सवाल- मैं पटना (बिहार) से हूं। मेरा एक 5 साल का बेटा है। वह अभी LKG में पढ़ता है। पिछले कुछ दिनाें से हमने नोटिस किया है कि वह पहले की तुलना में कुछ घंटे कम सो रहा है। वह देर रात 12 बजे तक सोता है और सुबह स्कूल जाने के लिए 7 बजे तक उठ जाता है। वह स्कूल से आने के बाद खेलने-कूदने में लग जाता है, दिन में भी नहीं सोता है। इसका असर उसकी सेहत पर भी दिखने लगा है। वह कुछ दिनों से चिड़चिड़ा हो गया है। हर बात पर गुस्सा करने लगा है। मैं उसे रात में समय पर सुलाने की बहुत कोशिश करती हूं, लेकिन वह खेलने-कूदने और टीवी-मोबाइल देखने में बिजी हो जाता है। शाम को जब उसके डैडी घर आते हैं तो देर तक उनके साथ बातें करता रहता है। मैं ये जानना चाहती हूं कि साइंस के मुताबिक, बच्चों को कितनी देर सोना चाहिए और इसके लिए हमें कौन से तरीके अपनाने चाहिए? कृपया मुझे गाइड करें। एक्सपर्ट: डॉ. अमिता श्रृंगी, साइकोलॉजिस्ट, फैमिली एंड चाइल्ड काउंसलर, जयपुर जवाब- मैं आपकी चिंता को समझ सकती हूं। आजकल बहुत से पेरेंट्स को इस समस्या का सामना करना पड़ता है। ज्यादा स्क्रीन टाइम और अनियमित रूटीन ने बच्चों की नींद चुरा ली है। ऐसे में सबसे पहले तो यह समझना जरूरी है कि नींद बच्चों के विकास की सबसे अहम जरूरतों में से एक है। 5 साल की उम्र में बच्चे फिजिकली और मेंटली दोनों रूप से बहुत तेजी से ग्रोथ कर रहा होते हैं। पर्याप्त नींद न मिलने से बच्चे के मूड, अटेंशन और इम्यून सिस्टम पर नेगेटिव प्रभाव पड़ता है। इस समस्या के समाधान को जानने से पहले इसके कारणों को आइडेंटिफाई करें। जब आप बच्चे की नींद पूरी न हाेने के कारणों को आइडेंटिफाई कर लेंगे तो उसकी स्लीप रूटीन को सुधारना आसान हो जाएगा। बच्चों की स्लीप टाइम लेकर साइंस क्या कहता है? अमेरिकन एकेडमी ऑफ स्लीप मेडिसिन (AASM) और नेशनल स्लीप फाउंडेशन के मुताबिक, 3-5 साल के बच्चों को रोजाना 10-13 घंटे की नींद लेनी चाहिए, जिसमें नैप (दोपहर की झपकी) भी शामिल हो। यह उम्र ब्रेन ग्रोथ का पीक टाइम है, जहां नींद मेमोरी कंसोलिडेशन और इमोशनल रेगुलेशन के लिए जरूरी है। अगर बच्चा रोज 9 घंटे से कम सो रहा है तो इसका असर उसके व्यवहार और स्वास्थ्य दोनों पर दिख सकता है। नींद की कमी से वह चिड़चिड़ा हो सकता है, किसी भी काम या पढाई- लिखाई में ध्यान केंद्रित करने में मुश्किल महसूस कर सकता है। कभी-कभी सिरदर्द या थकान की शिकायत भी कर सकता है। नीचे दिए ग्राफिक से समझिए कि उम्र के अनुसार बच्चों को कितनी देर तक सोना जरूरी है। बच्चों की अधूरी नींद के संकेत आपका बेटा 10 घंटे से कम सो रहा है और आप उसके व्यवहार में बदलाव देख रही हैं तो यह सीधे तौर पर नींद की कमी का संकेत है। इसके अलावा और भी कुछ ऐसे संकेत हैं, जो साफ बताते हैं कि बच्चे की नींद अधूरी रह रही है। अक्सर पेरेंट्स यह पहचान नहीं पाते कि बच्चा पूरी नींद नहीं ले पा रहा क्योंकि बच्चे दिन में एक्टिव दिखते हैं, लेकिन अंदर से उनका शरीर और ब्रेन थक चुका होता है। इसलिए यह जरूरी है कि आप उसके छोटे-छोटे बदलावों पर नजर रखें। अपर्याप्त नींद का बच्चे की सेहत पर प्रभाव नींद की कमी से बच्चे चिड़चिड़े, गुस्सैल और थके-हारे हो जाते हैं। जैसा कि आपके बेटे के साथ हो रहा है। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ (NIH) के मुताबिक, कम नींद लेने वाले बच्चों में डिसीजन मेकिंग, कॉन्फ्लिक्ट रिजॉल्यूशन और याद रखने की क्षमता प्रभावित होती है। लंबे समय में यह ब्रेन डेवलपमेंट को भी प्रभावित करती है। नींद की कमी से बच्चों की इम्यूनिटी कमजोर हो जाती है, जिससे वे बीमारियों के चपेट में ज्यादा आते हैं। इसके अलावा बिहेवियरल इश्यूज, ओबेसिटी रिस्क और डिप्रेशन, एंग्जाइटी का खतरा भी बढ़ता है। बच्चों की स्लीप रूटीन ऐसे बनाएं बेहतर बेटे को सही समय पर सुलाने और उसकी स्लीप टाइम बढ़ाने के लिए आपको एक सख्त रूटीन बनाने और उस पर अमल करने की जरूरत है। इसके लिए कुछ बातों का विशेष ख्याल रखें। स्क्रीन टाइम पर सख्ती से रोक सोने के समय से कम-से-कम 1 घंटा पहले टीवी, मोबाइल या टैबलेट जैसे सभी स्क्रीन गैजेट्स को बंद कर दें। इन डिवाइसेस से निकलने वाली नीली रोशनी मेलाटोनिन (नींद का हाॅर्मोन) के प्रोडक्शन को रोकती है, जिससे बच्चे को नींद आने में देरी होती है। सोने का एक निश्चित समय निर्धारित करें हर दिन एक तय समय पर बच्चे को सुलाने और उठाने की आदत डालें। इससे शरीर एक सर्केडियन रिद्म विकसित कर लेता है, जिससे बच्चे को निर्धारित समय पर स्वाभाविक रूप से नींद आने लगती है। डैडी के साथ बातचीत का समय बदलें अगर डैडी वर्किंग ऑवर्स लेट नाइट तक है तो उसे थोड़ा पहले करवाने की कोशिश करें ताकि बच्चे को देर रात तक आपका इंतजार न करना पड़े। अगर ये संभव नहीं है तो ऑफ वाले दिन बच्चे के साथ पर्याप्त टाइम स्पेंड करें। इससे बच्चे के सोने के रूटीन में बाधा नहीं आएगी। इसके लिए अपने हिसाब से कुछ और तरीके भी अपना सकते हैं, लेकिन बच्चे की स्लीप रूटीन का खास ख्याल रखें। अंत में यही कहूंगी कि बच्चों की स्लीप साइकल सुधारने के लिए किसी बड़े बदलाव की नहीं, बल्कि छोटी-छोटी बातों को ध्यान में रखने की जरूरत होती है। सोने-जागने का समय तय करना, कमरे को स्क्रीन-फ्री और शांत रखना, दिन में आउटडोर एक्टिविटी बढ़ाना और रात को हल्का खाना देना। ये सब मिलकर बच्चे को बेहतर नींद में मदद करते हैं। याद रखिए, पूरी नींद ही बच्चे के शरीर, दिमाग और भावनाओं की असली एनर्जी है। ......................... पेरेंटिंग की ये खबर भी पढ़िए पेरेंटिंग- 9 साल की बेटी अलग कमरे में नहीं सोती: डरती और रोती है, उसे इंडीपेंडेंट कैसे बनाएं, हमसे अलग सोने की आदत कैसे डालें अगर बच्चे बढ़ती उम्र में भी हर काम के लिए पेरेंट्स पर निर्भर रहते हैं तो इसका मतलब है कि अब तक के पालन-पोषण में कुछ कमी रह गई है। कुल मिलाकर इस समय उन्हें स्वतंत्रता देने की जरूरत है। पूरी खबर पढ़िए...