सवाल- मैं 2 साल से रिलेशनशिप में हूं। मेरा बॉयफ्रेंड ‘मनमर्जियां’ फिल्म के विक्की कौशल की तरह है। हर चीज में अच्छा है, रोमांटिक है, लेकिन एक पैसे की जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं है। चाहे उसकी जिंदगी का मसला हो या हमारी रिलेशनशिप का, हर छोटी-से-छोटी और बड़ी-से-बड़ी बात मुझे ही डिसाइड करनी पड़ती है। यहां तक कि हम वीकेंड में क्या करेंगे, कौन सी मूवी देखेंगे, रेस्टोरेंट में क्या ऑर्डर करना है, वो सब मेरे ऊपर छोड़ देता है। शुरू में तो लगता था कि वो मुझे इंपॉर्टेंस दे रहा है, लेकिन ये बात मुझे ईरीटेट करने लगी है। क्या ऐसे व्यक्ति के साथ रहा जा सकता है, जो एक मामूली सा डिसिजन भी खुद न ले सके? एक्सपर्ट: डॉ. जया सुकुल, क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट, नोएडा जवाब: सबसे पहले तो आपकी तारीफ बनती है कि आपने अपनी फीलिंग्स को इतने स्पष्ट तरीके से समझा और लिखा। ज्यादातर लड़कियां रिलेशनशिप में ऐसी बातों को नजरअंदाज कर देती हैं। सोचती हैं कि चलो, वो अच्छा इंसान है, बाकी चीजें ठीक हो जाएंगी। जबकि सच ये है कि यही छोटी-छोटी बातें आगे जाकर बड़ी समस्या बन सकती हैं। दो साल का रिश्ता कोई छोटी बात नहीं है, लेकिन अगर पार्टनर रिस्पॉन्सिबिल नहीं है, तो ये एक बड़ा रेड फ्लैग हो सकता है। ये इंपॉर्टेंस देना नहीं, जिम्मेदारी से भागना है आपने जो सिचुएशन बताई है, वह आजकल के रिलेशनशिप में काफी कॉमन होती जा रही है। अक्सर लोग कहते हैं कि वो मुझे बहुत इंपॉर्टेंस देता है। हर काम मेरी पसंद से ही होते हैं, वो बहुत कूल नेचर का है। वहीं समय के साथ जब हर छोटे-बड़े फैसले की जिम्मेदारी एक ही व्यक्ति पर आने लगती है, तो वही स्पेस बोझ में बदल जाता है। रिश्ते में सिर्फ प्यार होना काफी नहीं। किसी भी स्वस्थ रिश्ते का मजबूत आधार रिस्पॉन्सिबिलिटी शेयर करना और डिसीजन मेकिंग में बराबर की हिस्सेदारी है। बात मूवी, रेस्त्रां की नहीं, जिम्मेदार होने की है आपकी सिचुएशन में असली परेशानी ही यही है कि आपका पार्टनर खुद किसी बात की जिम्मेदारी नहीं उठा रहा है। रिश्ते में ऐसी इमोशनल पैसिविटी आगे चलकर बड़ी समस्या बन सकती है। आज बात मूवी चुनने या रेस्टोरेंट तय करने तक है, लेकिन कल यही पैटर्न घर, करियर, बच्चों की परवरिश, पैसों के मैनेजमेंट और परिवार से जुड़े फैसलों में भी दिख सकता है। लोग जिम्मेदारी से क्यों बचते हैं? यह समझना बहुत जरूरी है कि आपका पार्टनर ऐसा क्यों कर रहा है। इसके कुछ सामान्य कारण हो सकते हैं। कभी-कभी ये आदतें बचपन की परवरिश से आती हैं, कभी व्यक्तिगत कमियां होती हैं। लेकिन वजह जो भी हो, ये कमियां आपके रिश्ते को प्रभावित कर रही हैं। आत्मविश्वास की कमी: कुछ लोग खुद पर भरोसा नहीं करते। उन्हें लगता है कि उनका फैसला गलत हो सकता है, इसलिए वे हर चीज दूसरों पर छोड़ देते हैं। जैसे, अगर वो कोई मूवी चुनते हैं और आपको पसंद नहीं आती, तो उन्हें डर लगता है कि आप नाराज हो जाएंगी। इमोशनल इममैच्योरिटी: कभी-कभी लोग रिलेशनशिप में होते हैं, लेकिन खुद को अभी भी सिंगल माइंडसेट में रखते हैं। मतलब उन्हें साथ निभाने की जिम्मेदारी का एहसास नहीं होता है। वे सोचते हैं कि रिश्ते में सब ठीक चल रहा है, फैसले लेने की क्या जरूरत है। आलस या अवॉइडेंस: कुछ मामलों में ये सिर्फ आलस होता है। इसमें लोग सोचते हैं कि जब दूसरा संभाल रहा है तो क्यों परेशान होना है। ओवर पैंपर्ड बचपन: अगर व्यक्ति के पेरेंट्स ने लाड़-प्यार के चक्कर में अपने बच्चे के जीवन के सारे फैसले खुद लिए हैं, तो उसमें जिम्मेदारी लेने की आदत विकसित नहीं हो पाती है। ओवर प्रोटेक्टिव परवरिश: अपने बच्चे को हर तरह की मुश्किल से बचाने के लिए पेरेंट्स ने कभी बच्चे को जिम्मेदारी वाले काम नहीं करने दिए, तो बड़ा होकर भी वो यही पैटर्न दोहराएगा। असहमति का डर: कुछ लोग किसी भी असहमति से बचना चाहते हैं। इसलिए हमेशा कहते हैं, जो तुम्हें ठीक लगे वही कर लेते हैं, ताकि विवाद ही न हो। ये एक तरह का पैसिव-अग्रेसिव बिहेवियर है, जहां वो जिम्मेदारी से बचकर शांति बनाए रखना चाहते हैं। जब आप अपने पार्टनर के गैरजिम्मेदार रवैए के कारणों को समझेंगी तो नाराजगी सिर्फ व्यक्तिगत नहीं रहेगी। समझ का दायरा बढ़ेगा। लेकिन याद रखें, सिर्फ वजह जानना समस्या का हल नहीं है, पार्टनर के नेचर में बदलाव जरूरी है। इस बिहेवियर का असर क्या होता है? जब रिश्ते में एक ही शख्स सारी जिम्मेदारी निभाता है, तो धीरे-धीरे थकान हावी होने लगती है। आपको लगता है कि आप अकेले हैं, रिश्ते का सारा बोझ आप ढो रहे हैं। ये इमोशनल बर्नआउट की वजह बन सकता है। बहुत समय तक ऐसी ही सिचुएशन चले तो ये रिश्ते में रिजेंटमेंट (कड़वाहट, नाराजगी) पैदा करता है। अगर ये जारी रहे, तो रिश्ता टूटने की भी नौबत आ सकती है। आपको सबसे पहले क्या करना चाहिए? सबसे पहले तो खुलकर, स्पष्ट बातचीत करें। बातचीत करते समय ध्यान रखें कि आरोप लगाने वाले वाक्य न बोलें। जैसेकि- ये तरीका उसे डिफेंसिव नहीं बनाएगा, बल्कि वो आपकी फीलिंग्स समझेगा। बातचीत के लिए एक शांत समय चुनें, जैसे वीकेंड पर कॉफी पीते हुए बात करें। इसे रेड फ्लैग कब मानें? अगर बात करने के बाद भी वह इसे अपनी कमी के रूप में स्वीकार नहीं कर रहा है तो ये भी निश्चित है कि वह बदलाव भी नहीं करेगा। ये रेड फ्लैग है अगर- यह रिश्ता आगे चलकर कैसा होगा? ये सवाल आपको खुद से ही पूछना होगा। क्या आप पूरी जिंदगी सभी फैसलों की जिम्मेदारी अकेले उठाना चाहती हैं? प्यार जरूरी है, लेकिन रिश्ता तभी चलता है, जब जिम्मेदारी और फैसले दोनों लोग मिलकर निभाएं। यह भी प्यार का ही जरूरी हिस्सा है। जहां एक ही शख्स सारी जिम्मेदारी संभालता है, वहां रिश्ता धीरे-धीरे बोझ बन जाता है। आपको इंतजार करना चाहिए या आगे बढ़ जाना चाहिए? अगर आपका पार्टनर अपनी कमी को स्वीकार कर रहा है, खुद में बदलाव करने की कोशिश कर रहा है, काउंसलिंग के लिए तैयार है, तो रिश्ते को एक मौका देना चाहिए। यह ठीक और समझदारी भरा फैसला है। उसे धीरे-धीरे छोटी-छोटी जिम्मेदारियां दें। वहीं अगर वह इसे कोई कमी ही नहीं मानता है, जिम्मेदारी लेना नहीं चाहता है, बदलाव की जरूरत ही नहीं समझता है तो आगे चलकर यह समस्या और बिगड़ती जाएगी। ऐसे मामले में अपने जीवन, आत्मसम्मान और ऊर्जा को तवज्जो देना ही एक समझदार फैसला है। खुद का ख्याल कैसे रखें? इस दौरान खुद को नजरअंदाज न करें। दोस्तों से बात करें, जर्नल लिखें, अपनी हॉबीज पर फोकस करें। अगर जरूरत लगे तो सिंगल काउंसलिंग लें। याद रखें, आपका फैसला आपकी शांति के लिए है। आखिरी बात रिश्ता कोई बोझ नहीं, जिसे अकेले ढोया जाए। सच्चा रिश्ता वो है, जिसमें दोनों साथ चलें, साथ गिरें-संभलें और साथ फैसले लें। भावनाओं में बहकर नहीं, समझदारी से फैसला लें। पहले बातचीत करें, बदलाव का अवसर दें, जरूरत हो तो काउंसलिंग लें। लेकिन अगर वह जिम्मेदारी नहीं लेना चाहता, तो रिश्ते से पहले खुद को चुनें। अपनी खुशी और सुकून को चुनें। एक बात जो हमारा समाज और परवरिश हमें नहीं सिखाती, वो ये है कि जीवन में रिश्ते महत्वपूर्ण तो हैं, लेकिन हम सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। अगर हम खुश नहीं रहेंगे तो रिश्ता भी खुशहाल नहीं होगा। इसलिए अंत में हमेशा खुद को चुनना बेहतर होता है। ……………… ये खबर भी पढ़िए रिलेशनशिप एडवाइज- पार्टी–मूवी में गर्लफ्रेंड हमेशा साथ: लेकिन जरूरत या क्राइसिस में कभी नहीं, बिना ब्लेम किए ये बात कैसे कहूं आप जो महसूस कर रहे हैं, वो बिल्कुल गलत नहीं है। अच्छे वक्त में साथ निभाना आसान है, हंसी-मजाक, पार्टी, घूमना-फिरना होता है। असली रिश्ते की परीक्षा तब होती है जब जिंदगी मुश्किल हो जाए, जब अस्पताल के बिस्तर पर लेटे हों, जब नौकरी की टेंशन हो, जब घर में कोई दुख हो, जब रात को नींद न आए। उस वक्त अगर पार्टनर साथ नहीं होता, तो दिल में एक खालीपन सा हो जाता है। आपका ये खालीपन जायज है। पूरी खबर पढ़िए...