The Taj Story Review: बाबूराव की सिनेमा के साथ हेराफेरी,ऐसी प्रोपेगैंडा फिल्में सिनेमा पर सिर्फ और सिर्फ दाग लगाने का काम करती हैं

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फिल्म का नाम: 'द ताज स्टोरी'स्टारकास्ट: परेश रावल, जाकिर हुसैन, अमृता खानविलकर, नमित दास, अखिलेंद्र मिश्रा, बिजेंद्र काला, शिशिर शर्मा और अनिल जॉर्जरेटिंग: 0 स्टार्सएक तरफ बहस इस पर हो रही है कि हिंदी सिनेमा में कुछ नया क्यों नहीं हो रहा, साउथ की फिल्में ज्यादा क्यों चल रही हैं, सुपरस्टार्स की फिल्में क्यों नहीं चल रही. दूसरी तरफ सिनेमा में दो घंटे 40 मिनट की फिल्म में बहस इस पर हो रही है कि ताज महल मंदिर है या मकबरा.वो परेश रावल जिन्हें लेकर खबर आती है कि उन्हें दृश्यम 3 जैसी फिल्मों की स्क्रिप्ट पसंद नहीं आई. उन्हें ऐसी स्क्रिप्ट पसंद आ जाती है जो शायद सिर्फ और सिर्फ नफरत फैलाने का काम करेगी. अगर कोई सच छिपा है तो सरकार को उसे बाहर लाने दीजिए, सरकार का काम सरकार को करने दीजिए. आप अच्छा सिनेमा दीजिए, सिनेमा के नाम पर एजेंडा और प्रोपेगैंडा मत फैलाइए.कहानी- विष्णु दास ताज महल में गाइड हैं,ताज महल से ही रोजी रोटी चलती है, लेकिन फिर वो कोर्ट में एक याचिका दायर कर देते हैं कि ताज महल तो मंदिर है, फिर क्या होता है, ये देखने थिएटर मत जाइएगा क्योंकि ऐसी फिल्में नहीं देखनी चाहिए, ये सिर्फ एक खास एजेंडा और प्रोपैगैंडा के तरह बनाई जाती हैं और ये फिल्म देखकर ये बात समझ आती है.कैसी है फिल्म- ये फिल्म देखकर समझ आता है कि इसे ना तो समाज का कोई फायदा होने वाला है, ना सिनेमा का, ऐसी फिल्में सिनेमा पर दाग होती हैं. सिनेमा समाज का आइना है, अगर वो ऐसी फिल्में बनाएगा जिससे समाज को, देश को कुछ मिले तो सिनेमा सार्थक होता है, लेकिन जिस मुद्दे पर कोई सही फैसला कभी ना आया हो, जिससे सिर्फ नफरत ही फैले, ऐसी फिल्म बनाने का क्या ही फायदा.इस फिल्म के एंड में अलग अलग न्यूज रिपोर्ट्स का हवाला दिया जाता है, यानी मेकर्स के पास खुद का कुछ कहने को नहीं था,ताज महल देखने हर तरह के लोग जाते हैं, ये दुनिया के सात अजूबों में से एक है,आगरा और इंडिया में टूरिज्म का सबसे बड़ा जरिया है, और इस फिल्म में जो दिखाया गया है वो कहीं से आपको सही नहीं लगता.OMG में जब परेश रावल भगवान पर सवाल उठाते हुए दिखे थे तो उसमें एक लॉजिक नजर आया था. भगवान की जगह गरीब को दूध पिलाने वाली बात समझ में आई थी. उस गरीब के धर्म जाति की बात नहीं की गई थी, लेकिन यहां जो भी दिखाया जाता है वो सिर्फ और सिर्फ एक एजेंडा लगता है.ऐसा लगता है कि इसकी जरूरत नहीं थी, ऐसी फिल्मों को कतई नहीं देखा जाना चाहिए क्योंकि अगर ऐसी फिल्में देखी जाएंगी तो ये सिर्फ नफरत फैलाएंगी और इस फिल्म को लेकर कई चर्चा नहीं हैं, और ये बताता है कि दर्शक भी समझदार है और वो इन फिल्मों के जाल में अब नहीं फंसने वाला.एक्टिंग- परेश रावल अच्छे एक्टर हैं लेकिन यहां उनकी एक्टिंग पर बात ही करना जरूरी नहीं लगता, वो बस ताज महल का मजाक बनाने में लगे दिखते हैं,जब वो डायलॉग बोलते हैं कि शाहजहां ने जन्नत जाने के रास्ते बना दिए, वो भी 8 देखो सर्विस रोड भी बनाई होगी, तो ये उनके किरदार को और हल्का कर देता है.जाकिर हुसैन ने ठीक काम किया है लेकिन क्योंकि वो परेश रावल के अपोजिट हैं तो उन्हें कई बार कमजोर और लाचार दिखा दिया जाता है, इनके अलावा ऐसे कोई एक्टर नहीं जिनका जिक्र किया जाए.राइटिंग और डायरेक्शन-तुषार अमरीश गोयल और सौरभ पांडे ने फिल्म लिखी है और तुषार अमरीश गोयल ने डायरेक्ट की है, ये लोग अगर कोई ऐसी फिल्म बनाते जो सोसाइटी, देश और दर्शक के लिए कुछ अच्छा करती तो इनकी बात करनी बनती थी, ये किसी भी चीज को ठीक से नहीं दिखा पाए, आप कन्विंस ही नहीं होते इस राइटिंग से, ऐसी फिल्मों को रेटिंग देना सिनेमा का अपमान है.रेटिंग-0 स्टार्सये भी पढ़ें:-'दिया और बाती हम' की इस एक्ट्रेस ने 157 शो करने के बाद ग्लैमरस वर्ल्ड को कहा अलविदा, पति को छोड़ संन्यासी बन भिक्षा मांग कर रही गुजारा