बुक रिव्यू- डिसिप्लिन से नहीं, खुशी से आती है प्रोडक्टिविटी:वो करें, जिससे प्यार हो, जिसमें खुशी मिले, फिर न होगी थकान, न तनाव

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किताब का नाम: फील गुड प्रोडक्टिविटी (‘फील गुड प्रोडक्टिविटी’ का हिंदी अनुवाद) लेखक: अली अब्दाल अनुवाद: महेन्द्र नारायण सिंह यादव प्रकाशक: मंजुल मूल्य: 399 रुपए काम का बोझ, डेडलाइन का दबाव और लगातार थकान, आज की भागती जिंदगी में ये सब आम हो गए हैं। लेकिन क्या होगा अगर कोई कहे कि प्रोडक्टिव बनने के लिए आपको और मेहनत करने की जरूरत नहीं, बल्कि खुश रहने की जरूरत है? यही संदेश देती है यूट्यूबर और डॉक्टर से लेखक बने अली अब्दाल की किताब ‘फील गुड प्रोडक्टिविटी’। अली का मानना है कि जब हम अच्छा महसूस करते हैं, तभी हमारा सबसे बेहतर काम निकलता है। ये किताब तीन हिस्सों में बंटी है– एनर्जाइज, अनब्लॉक और सस्टेन। इसमें कुल 9 चैप्टर्स हैं। पहला पार्ट बताता है कि काम में खेल भाव, लोगों से जुड़ाव और खुद पर अधिकार का अहसास हमें ऊर्जा से भर देता है। दूसरा पार्ट प्रोक्रैस्टिनेशन की जड़ों (अनिश्चितता, डर, इनर्शिया) को खोलता है और उन्हें दूर करने के व्यावहारिक तरीके देता है। तीसरा पार्ट यह सिखाता है कि ये नया तरीका लंबे समय तक कैसे चलाया जाए। यह अपनी ऊर्जा बचाना और अपने काम को सबसे बड़े मूल्यों से जोड़ना सिखाता है। यह किताब न सिर्फ प्रिंसिपल बताती है बल्कि ढेर सारे व्यक्तिगत किस्से, उदाहरण और छोटे-छोटे ‘एक्सपेरिमेंट’ देकर सिखाती है कि खुशी के साथ लगातार प्रोडक्टिव रहा जा सकता है। किताब का उद्देश्य और महत्व इस किताब का मकसद हमें यह समझाना है कि प्रोडक्टिविटी का पुराना मॉडल (जितना हो सके उतना जोर लगाओ, दांत भींचो और बस करते जाओ) अब टिकाऊ नहीं रहा। अली बताते हैं कि नकारात्मक भावनाएं (डर, तनाव, गुस्सा) शॉर्ट-टर्म में तो काम चला सकती हैं, लेकिन लंबे समय में बर्नआउट की गारंटी हैं। दूसरी तरफ सकारात्मक भावनाएं हमें क्रिएटिव बनाती हैं। खासकर उन युवाओं के लिए जो पहली बार प्रोडक्टिविटी की दुनिया में कदम रख रहे हैं। यह किताब एक दोस्त की तरह हाथ थामकर चलना सिखाती है। किताब से क्या सीख मिलती है सबसे बड़ी सीख यह है कि डिसिप्लिन की एक सीमा होती है। लंबे समय तक प्रोडक्टिव रहने का एकमात्र रास्ता है– अच्छा महसूस करना। दूसरी सीख यह कि प्रोक्रैस्टिनेशन ज्यादातर डर या अनिश्चितता की वजह से होता है। इसे सजा देकर नहीं, समझकर और छोटे कदमों से दूर किया जा सकता है। तीसरी सीख कि बर्नआउट से बचने के लिए अपने काम को अपने मूल्यों से जोड़ना जरूरी है, वरना कितनी भी मेहनत कर लो, खालीपन बना रहेगा। जिंदगी जीने का नया नजरिया देती है ये किताब किताब का केंद्रीय विचार बहुत सरल लेकिन गहरा है कि “फील गुड, टू डू गुड।” अली कहते हैं कि अच्छा महसूस करना कोई लग्जरी नहीं, प्रोडक्टिविटी की नींव है। यह किताब सिर्फ काम की बात नहीं करती, जिंदगी जीने का नया नजरिया देती है। जब आप खेल-खेल में काम करने लगते हैं, रिश्तों से ऊर्जा लेते हैं और डर को नाम देकर कम करते हैं, तो तनाव अपने आप कम हो जाता है। अली कहते हैं कि बर्नआउट के तीन बड़े कारण ओवरएक्सर्शन, डिप्लीशन और मिसअलाइनमेंट है। इसे समझाकर अली बताते हैं कि सही ब्रेक लेना, प्रकृति में समय बिताना और बिना गिल्ट के आराम करना भी प्रोडक्टिविटी का हिस्सा है, जिसका नतीजा ये होता है कि मानसिक स्वास्थ्य बेहतर होता है, नींद अच्छी आती है और हर दिन का उत्साह बना रहता है। आधुनिक साइकोलॉजी से जुड़े हैं विचार किताब में रिसर्च के भारी-भरकम हवाले नहीं हैं, लेकिन अली जिन विचारों की बात करते हैं, वे आधुनिक साइकोलॉजी से जुड़े हैं। ‘बैटमैन इफेक्ट’ सेल्फ-डिस्टेंसिंग का एक मजेदार रूप है, जिस पर रिसर्च हुई है। पॉजिटिव इमोशंस ब्रॉडन-एंड-बिल्ड थ्योरी (बार्बरा फ्रेडरिक्सन) से सीधे जुड़े हैं। प्रोक्रैस्टिनेशन पर क्लैरिटी, करेज और इनर्शिया की बात टिम पिचिल और पियर्स स्टील के काम से मिलती-जुलती है। बस अली ने इन सबको कहानियों और एक्सपेरिमेंट में पिरोकर इतना आसान बना दिया है कि लगता है जैसे कोई दोस्त समझा रहा हो। किताब का सार खुश रहो, खेलो, लोगों से जुड़ो, डर को नाम दो, छोटे कदम उठाओ, अपनी ऊर्जा बचाओ, सही तरीके से रिचार्ज करो और काम को अपने सबसे बड़े मूल्यों से जोड़ो, यही फील गुड प्रोडक्टिविटी का पूरा सार है। यह किताब क्यों पढ़नी चाहिए यह किताब आपके लिए तभी परफेक्ट है, जब आप काम को बोझ नहीं बल्कि एक आसान, मजेदार और बैलेंस प्रोसेस बनाना चाहते हैं। अगर आप प्रोडक्टिविटी की दुनिया में नए हैं, लगातार तनाव से जूझ रहे हैं या छोटे-छोटे बदलावों से बड़ा फर्क देखना चाहते हैं तो यह किताब आपकी पॉजिटिव शुरुआत बन सकती है। किताब के बारे में मेरी राय अली की दोस्ताना भाषा, उनके निजी किस्से और छोटे-छोटे एक्सपेरिमेंट इस किताब को पढ़ते वक्त सचमुच खुशी देते हैं। यह उन लोगों के लिए बेस्ट है जो प्रोडक्टिविटी की शुरुआत करना चाहते हैं या जो तनाव भरी जिंदगी से बाहर निकलकर हल्का-फुल्का महसूस करना चाहते हैं। अगर आप पहले से ही डीप प्रोडक्टिविटी बुक्स (जैसे एटॉमिक हैबिट्स, डीप वर्क) पढ़ चुके हैं और डेटा-ड्रिवन, रिसर्च-हैवी बुक चाहते हैं, तो यह किताब आपको हल्की लग सकती है। कई आइडियाज (जैसे बैटमैन इफेक्ट) मजेदार तो हैं, पर मुश्किल वक्त में लंबे समय तक साथ नहीं निभाते। फिर भी, जब मन उदास हो या हिम्मत टूट रही हो, तो इस किताब को खोलिए यह आपको फिर से मुस्कुराने की वजह देगी। ........................ ये बुक रिव्यू भी पढ़िए बुक रिव्यू- जिंदगी बदलनी है तो पहले खुद को बदलें:शुरुआत करें सेल्फ हेल्प के साथ, मदद के 8 तरीके ये किताब आपको सिखाएगी हमें अपने जीवन में कई बार ऐसा महसूस होता है कि हमारी पुरानी आदतें, नकारात्मक सोच और डर भीतर ही भीतर हमें जकड़े हुए हैं। कभी अचानक गुस्सा फूट पड़ता है, कभी खुद पर शक होने लगता है तो कभी दूसरों को खुश करने की कोशिश में हम खुद को ही खो देते हैं। पढ़ें पूरी खबर...