एक डिजिटल ताकत के रूप में भारत के उदय ने समृद्धि, दक्षता और अंतरराष्ट्रीय ख्याति तो दिलाई है, हमें साइबर हमलों का निशाना भी बनाया है। अब जब साइबर हमले हमारे वित्तीय, सैन्य और प्रशासनिक नेटवर्क में सेंध लगा रहे हैं, तो राष्ट्रीय सुरक्षा का नया दायरा अब सिर्फ जमीन, समुद्र या हवा तक सीमित नहीं रह गया है- यह साइबरस्पेस में भी उतना ही व्यापक है। नेशनल स्टॉक एक्सचेंज पर हर दिन लगभग 17 करोड़ साइबर हमले होते हैं! ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत की डिजिटल प्रणालियों पर 24 घंटों में 40 करोड़ से ज्यादा हमले किए गए। इस बात में कोई संदेह नहीं रहना चाहिए कि भारत एक विशाल, अदृश्य युद्धक्षेत्र के केंद्र में है। आधुनिक युग के युद्ध अब टैंकों की गड़गड़ाहट या विमानों की गर्जना से शुरू नहीं होते; वे केबल्स, क्लाउड्स और कोड के जरिए चुपचाप आगे बढ़ते हैं। ऐसे में साइबर योद्धा आज अग्रिम पंक्ति के सैनिक जितने ही महत्वपूर्ण हो गए हैं। एक डिजिटल राष्ट्र के साइबरस्पेस में सेंधमारी वित्तीय क्षमताओं को पंगु बना सकती है, बुनियादी ढांचे को नुकसान पहुंचा सकती है और एक भी गोली चलने से पहले जनता का विश्वास खत्म कर सकती है। कई साल पहले जब मैं लंदन में रहता था और मेरे पास नकदी नहीं होने के बावजूद डिजिटल कार्ड हर जगह मेरे काम आते थे- राशन खरीदने से लेकर बिजली के बिल चुकाने और परिवहन तक- तो मैं इस स्थिति पर ताज्जुब करता था। लेकिन आज भारत उससे भी आगे बढ़ चुका है। हम एक समाज के रूप में जुड़े हुए हैं और इंटरनेट की पहुंच सब जगह है। ये हालात सुविधाजनक हैं, लेकिन सुरक्षा के लिए खतरे भी पैदा करते हैं। आज साइबर हमले छोटे-मोटे अपराधों से कहीं आगे निकल गए हैं। अब ये किसी हैकर द्वारा त्वरित मुनाफा कमाने के इरादे से नहीं, बल्कि संगठित समूहों, आपराधिक गिरोहों और तेजी से बढ़ते राज्य-प्रायोजित विरोधियों द्वारा भारत की डिजिटल क्षमता की सीमाओं को परखने के इरादे से किए जा रहे हैं। इनके उद्देश्य अलग-अलग हैं- कुछ पैसों के पीछे भागते हैं, कुछ अराजकता की तलाश करते हैं। लेकिन सभी का मकसद डिजिटल इनोवेशन का वैश्विक प्रतीक बन चुके भारत की विश्वसनीयता को कमजोर करना है। दुनिया के सॉफ्टवेयर केंद्र, यूपीआई के अग्रदूत और सबसे उन्नत डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचों में से एक के निर्माता के रूप में भारत के उदय ने न केवल अर्थव्यवस्था को बदल दिया है, बल्कि उन लोगों का भी ध्यान आकर्षित किया है जो हमें कमजोर होते देखना चाहते हैं। आज भारत के यूपीआई सिस्टम, डिजिटल भुगतान नेटवर्क या फिनटेक गेटवे को बाधित करना उसकी विकास-गाथा की नींव पर प्रहार करना है। स्किनवेयर हमलों ने इस खतरे को चिंतनीय बना दिया है। ये केवल कोड की पंक्तियां नहीं होतीं, बल्कि ये छद्म पहचान और धोखे के सुनियोजित ऑपरेशन हैं, जिनमें साइबर अपराधी धोखाधड़ी करने के लिए विश्वास और अज्ञानता का फायदा उठाते हैं। तथाकथित डिजिटल अरेस्ट, फर्जी ऋण प्रस्ताव और पहचान की चोरी के मामले बढ़ रहे हैं। विडंबना यह है कि ऐसे कई ऑपरेशन उन्हीं शहरों से जुड़े हैं, जो भारत की डिजिटल क्रांति को गति प्रदान करते हैं- बेंगलुरु, हैदराबाद और चेन्नई। आपराधिक नेटवर्क में पैर जमाने के लिए सैकड़ों छोटे ऑनलाइन सिस्टम की लगातार जांच या उनमें घुसपैठ की जाती है। विरोधी देशों और आतंकवादी समूहों के लिए इन सिस्टम को नुकसान पहुंचाना या डिजिटल बाजार में भारत की विश्वसनीयता को कम करना उसे क्षति पहुंचाने का किफायती तरीका है। एक ओर बैंकों, स्टॉक एक्सचेंजों और भुगतान प्रणालियों पर आर्थिक रूप से प्रेरित हमले हैं, जहां एक भी व्यवधान लेनदेन को रोक सकता है और बाजारों में व्यापक दहशत पैदा कर सकता है। दूसरी ओर, देश को चलाने वाले महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे- बिजली ग्रिड, हवाई अड्डे, जल नेटवर्क और रेलवे को निशाना बनाया जा रहा है। इसके बावजूद सबसे घातक वे ऑपरेशन हैं, जिनका उद्देश्य सूचनाओं में हेरफेर करना, झूठे दावे फैलाना या रक्षा एवं अनुसंधान नेटवर्क से संवेदनशील डेटा को चुपचाप चुराना है। ऐसा हर हमला हमारे विश्वास को कम करता है और साइबरस्पेस में विश्वास ही सबसे बड़ी पूंजी है। भारत के सामने मौजूद खतरा उसकी डिजिटल सफलता और उसकी विशाल कनेक्टिविटी के अनुपात में है। 90 करोड़ से ज्यादा इंटरनेट उपयोगकर्ताओं, एक अरब से ज्यादा मोबाइल कनेक्शनों और दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती डिजिटल अर्थव्यवस्थाओं में से एक होने के कारण हमारे यहां हमले का दायरा बहुत बड़ा हो जाता है। एआई हमारे लिए अवसर और जोखिम दोनों को बढ़ा रहा है। एआई सिस्टम्स विशाल डेटा प्रवाह का विश्लेषण करते हुए तेजी से प्रतिक्रिया कर सकते हैं, लेकिन चिंतनीय यह है कि वे हमलावरों को भी इतना ही सक्षम बनाते हैं। (ये लेखक के अपने विचार हैं)