27 नवंबर 2024 को भारत ने बाल विवाह के खिलाफ अपने संघर्ष में एक नया अध्याय जोड़ा था और वह था राष्ट्रव्यापी ‘बाल विवाह मुक्त भारत’ अभियान की शुरुआत। भारत सरकार के नेतृत्व में बाल विवाह मुक्त भारत अभियान ने सरकार और समाज, दोनों के संकल्प की ऊर्जा को एक दिशा में मोड़ा। नतीजे में बदलाव जमीन पर भी दिख रहा है। पिछले एक वर्ष में एक लाख से अधिक बाल विवाह रोके गए, लेकिन राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे-5 (2019-21) के अनुसार भारत में 20-24 आयु वर्ग की 23.3% महिलाएं 18 वर्ष से पहले ही ब्याह दी गई थीं। इनमें से हर बच्चा एक चेहरा है, एक कहानी है और उसके पीछे हार न मानने का संघर्ष है। अब यही संघर्ष देश में सामाजिक व्यवहार और चेतना में परिवर्तन का रूप ले रहा है। लोग न केवल बाल विवाह के खिलाफ आगे आ रहे हैं, बल्कि बच्चों की सुरक्षा के लिए सहयोगी तंत्र भी तैयार कर रहे हैं। कर्नाटक के चित्रदुर्ग में 13 वर्ष की एक बच्ची के परिवार ने फैसला कर लिया था कि उसका विवाह हर हाल में होगा, चाहे उसकी मर्जी हो या नहीं। बच्ची ने स्कूल में रहने की विनती की, पर किसी ने नहीं सुना। विवाह की रस्में शुरू हुईं तो वह खुद को छुड़ाकर भाग निकली। उसकी चीख–पुकार सुन ग्रामीण इकट्ठे हुए, उन्होंने वीडियो रिकॉर्ड किए और पुलिस को बुलाया। अधिकारी समय पर पहुंचे और बच्ची बच गई। पश्चिम बंगाल के बीरभूम में स्कूल के ड्रॉप बॉक्स में एक छोटी चिट्ठी मिली : मैम, मेरी मदद कीजिए। मेरे माता–पिता मेरा विवाह कर रहे हैं। शिक्षिका ने लिखावट पहचान ली, बच्ची को खोज निकाला और पुलिस को सूचना दी। इसके कानूनी नतीजे समझाए जाने पर माता-पिता पीछे हट गए और बच्ची वापस स्कूल लौट गई। ये वाकये दिखाते हैं कि देश में बाल विवाह के खिलाफ आंदोलन कितना जोर पकड़ चुका है। इसके बावजूद आज भारत में हर मिनट तीन लड़कियों का विवाह कर दिया जाता है। बाल विवाह एक बच्चे के अधिकारों का उल्लंघन है, जो उससे उसकी स्वायत्तता, सुरक्षा और स्वतंत्रता छीन लेता है। एक बात बिल्कुल स्पष्ट होनी चाहिए- एक बच्चे के साथ विवाह के भीतर बनाया गया यौन संबंध भी बलात्कार है। यह अनैतिक है। यह जश्न का विषय नहीं हो सकता। इसलिए कि एक बच्चा विवाह के लिए सहमति देने में सक्षम ही नहीं है, और ऐसे में उसका विवाह हिंसा है। बाल विवाह लड़कियों की सुरक्षा का सबसे बड़ा शत्रु है और उनकी शिक्षा में सबसे बड़ा अवरोध। यह लड़कियों को स्कूल और अंततः कार्यबल से बाहर कर देता है। यह स्वास्थ्य संकट भी है। किशोरावस्था में गर्भधारण से प्रसव के समय मृत्यु का खतरा, प्रसूति जटिलताएं, एनीमिया और मानसिक स्वास्थ्य जोखिम बढ़ जाते हैं। कम उम्र की माताओं से जन्मे शिशुओं में समय-पूर्व जन्म, कम वजन और जच्चा-बच्चा की मृत्यु का खतरा ज्यादा होता है। यह आर्थिक संकट भी है। जब शिक्षा, पोषण और प्राथमिक स्वास्थ्य को मजबूत करने के लिए होने वाला व्यय स्वास्थ्य- संकटों पर खर्च हो जाए, तो सार्वजनिक कोष पर दबाव बढ़ता है। विश्व बैंक ने 2017 में चेताया था कि 2030 तक विकासशील देशों को बाल विवाह के कारण खरबों डॉलर की कीमत चुकानी पड़ सकती है। बच्चों के पास बड़ों के फैसले मानने के अलावा कोई रास्ता नहीं होता। यह परिवार, समुदाय और राज्य की जिम्मेदारी है कि बच्चों का अहित न हो। न्याय प्रणाली को अकसर अपराध के बाद हस्तक्षेप करते हुए देखा जाता है पर न्याय का असली सार रोकथाम है, क्योंकि अपराध के बाद बच्चा कभी पहले जैसा नहीं रहता। रोकथाम तब शुरू होती है, जब लड़की को उसकी पढ़ाई जारी रखने में मदद की जाती है, जब छात्रवृत्तियां और सशर्त कैश ट्रांसफर उसकी शिक्षा पूरी करने में मददगार होते हैं, जब आर्थिक रूप से कमजोर परिवार कल्याण योजनाओं से जुड़े होते हैं और जब अभिभावकों के लिए बच्ची के बाल विवाह के बजाय उन्हें पढ़ाना ज्यादा आकर्षक विकल्प बन जाए। पढ़ाई नहीं कर रहे बच्चे विवाह में धकेले जाने के अधिक जोखिम में होते हैं। (ये लेखक के अपने विचार हैं)