सवाल: मैं अहमदाबाद से हूं। मेरा बेटा 15 साल का है और 9वीं क्लास में पढ़ता है। वह पढ़ाई में काफी अच्छा है। उसके टीचर भी अक्सर उसकी तारीफ करते हैं। लेकिन मुझे उसकी एक आदत बहुत परेशान करती है। दरअसल जब भी उसे लोगों के सामने अपनी बात रखनी होती है तो वह घबरा जाता है। स्कूल में प्रेजेंटेशन के दौरान वह अक्सर डर के मारे कांपने लगता है। यहां तक कि जब कोई रिश्तेदार या मेहमान घर आते हैं तो वह उनसे भी बात करने में झिझकता है। क्लास में भी भले ही उसे किसी सवाल का जवाब पता होता है, लेकिन वह बोलने के डर से चुपचाप बैठा रहता है। मुझे चिंता है कि आत्मविश्वास की यह कमी भविष्य में उसकी पर्सनल और प्रोफेशनल ग्रोथ में एक बड़ी बाधा बन सकती है। मैं उसे जबरदस्ती एक्सट्रोवर्ट नहीं बनाना चाहती क्योंकि मैं जानती हूं कि हर किसी का स्वभाव अलग होता है। लेकिन मैं यह चाहती हूं कि वह किसी भी परिस्थिति में, किसी के भी सामने, आत्मविश्वास के साथ अपनी बात खुलकर कह सके। कृपया मुझे बताइए कि मैं कैसे उसकी मदद करूं? एक्सपर्ट: डॉ. अमिता श्रृंगी, साइकोलॉजिस्ट, फैमिली एंड चाइल्ड काउंसलर, जयपुर जवाब- मैं आपकी चिंता को समझ सकती हूं। बच्चे का पढ़ाई में अच्छा होना पेरेंट्स के लिए गर्व की बात है। लेकिन जब बच्चा अपनी बात रखने या लोगों के सामने बोलने में झिझकता है तो चिंता होना स्वाभाविक है। दरअसल जो बच्चे पढ़ाई में अच्छे होते हैं, वे अक्सर परफॉर्मेंस प्रेशर और परफेक्ट होने की चाह से घिरे रहते हैं। यही वजह है कि वे गलती करने से डरते हैं क्योंकि वे दूसरों की अपेक्षाओं पर खरा उतरने का दबाव महसूस करते हैं। इसका असर उनके बोलने, अपनी राय रखने और सामने आने पर पड़ता है। ऐसे में सबसे पहले यह समझना जरूरी है कि आपके बेटे की झिझक की जड़ कहां है। इसके लिए उसके डर के कारणों को आइडेंटिफाई करें। बच्चे की बोलने की झिझक को ऐसे करें दूर कारणों को आइडेंटिफाई करने के साथ ही ये समझना भी जरूरी है कि हर बच्चा अलग होता है। कुछ बच्चे सहज रूप से दूसरों के सामने बोलते हैं तो कुछ को इसके लिए अभ्यास और भरोसे की जरूरत होती है। ये कोई कमजोरी नहीं है, बल्कि यह एक डेवलपिंग स्किल है, जो सही तरीके से गाइड करने पर निखर सकती है। हालांकि यहां ये समझना जरूरी है कि बच्चे की झिझक रातों-रात दूर नहीं होगी। इसमें धैर्य, लगातार प्रयास और आपकी तरफ से सकारात्मक माहौल देने की जरूरत है। आपका बेटा इस समय आपकी समझदारी और साथ का सबसे ज्यादा हकदार है। उसे डांटने या मजबूर करने की बजाय, एक दोस्त बनकर उसका मार्गदर्शन करें। इसके अलावा कुछ बातों का विशेष ध्यान रखें। पेरेंट्स न करें ये गलतियां अक्सर माता-पिता अनजाने में कुछ ऐसी बातें या व्यवहार कर बैठते हैं, जो बच्चे की झिझक को और गहरा कर देते हैं। बच्चा बोलने से पहले ही डरने लगता है कि कहीं वह जज तो नहीं किया जाएगा। इसलिए अगर आप चाहते हैं कि आपका बच्चा खुलकर अपनी बात कहे तो कुछ गलतियां करने बचना चाहिए। इन गलतियों से बचने का सबसे असरदार तरीका है ‘बच्चे को सुना जाना महसूस कराना’। जब उसे लगेगा कि वह बिना डरे अपनी बात कह सकता है तो धीरे-धीरे उसका आत्मविश्वास पनपने लगेगा। इसके लिए बच्चे को घर में बातचीत करने के लिए प्रोत्साहित करें और वह जब भी बोले तो बीच में टोके बगैर ध्यान से उसकी बातें सुनें। बच्चे की झिझक को ‘समस्या’ नहीं, एक स्किल गैप समझें बोलना कोई जन्मजात गुण नहीं होता है। यह एक सीखी जाने वाली स्किल है, जैसे साइकिल चलाना। फर्क सिर्फ इतना है कि इसमें गिरने का डर दूसरों के सामने शर्मिंदगी का रूप ले लेता है। जब आप इसे कमजोरी मानकर नहीं, बल्कि एक सीखने योग्य स्किल मानेंगे तो आपका दृष्टिकोण और बच्चे की मानसिकता दोनों बदलेंगे। ‘कुछ भी बोलो’ वाला माहौल बनाएं बच्चे के आसपास ऐसा वातावरण बनाएं, जहां वह बिना जज हुए कुछ भी कह सके। जैसेकि- छोटे मंच से शुरुआत करें, सीधे स्टेज से नहीं अक्सर पेरेंट्स बच्चों को स्कूल के डिबेट या स्टेज एक्ट में नाम लिखवा देते हैं। इससे बच्चा और घबरा जाता है। इसके बजाय क्लास टीचर से बात करें कि वह उसे छोटे ग्रुप में जवाब देने के लिए प्रोत्साहित करें। उसे कॉमन रूम या बुक क्लब डिस्कशन जैसे कम प्रेशर वाले सेशंस में शामिल कराएं। चाइल्ड साइकोलॉजिस्ट की सलाह लें अगर आपके प्रयासों के बावजूद उसकी घबराहट बहुत ज्यादा है जैसे बार-बार पसीना आना, रोना, पेट में दर्द होना या कांपना तो यह सोशल एंग्जाइटी का संकेत हो सकता है। ऐसे में किसी काउंसलर या चाइल्ड साइकोलॉजिस्ट की सलाह जरूर लें। अंत में यही कहूंगी कि आपका बेटा बुद्धिमान है, संवेदनशील है और शायद इसी वजह से ज्यादा सोचता है, ज्यादा डरता है। लेकिन आपका नजरिया बहुत सही है कि आप उसे उसके स्वभाव को समझते हुए सपोर्ट करना चाहती हैं। बस उसे भरोसा दिलाते रहिए कि उसकी बात मायने रखती है, चाहे वह कितनी भी धीमी या हिचकिचाती क्यों न हो। ........................ पेरेंटिंग की ये खबर भी पढ़िए पेरेंटिंग- 15 साल के बेटे को लगी सिगरेट की लत: दोस्तों की संगत का असर, डांटूं, सख्ती करूं कि प्यार से समझाऊं, बेटे को कैसे बचाऊं दरअसल 15 साल की उम्र में बच्चे अपनी पहचान की तलाश कर रहे होते हैं। ऐसे में वे ‘बड़े’ और ’कूल’ दिखने की कोशिश में कई बार ऐसे फैसले ले लेते हैं, जो उनके लिए नुकसानदायक होते हैं। इस उम्र में दोस्तों का प्रभाव सबसे ज्यादा होता है। पूरी खबर पढ़िए...