मेंटल हेल्थ– छोटे शहर के स्कूल में बेटा टॉपर था:बड़े शहर के कॉलेज में एवरेज हो गया, अब वो उदास रहता है, उसे कैसे समझाएं

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सवाल– मैं एक 18 साल के बेटे की मां हूं। हम जबलपुर में रहते हैं। मेरा बेटा पढ़ाई में हमेशा से टॉपर था। क्लास वन से लेकर बारहवीं तक वो स्कूल का बेस्ट स्टूडेंट, गोल्डन बॉय था। उसके टीचर्स ने और हमने भी हमेशा उसे यह एहसास दिलाया कि वो बेस्ट है। लेकिन पिछले साल दिल्ली के सेंट स्टीफेंस कॉलेज में एडमिशन के बाद से पढ़ाई में उसका परफॉर्मेंस बिगड़ गया है। उसका कॉन्फिडेंस भी कम हुआ है। शायद ये बात उसे चुभ रही है कि अब वो कॉलेज का बेस्ट स्टूडेंट नहीं रहा। वहां उससे भी बेहतर लोग हैं। एक बार उसने इनडायरेक्टली कहा भी कि "मम्मा, आय एम नॉट द बेस्ट।" क्या हमसे कोई गलती हो गई। हमें उसे इतना स्टार जैसा फील नहीं कराना चाहिए था। बच्चा अब अक्सर उदास और लॉस्ट रहता है। मुझे उसकी बहुत फिक्र है। डॉक्टर, प्लीज हेल्प मी। एक्सपर्ट– डॉ. द्रोण शर्मा, कंसल्टेंट साइकेट्रिस्ट, आयरलैंड, यूके। यूके, आयरिश और जिब्राल्टर मेडिकल काउंसिल के मेंबर। सवाल पूछने के लिए शुक्रिया। आपकी फिक्र वाजिब है। जब भी किसी छोटे शहर का कोई प्रतिभाशाली छात्र दिल्ली के सेंट स्टीफंस या आईआईटी जैसे बड़े संस्थान में जाता है तो उसे समझ में आता है कि दुनिया में उससे भी ज्यादा काबिल स्टूडेंट्स हैं। अपने छोटे शहर में वो बेस्ट था, लेकिन इस बड़ी जगह पर वो बेस्ट नहीं रहता। यह छात्र और उसके माता-पिता, दोनों के लिए भावनात्मक रूप से झकझोर देने वाला अनुभव हो सकता है। आपकी और आपके बेटे की कहानी ऐसी है, जिससे छोटे शहरों के बहुत से पेरेंट्स रिलेट कर सकते हैं और आपके अनुभव से सीख भी सकते हैं। सालों तक आपका बेटा अपने स्कूल और शहर में टॉपर था। सब उसकी तारीफ करते थे, उसे रोल मॉडल समझते थे। पेरेंट्स और टीचर्स, सबने प्यार और गर्व से कहा कि "तुम बेस्ट हो।" जैसाकि आपने खुद लिखा है कि आपने और आसपास के लोगों ने उसे स्टार जैसा फील करवाया। लेकिन अब वो जिस यूनिवर्सिटी में है, वहां देश भर के तमाम शहरों के बेस्ट स्टूडेंट हैं। वो सब अपने स्कूल, अपने शहर के बेस्ट हैं। ऐसे में अचानक खुद को औसत महसूस करना स्वाभाविक है। इस कारण आत्मविश्वास और मोटिवेशन भी कम होता है और व्यक्ति अपनी योग्यता और महत्व पर सवाल करने लगता है। लेकिन यहां जो बात सबसे जरूरी और समझने की है, वो ये कि- पेरेंट्स को क्या करना चाहिए? ऐसे में सबसे बड़ा सवाल ये उठता है कि पेरेंट्स को क्या करना चाहिए। नीचे कुछ बिंदुओं में मैं यह एक्सप्लेन करने की कोशिश करूंगा। 1. बच्चे को रेस्क्यू नहीं, रीअश्योर करें बेटे को याद दिलाएं कि अब तक उसने जो भी सफलता और उपलब्धि हासिल की है, उस पर कोई शक नहीं है। उसकी बुद्धिमत्ता और मेधा पर कोई शक नहीं है। अब जो बदला है, वह उसकी क्षमता नहीं, बल्कि आसपास की स्थितियां हैं। देश के टॉप कॉलेज में पढ़ने का मतलब है कि अब उसका मुकाबला ढेर सारे टॉपर स्टूडेंट्स से है। यहां पर जो दरअसल एवरेज है, वो भी एक्सेलेंट है। आपको अपने बच्चे को हकीकत से दूर नहीं करना है, बल्कि उसे इस बात का यकीन दिलाना है कि उसकी क्षमताएं अब भी पहले जैसी ही हैं। वह अब भी उतना ही काबिल है। 2. बेस्ट न होना भी नॉर्मल है "टॉपर्स" को भी कभी-न-कभी इस सच का सामना करना पड़ता है कि वह हमेशा टॉप पर नहीं होंगे। कभी कोई उनसे भी आगे निकल जाएगा। बेटे को समझाएं कि यूनिवर्सिटी लाइफ का मतलब सिर्फ अच्छे नंबर लाना और टॉप करना नहीं होता। यहां हम दरअसल जिंदगी की पाठशाला में भी एडमिशन लेते हैं और जीवन के जरूरी सबक सीखते हैं- 3. अपनी आलोचना नहीं, अपना मूल्यांकन करना यह आत्म-मूल्यांकन सीखने का सबसे अच्छा समय है। बेटे को पूरी ईमानदारी के साथ अपनी ताकत और कमजोरियों का मूल्यांकन करने के लिए प्रेरित करें। वह सीखे कि पहले कौन से स्किल उसके काम आए और अब उसमें क्या नया जोड़ने, सीखने और बदलने की जरूरत है। यह 'मैक्सबिलिटी' की बुनियाद है। यह वह कौशल है, जिससे हम ताउम्र सीखते और खुद को बेहतर बनाते रहते हैं। 4. बेस्ट होना नहीं, अपना बेस्ट देना बेटे का फोकस 'बेस्ट होने' से 'अपना बेस्ट करने' पर शिफ्ट करें। अचीवमेंट मोटिवेशन की दो डिसाइडिंग फोर्स होती हैं- बेटे को इन दोनों फोर्सेज के बीच संतुलन बनाना सिखाएं। सिर्फ उसकी सफलता की नहीं बल्कि उसकी कोशिश और मेहनत की भी तारीफ करें। 5. संतुलन ही जीवन का मंत्र सफलता का रास्ता तब ज्यादा आसान हो जाता है, जब बच्चे पढ़ाई के साथ-साथ अपनी सेहत, दोस्तियों और आराम का भी ध्यान रखते हैं। बेटे की जिंदगी में सोशल कनेक्शन, खेलकूद और क्रिएटिव एक्टिविटीज को भी बढ़ावा दें। इससे बर्नआउट नहीं होता और बच्चों का आत्मविश्वास भी बढ़ता है। बातें, जो बच्चे को बतानी है बच्चों की भावनाएं और व्यवहार कई बार माता–पिता, टीचर्स और आसपास के लोगों की अपेक्षाओं से भी तय होता है। बच्चों को लगता है कि टॉपर और बेस्ट होना ही उनके जीवन का सबसे बड़ा एसेट है। ऐसे में पेरेंट्स को सबसे पहले बच्चे को यह कॉन्फिडेंस देने की जरूरत है कि बेस्ट होने के लिए टॉपर होना जरूरी है। अपना बेस्ट वर्जन होना जरूरी है। इसके अलावा ये बेसिक बातें बच्चे को बतानी है– फ्यूचर पेरेंट्स के लिए सबक जिनके बच्चे अभी छोटे हैं या जो भविष्य में पेरेंट्स बनेंगे, वो भी इस अनुभव से जीवन के कुछ जरूरी सबक सीख सकते हैं। 1. तारीफ करें, मगर समझदारी से बच्चे की मेहनत, कोशिश, जिज्ञासा और लगातार काम में लगे रहने जैसे गुणों की तारीफ करें। उसका मूल्यांकन सिर्फ नंबर और रिजल्ट से न करें। उसकी ईमानदार कोशिश को सराहें। ये कहने की बजाय कि "यू आर द बेस्ट" ये कहें- "इस मुश्किल समय में तुमने जितनी मेहनत के साथ कोशिश की है, मुझे तुम पर बहुत गर्व है।" इस तरह बच्चा सिर्फ ट्रॉफी का नहीं, बल्कि जीवन में लगातार मेहनत करते रहने का महत्व समझता है। 2. शुरू से ही असफलता को भी नॉर्मलाइज करें बच्चा अगर असफल भी हो तो उसे उस असफलता को महसूस करने दें। उसके बारे में बात करें। हर बाधा को हमेशा दूर करने की कोशिश न करें। बच्चे को अपनी फीलिंग्स को आइडेंटीफाई करने में मदद करें। उसे असफलता से सीखने दें। हर वक्त प्रोटेक्ट न करें। 3. सफलता ही पहचान नहीं है बच्चे को ऐसे सिखाएं कि सफलता ही उसकी पहचान न बन जाए। उसे सिखाएं कि जीवन में अच्छा करना कोई अंतिम मंजिल नहीं, बल्कि एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। हम लगातार कोशिश करते रहते हैं और धीरे-धीरे बेहतर होते हैं। ये कोई मेडल नहीं है, जो मिलता है या खो जाता है। 4. इमोशनल रेगुलेशन सिखाएं बच्चे को अपनी भावनाओं को समझना और रेगुलेट करना सिखाएं। असफलता, नाराजगी, फ्रस्टेशन, सभी चीजों को हैंडल करना सिखाएं। अगर माता-पिता बच्चों से असफलता के बारे में बात करें, उसे स्वीकारना और आगे बढ़ना सिखाएं तो बच्चे भीतर से मजबूत होते हैं। 5. बदलावों के लिए तैयार करें बच्चे को जीवन में हर तरह के बदलावों के लिए तैयार करें। उससे प्रतिस्पर्द्धा, विविधता जैसे विषयों पर बात करें। सफलता की ओर इस संवाद का मकसद ये नहीं है कि जीवन में असफलता हो ही नहीं, बल्कि इसका मकसद है असफलता को स्वीकारना और उससे सीखना। सफलता को इस तरह समझना और उसके लिए सतत प्रयास करना कि वह बार-बार दोहराई जाए। वह अर्थवान हो। जीवन के इस मोड़ पर माता-पिता और बेटे, दोनों के लिए यह सीखने का एक अच्छा मौका है कि- निष्कर्ष बतौर पेरेंट आपकी फिक्र वाजिब है, लेकिन जैसाकि आपने पढ़ा और समझा कि यह एक अच्छा मौका भी है। बतौर पेरेंट आपके लिए और आपके बेटे के लिए भी। जीवन में कभी–न–कभी यह मोड़ भी आता ही है। ये अब आया है तो इससे जीवन के जरूरी सबक सीखकर आपका बेटा भी ज्यादा मैच्योर बनकर बाहर आएगा।