जांच और अदालत दोनों के लिए अहम हो सकती है. सवाल यह है कि आखिर अदालत में बच्चों की गवाही कितनी मान्य होती है और किन मामलों में मासूम के बयान ने पूरे केस की दिशा बदल दी है. अदालत में बच्चों की गवाही कितनी वैलिड भारतीय कानून में गवाह बनने के लिए कोई न्यूनतम उम्र तय नहीं है. भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 की धारा 118 के तहत अगर अदालत को लगता है कि बच्चा सच और झूठ में फर्क कर सकता है और अपनी बात सही तरीके से रख सकता है तो उसका बयान पूरी तरह वैध माना जाएगा. हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने भी साफ किया है कि बाल गवाह सक्षम गवाह होते हैं और उनकी गवाही को केवल उम्र के आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता. अदालतें सिर्फ इस बात का ध्‍यान रखती हैं कि बच्चा किसी दबाव, डर या ट्यूटर‍िंग में तो बयान नहीं दे रहा.बच्चों की गवाही ने कब-कब बदला केस मध्य प्रदेश केस. एक 7 साल की बच्ची ने अपनी मां की हत्या होते हुए देखी और कोर्ट में गवाही दी. हाईकोर्ट ने बच्ची की गवाही कमजोर मानकर आरोपी को बरी कर दिया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बाल गवाह पूरी तरह वैध है और इस आधार पर आरोपी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई. बरेली केस. वंदना नाम की महिला की संदिग्ध मौत में उसके 11 साल के बेटे और 8 साल की बेटी ने गवाही दी. बच्चों ने गवाही दी थी कि पिता रोज शराब पीकर मां को पीटते थे और घटना वाले दिन भी उन्होंने मारपीट की थी. कोर्ट ने बच्चों की गवाही को विश्वसनीय मानते हुए पिता को 10 साल की सजा सुनाई थी. ड्राइंग से खुला राज. ‌ एक और केस में 7 साल की बच्ची ने अपने पिता को मां की हत्या करते देखा. पूछताछ में पिता ने आत्महत्या की कहानी सुनाई थी, लेकिन बच्‍ची की बनाई ड्राइंग ने पूरे सच से पर्दा हटा दिया और आरोपी को दोषी करार दिया गया.बच्चों से गवाही कैसे ली जाती है बच्चों के बयान दर्ज करने का तरीका आम लोगों से बिल्कुल अलग होता है. अदालत में इसके लिए चाइल्ड विटनेस रूम बने होते हैं जहां बच्चों खिलौने, चॉकलेट और आरामदायक माहौल दिया जाता है. बच्चे सीधे कोर्ट रूम में आरोपी को नहीं देखते, बल्कि एक अलग कमरे से जज को स्क्रीन पर देखकर सवालों के जवाब देते हैं. ऐसे समय में जज बच्‍चों से सवाल बहुत सरल और प्यार से पूछते हैं.आरोपी का चेहरा भी बच्चे को सिर्फ कुछ सेकेंड के लिए दिखाया जाता है ताकि वह डर न जाए. गवाही के दौरान बच्चों की पहचान और नाम गोपनीय भी रखा जाता हैनिक्की भाटी केस में उसके बेटे का बयान जांच को नई दिशा दे सकता है. अदालत के लिए यह गवाही अहम सबूत साबित हो सकती है. दरअसल कई बार मासूमों की सच्ची गवाही ने अदालत में वह काम किया है जो पुख्ता सबूत भी नहीं कर पाए. यानी अगर बच्चा सच और झूठ में फर्क समझता है और बिना दबाव बयान देता है तो उसकी गवाही किसी भी केस को पूरी तरह पलट सकती है.ये भी पढ़ें-हर साल दहेज के लिए मार दी जाती हैं इतनी महिलाएं, आंकड़े देखकर पैरों के नीचे से खिसक जाएगी जमीन