सवाल- मैं इंदौर से हूं। मेरा 6 साल का एक बेटा है। वह हाइपरएक्टिव है। हमेशा दौड़ता-भागता रहता है, दो-चार मिनट भी शांत नहीं बैठता है। घर में खिलौनों से खेलते हुए बहुत जल्दी बोर हो जाता है, पढ़ाई में भी उसका मन नहीं लगता है। उसकी स्कूल टीचर बताती हैं कि क्लास में भी वह एक जगह पर नहीं टिकता, दूसरों को डिस्टर्ब करता है और पढ़ाई में फोकस नहीं कर पाता है। मैंने उसे शांत रखने के लिए डांटना, रूटीन बनाना, खेलों के जरिए सिखाना जैसे कई उपाय आजमाए, लेकिन कोई स्थायी सुधार नहीं हुआ। मुझे डर है कि कहीं यह कोई समस्या तो नहीं है, जो आगे चलकर उसकी पढ़ाई और सोशल लाइफ को प्रभावित करे। मैं यह जानना चाहती हूं कि ऐसी स्थिति में हम क्या करें, जिससे बच्चा ध्यान केंद्रित करना सीखे और अपनी ऊर्जा को सही दिशा में लगा सके। एक्सपर्ट: डॉ. अमिता श्रृंगी, साइकोलॉजिस्ट, फैमिली एंड चाइल्ड काउंसलर, जयपुर जवाब- मैं आपकी चिंता को समझ सकती हूं। 6 साल के बच्चे का हाइपरएक्टिव होना पेरेंट्स के लिए बहुत थकाने वाला और चिंताजनक होता है। खासकर जब स्कूल से शिकायतें आ रही हों तो डर लगता है कि कहीं यह ADHD (अटेंशन डेफिसिट हाइपर एक्टिविटी डिसऑर्डर) या कोई गंभीर समस्या तो नहीं। हालांकि आपने सही समय पर इसे नोटिस किया है। साइकोलॉजिकल और मेडिकल रिसर्च बताती हैं कि 3-6 साल की उम्र में हाइपर एक्टिविटी सामान्य है, लेकिन अगर इससे डेली लाइफ प्रभावित हो तो इसे मैनेज करने की जरूरत है। जल्दबाजी में काम करने की प्रवृत्ति, फोकस में कमी और हाइपर एक्टिविटी जैसे ADHD के लक्षण अक्सर 7 साल से पहले शुरू होते हैं। अगर इसे इग्नोर किया जाए तो स्कूल परफॉर्मेंस, सेल्फ-एस्टीम और रिलेशनशिप पर असर पड़ सकता है। तो आइए, स्टेप-बाय-स्टेप इस समस्या को ब्रेकडाउन करते हैं। अटेंशन डेफिसिट हाइपर एक्टिविटी डिसऑर्डर क्या है? ADHD एक न्यूरोडेवलपमेंटल डिसऑर्डर है, जो ब्रेन के उन हिस्सों को प्रभावित करता है, जो सोच-समझकर निर्णय लेने की क्षमता, फोकस और एक्टिविटी लेवल को रेगुलेट करते हैं। हालांकि 6-7 साल तक की उम्र में बच्चे स्वाभाविक रूप से एनर्जेटिक होते हैं। वे बहुत कुछ एक्सप्लोर करना चाहते हैं। ऐसे में ये बहुत सामान्य बात है। बस उन्हें सही गाइडेंस की जरूरत होती है। 'जर्नल ऑफ अफेक्टिव डिसऑर्डर' में पब्लिश एक रिव्यू रिपोर्ट के मुताबिक, दुनियाभर में बच्चों और किशोरों में ADHD की औसत दर लगभग 8% है। यह दर लड़कों में लगभग 10% और लड़कियों में 5% है। यानी लड़कों में इसके मामले लड़कियों की तुलना में लगभग दोगुने होते हैं। हालांकि अच्छी बात ये है कि ज्यादातर मामलों में यह मैनेजेबल है। अगर यह सामान्य से ज्यादा है तो प्रोफेशनल हेल्प की जरूरत पड़ सकती है। हाइपर एक्टिविटी के कारण इसके पीछे कई फैक्टर्स हो सकते हैं। जेनेटिक्स इसमें बड़ा रोल प्ले करता है। अगर परिवार में किसी को ADHD है तो बच्चे में रिस्क बढ़ जाता है। स्क्रीन टाइम ज्यादा होना, डाइट में शुगर या कैफीन ज्यादा देना, नींद की कमी या घर का स्ट्रेसफुल माहौल भी इसे ट्रिगर कर सकता है। कभी-कभी यह एंग्जाइटी, लर्निंग डिसेबिलिटी या सेंसरी प्रोसेसिंग इश्यू से जुड़ा होता है। इसके कई और कारण भी हो सकते हैं। बच्चे के हाइपरएक्टिव होने के संकेत हाइपरएक्टिविटी या ADHD के लक्षण अक्सर धीरे-धीरे सामने आते हैं। शुरुआत में माता-पिता इन्हें सामान्य शरारत समझ लेते हैं। लेकिन जब ये व्यवहार बार-बार दोहराए जाने लगें और बच्चे की पढ़ाई, नींद, फोकस या भावनात्मक संतुलन को प्रभावित करने लगें तो इन्हें नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। हाइपर एक्टिविटी का बच्चे पर असर हाइपरएक्टिविटी का मतलब केवल बच्चे का ज्यादा दौड़ना-भागना या ओवरएक्टिव रहना नहीं होता है। यह एक ऐसी स्थिति है, जो उसकी सीखने, सोचने और भावनात्मक रूप से संतुलित रहने की क्षमता को गहराई से प्रभावित कर सकती है। यह सिर्फ उसके व्यवहार नहीं बल्कि एकाग्रता, आत्मनियंत्रण और आत्मविश्वास तीनों पर असर डाल सकता है। ऐसी स्थिति में बच्चा न तो पढ़ाई में पूरी तरह ध्यान दे पाता है, न ही सामाजिक रूप से सहज रह पाता है। लंबे समय तक यह स्थिति बनी रहे तो इससे उसके आत्मविश्वास, सीखने की क्षमता और इमोशनल ग्रोथ सभी पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। इसके अलावा ADHD के कुछ और संभावित नुकसान हैं। हाइपरएक्टिव बच्चे को ऐसे करें हैंडल अगर बच्चे की हाइपर एक्टिविटी डेली रूटीन को प्रभावित कर रही है तो प्रोफेशनल हेल्प लें। चाइल्ड साइकोलॉजिस्ट या पीडियाट्रिशियन से इवैल्यूएशन कराएं। वे क्वेश्चनेयर और ऑब्जर्वेशन से इसे ठीक करेंगे। अगर लक्षण माइल्ड हैं तो घरेलू स्ट्रेटजीज से सुधार हो सकता है। इसके लिए कुछ बातों का ध्यान रखें। हाइपरएक्टिव बच्चे की परवरिश में न करें ये गलतियां हाइपरएक्टिव बच्चे का दिमाग लगातार काम करता रहता है। ऐसे में उसे अनुशासित करने के बजाय समझने की जरूरत होती है। कई बार माता-पिता अनजाने में कुछ ऐसी गलतियां कर बैठते हैं, जो बच्चे पर नकारात्मक असर डालती हैं। जैसे कि- बार-बार डांटना या चिल्लाना ऐसा करने से बच्चा और जिद्दी और इमोशनली इनसिक्योर हो सकता है। तुलना करना ‘देखो, वो कितना शांत है!’ इस तरह की बातें बच्चे में हीनभावना पैदा कर सकती हैं। परफेक्शन की उम्मीदें रखना हाइपरएक्टिव बच्चे से तुरंत परफेक्शन की उम्मीद तनाव बढ़ा सकती है। पनिशमेंट देना फिजिकल या वर्बल पनिशमेंट से बच्चे का व्यवहार और बिगड़ सकता है। गलती पर शर्मिंदा करना बच्चे की हर गलती को फेलियर बताना उसे आत्मग्लानि में धकेल देता है। ज्यादा स्क्रीन देना या पूरी तरह छीन लेना दोनों ही एक्सट्रीम बच्चे के मूड और ध्यान को अस्थिर कर सकते हैं। भावनाओं को अनदेखा करना “ड्रामा मत करो” जैसे शब्द कहने से बच्चा खुद को अनसुना महसूस करता है। प्रोफेशनल हेल्प लेने में देर करना जब समस्या गहराती जाती है तो बिना गाइडेंस के संभालना मुश्किल हो सकता है। अंत में यही कहूंगी कि हाइपरएक्टिव बच्चे की परवरिश में थोड़ा ज्यादा समझ, धैर्य और दिशा देने की जरूरत होती है। बच्चे की ऊर्जा अगर सही दिशा में लगाई जाए तो वह उसकी सबसे बड़ी ताकत बन सकती है। इसलिए डांट या डर से नहीं, प्यार और समझ से उसके दिल तक पहुंचिए, क्योंकि सही पेरेंटिंग किसी भी हाइपरएक्टिव बच्चे को आत्मविश्वासी, संवेदनशील और सफल इंसान बना सकती है। ........................ पेरेंटिंग से जुड़ी ये खबर भी पढ़िए पेरेंटिंग- 5 साल का बेटा रात में सोता नहीं: 12 बजे तक जागता रहता है, दिख रही थकान, चिड़चिड़ाहट, उसका स्लीप साइकल कैसे सुधारें अमेरिकन एकेडमी ऑफ स्लीप मेडिसिन (AASM) और नेशनल स्लीप फाउंडेशन के मुताबिक, 3-5 साल के बच्चों को रोजाना 10-13 घंटे की नींद लेनी चाहिए, जिसमें नैप (दोपहर की झपकी) भी शामिल हो। यह उम्र ब्रेन ग्रोथ का पीक टाइम है, जहां नींद मेमोरी कंसोलिडेशन और इमोशनल रेगुलेशन के लिए जरूरी है। पूरी खबर पढ़िए...