Bluetooth Earphones Cancer Risk: क्या कान में ब्लूटूथ ईयरफोन लगाने से भी हो जाता है कैंसर, क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स?

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Do Bluetooth Earphones Cause Cancer: आजकल हर चलते-फिरते इंसान या काम करते इंसान के कानों में आपको ब्लूटूथ ईयरफोन दिख जाएगा. यह इतना कॉमन हो चुका है कि इसे ऐसे भी कह सकते हैं कि ब्लूटूथ वायरलेस हेडफोन आज के दौर की एक आम टेक्नोलॉजी बन चुके हैं, लेकिन इन्हें लेकर लोगों के मन में अक्सर सवाल रहता है कि क्या इनका इस्तेमाल हमारी सेहत के लिए नुकसानदायक हो सकता है? यह सच है कि ब्लूटूथ डिवाइस से रेडिएशन निकलती है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वायरलेस ईयरबड्स से तुरंत खतरा पैदा हो जाता है।साल 2015 में, साइंटिस्ट के एक ग्रुप ने एक याचिका पर हस्ताक्षर किए थे, जिसमें नॉन-आयोनाइजिंग इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फील्ड टेक्नोलॉजी से होने वाले संभावित स्वास्थ्य जोखिमों, जैसे कैंसर, को लेकर गंभीर चिंता जताई गई थी. ब्लूटूथ डिवाइस इसी ईएमएफ टेक्नोलॉजी पर काम करते हैं. हालांकि, नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट का साफ कहना है कि अब तक ऐसा कोई साइंटफिक प्रूफ नहीं मिला है, जो वायरलेस डिवाइस के इस्तेमाल को सीधे कैंसर या दूसरी बीमारियों से जोड़ता हो. उल्टा, संस्था ब्लूटूथ को मोबाइल फोन इस्तेमाल करने का अपेक्षाकृत सुरक्षित तरीका मानती है. तो ऐसे में हमारे मन में यह सवाल उठता है कि ब्लूटूथ टेक्नोलॉजी वाले वायरलेस हेडफोन से कैंसर जैसे गंभीर खतरे का रिस्क आखिर कितना है?कैंसर का खतरा कितना?ब्लूटूथ एक ऐसी टेक्नोलॉजी है, जो दो डिवाइस के बीच कम दूरी में वायरलेस कनेक्शन बनाती है. इसमें शॉर्ट-रेंज रेडियो फ्रिक्वेंसी का इस्तेमाल होता है, जिससे पास-पास मौजूद डिवाइस आपस में जुड़ते हैं. ब्लूटूथ डिवाइस रेडियो फ्रिक्वेंसी रेडिएशन का इस्तेमाल करते हैं, यह इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन का ही एक रूप है, जो इलेक्ट्रिक और मैग्नेटिक फील्ड के जरिए तरंगों में फैलती है. आरएफ रेडिएशन नेचुरल और आर्टिफिशियल, दोनों रूपों में मौजूद होती है. मोबाइल फोन, एम-एफएम रेडियो और टेलीविजन भी इसी तरह की रेडिएशन छोड़ते हैं.क्या कहते हैं एक्सपर्ट?यूनिवर्सिटी ऑफ पेंसिल्वेनिया के बायोइंजीनियरिंग प्रोफेसर एमेरिटस केन फोस्टर के मुताबिक, ब्लूटूथ डिवाइस मोबाइल फोन की तुलना में थोड़ी कम रेडिएशन छोड़ते हैं. अगर कोई व्यक्ति रोज कई घंटों तक ब्लूटूथ हेडफोन का इस्तेमाल करता है, तो एक्सपोज़र बढ़ सकता है, लेकिन फिर भी यह मोबाइल फोन को सीधे कान से लगाकर बात करने से कम होता है.रेडिएशन और कैंसर का क्या संबंध है?रेडिएशन मुख्य रूप से दो तरह की होती है, नॉन-आयोनाइजिंग और आयोनाइजिंग.  नॉन-आयोनाइजिंग रेडिएशन में इतनी ऊर्जा नहीं होती कि वह परमाणुओं से इलेक्ट्रॉन निकाल सके, जबकि आयोनाइजिंग रेडिएशन ऐसा कर सकती है. नॉन-आयोनाइजिंग रेडिएशन, जैसे आरएफ रेडिएशन, कम ऊर्जा वाली होती है और आमतौर पर इसे सेहत के लिए कम खतरनाक माना जाता है। वहीं, आयोनाइजिंग रेडिएशन जैसे एक्स-रे या रेडियोएक्टिव वेस्ट टिश्यू और डीएनए को नुकसान पहुंचा सकती है. अगर शरीर खराब हुई सेल्स को ठीक न कर पाए, तो वे कैंसर में बदल सकती हैं. कैंसर पैदा करने वाले तत्वों या एक्सपोज़र को कार्सिनोजेन कहा जाता है. कुछ मेडिकल ट्रीटमेंट्स, जैसे रेडिएशन थेरेपी, इसी श्रेणी में आते हैं. लेकिन मौजूदा साइंटफिक जानकारी के आधार पर ब्लूटूथ डिवाइस से निकलने वाली नॉन-आयोनाइजिंग रेडिएशन को सीधे कैंसर से जोड़ने का कोई पुख्ता सबूत नहीं है.इसे भी पढ़ें- Antibiotic Resistance: एंटीबायोटिक का गलत इस्तेमाल बढ़ा रहा खतरा, पीएम मोदी ने भी किया जिक्र, जानें यह कितना खतरनाक?Disclaimer: यह जानकारी रिसर्च स्टडीज और विशेषज्ञों की राय पर आधारित है. इसे मेडिकल सलाह का विकल्प न मानें. किसी भी नई गतिविधि या व्यायाम को अपनाने से पहले अपने डॉक्टर या संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.