चीन से नोट छपवा रहे भारत के 5 पड़ोसी देश:नेपाल ने 43 करोड़ नोट प्रिंटिंग का टेंडर दिया; सस्ती छपाई से अमेरिका-ब्रिटेन का बाजार छीन रहा

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भारत के अधिकांश पड़ोसी देशों की तरह ही नेपाल भी अब अपनी करेंसी प्रिंटिंग के लिए चीन का रुख कर रहा है। नेपाल राष्ट्रीय बैंक (NRB) ने 7-8 नवंबर को 1000 रुपए के 43 करोड़ नोटों की प्रिंटिंग के लिए एक टेंडर जारी किया था। इस टेंडर को चीन की एक कंपनी ने जीत लिया है। इसके बाद नेपाली बैंक ने चाइना CBPMC को टेंडर दे दिया। 1945 से 1955 तक नेपाल के सभी नोट भारत की नासिक स्थित सिक्योरिटी प्रेस में छपे और उसके बाद भी भारत ही मुख्य साझेदार बना रहा। हालांकि, 2015 में नेपाल राष्ट्रीय बैंक (एनआरबी) ने वैश्विक टेंडर के जरिए चाइना बैंक नोट प्रिंटिंग एंड मिंटिंग कॉर्पोरेशन (CBPMC) को कॉन्ट्रैक्ट दे दिया, जिसके बाद नेपाल के ज्यादातर नोट चीन में ही छपने लगे। नेपाल के अलावा श्रीलंका, मलेशिया, बांग्लादेश, थाईलैंड भी अपनी करेंसी चीन में छपवाते हैं। पिछले कुछ सालों में चीन एशियाई देशों की करेंसी का बड़ा केंद्र बन चुका है। इससे अमेरिका-ब्रिटेन के मुद्रा छापने वाले बाजार पर नेगेटिव असर पड़ रहा है। बांग्लादेश 2010, श्रीलंका 2015 से चीन में करेंसी छपवा रहा बांग्लादेश की टका मुद्रा 2010 से चीन में छप रही है, जहां कम लागत और उन्नत सुरक्षा फीचर्स ने इसे बढ़ावा दिया है। श्रीलंका की रुपया 2015 के बाद से मुख्य रूप से चीन पर निर्भर है। अफगानिस्तान ने भी 2000 के दशक से अपनी अफगानी मुद्रा के लिए चीन को चुना। थाईलैंड-मलेशिया भी चीन में सस्ती प्रिंटिंग का लाभ ले रहे साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के पड़ोसियों में थाईलैंड और मलेशिया भी चीन में नोट छपवा रहे हैं। थाईलैंड 2018 से मुद्रा छपवा रही है। मलेशिया की रिंगिट (मुद्रा) भी 2010 के बाद से चीन में शिफ्ट हुई, जहां पॉलीमर-आधारित नोटों की प्रिंटिंग ने नकली नोटों को 50% कम किया। मनी कंट्रोल की 2025 रिपोर्ट के मुताबिक, ये चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के तहत आर्थिक लाभ के लिए चीन की ओर मुड़े, जबकि भारत की सिक्योरिटी प्रिंटिंग एंड मिंटिंग कॉर्पोरेशन से दूरी बना ली। हालांकि, भूटान अभी भी भारत पर निर्भर है। उसकी मुद्रा नासिक प्रेस में छपती है। लेकिन हालिया चर्चाओं में भूटान ने भी चीन के साथ सहयोग की संभावना जताई है। पाकिस्तान अपनी प्रेस में करेंसी प्रिंट करता वहीं, पाकिस्तान अपनी करेंसी घरेलू प्रेस में प्रिंट करवाता है, लेकिन कुछ रिपोर्ट्स में चीन के साथ सहयोग का जिक्र है। इकोनॉमिक टाइम्स (2018) के अनुसार, पाकिस्तान ने कभी-कभी चीन बैंकनोट प्रिंटिंग एंड मिंटिंग कॉर्पोरेशन (CBPMC) से तकनीकी सहायता ली है। हालांकि, पूरी तरह से आउटसोर्सिंग की पुष्टि नहीं हुई है। दूसरी ओर म्यांमार ने 2020 के तख्तापलट के बाद अपनी मुद्रा के लिए चीन पर अधिक निर्भरता बढ़ाई है, जहां राजनीतिक अस्थिरता ने विदेशी प्रिंटिंग को जरूरी बनाया। चीन का CBPMC दुनिया का सबसे बड़ा करेंसी प्रिंटर यह देश चीन में नोट छापने का फैसला आर्थिक, तकनीकी और रणनीतिक लाभों के लिए ले रहे हैं। सबसे बड़ा फायदा बचत है। नेपाल ने 2016 में 1000 रुपए के नोट छापने पर अमेरिकी फर्मों की तुलना में 3.76 मिलियन डॉलर बचाए। चीन का CBPMC दुनिया का सबसे बड़ा मुद्रा प्रिंटर है (18,000 से अधिक कर्मचारी, 10 सुरक्षित फैसिलिटी)। एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, ये देश नेपाल की तरह ही चीन की 'कोलोरडांस' तकनीक और 30-40% कम लागत से फायदा उठा रहे हैं। क्यों करेंसी प्रिंट कराने ज्यादातर देश चीन का रुख कर रहे? ज्यादातर देश चीन की कोलोरडांस' तकनीक के कारण उसका रुख कर रहे हैं। चीन की 'कोलोरडांस' तकनीक एक ऑप्टिकल एंटी-काउंटरफिटिंग फीचर है, जो मुख्य रूप से करेंसी नोट्स (बैंकनोट्स) की सुरक्षा को बढ़ाने के लिए विकसित की गई है। यह एक प्रकार की होलोग्राफिक सिक्योरिटी थ्रेड या निशान है, जो नकली नोटों को रोकने में प्रभावी होती है। यह नोट पर माइक्रो-नैनो स्ट्रक्चर्स (बहुत छोटे निशान) का इस्तेमाल करती है। इससे नोट को झुकाने या घुमाने पर 3D मार्क दिखते हैं। ये मार्क नकली नोटों में उतारना बहुत मुश्किल होता हैं। क्या इससे अमेरिका-ब्रिटेन का बाजार कम हो रहा है? चीन के कम लागत वाले मॉडल से अमेरिका और ब्रिटेन के मुद्रा छापने वाले बाजार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। हालांकि, यह सिर्फ विकासशील देशों तक सीमित है। विकसित देश अपनी मुद्रा खुद छापते हैं। चीन की कीमतें अमेरिका और ब्रिटेन की तुलना में 50% कम हैं, जबकि गुणवत्ता समान है। इससे विकासशील देश पश्चिमी कंपनियों से दूर हो रहे हैं। अगर यह ट्रेंड जारी रहा, तो पश्चिमी कंपनियों को कीमतें कम करनी पड़ सकती हैं या नई तकनीक (जैसे पॉलीमर नोट्स) पर फोकस करना पड़ेगा। अमेरिका का बाजार: ब्रिटेन का बाजार: 'सॉफ्ट पावर' रणनीति से आर्थिक प्रभाव बढ़ा रहा चीन ये बदलाव चीन की 'सॉफ्ट पावर' रणनीति का हिस्सा हैं, जहां मुद्रा छपाई के जरिए आर्थिक प्रभाव बढ़ाया जा रहा है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, दक्षिण एशिया के 70% विकासशील देश इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए अब चीन पर निर्भर हैं। इसमें कम लागत, आधुनिक फीचर्स से फायदे मिलते हैं। लेकिन इसमें विदेशी निर्भरता से ब्लैकमेल का जोखिम भी है। जैसा श्रीलंका के साथ हुआ, 7 बिलियन डॉलर का कर्ज नहीं चुकाने पर चीन ने 2017 में 99 साल के लिए हम्बनटोटा बंदरगाह अपने अधिकार में ले लिया था। नेपाल ने अपने नोट में भारत के इलाके दिखाए, तनाव बढ़ा भारत से नोट छापना बंद करने की खास वजह राजनीतिक और आर्थिक दोनों हैं। नेपाल ने 18 जून 2020 को देश का नया पॉलिटिकल मैप जारी किया था। इसमें लिपुलेख, लिंपियाधुरा और कालापानी को नेपाल का हिस्सा दिखाया गया था। इसके लिए नेपाल के संविधान में भी बदलाव किया गया था। तब भारत सरकार ने नेपाल के इस कदम को एकतरफा बताते हुए इसका विरोध किया था। जिसके बाद नेपाल-भारत में तनातनी बढ़ गई थी। भारत के पास चीन की तुलना में सीमित क्षमताएं हैं। सिक्योरिटी प्रिंटिंग एंड मिंटिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया मुख्य रूप से भारतीय रुपए पर फोकस करता है। देशों को भारत की बोली चीन के मुकाबले 20-30% महंगी पड़ती है। द डिप्लोमैट की 2019 स्टडी के मुताबिक, पुराने नोट बदलने में देरी, ऊंची लागत और तकनीक की कमी के कारण कई देशों ने स्विच किया। नोट छापने का प्रोसेस गोपनीय रखा जाता किसी दूसरे देश में नोट छापने का प्रोसेस गोपनीय होता है, जो राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करता है। सबसे पहले, केंद्रीय बैंक डिजाइन तय करता है। फिर, वैश्विक टेंडर जारी होता है, जहां करेंसी प्रिंटर्स बोली लगाते हैं। विजेता का चयन तकनीकी मूल्यांकन (सुरक्षा, क्षमता) और कीमत पर आधारित होता है। कॉन्ट्रैक्ट साइन होने के बाद, डिजाइन गोपनीय रूप से साझा किया जाता है, और प्रिंटिंग सख्त निगरानी में होती है। सीरियल नंबर्स केंद्रीय बैंक को दिए जाते हैं। डिलीवरी के बाद, नोटों की जांच होती है, और कोई दिक्कत होने पर या जरूरी गाइडलाइन नहीं मानने पर कॉन्ट्रैक्ट रद्द हो सकता है। भारत ने साल 2025 में नोट छपाई में 6,372.8 करोड़ रुपए खर्च किए वैश्विक स्तर पर, एक नोट छापने की औसत लागत 0.05 से 0.20 डॉलर (लगभग 4-16 रुपए) तक होती है, लेकिन यह नोटों की संख्या और क्वालिटी के आधार पर बदलती है। भारत में नोट छपाई का खर्च कम है, लेकिन कुल मात्रा (लगभग 1 बिलियन नोट हर साल) के कारण खर्च बढ़ता है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) की रिपोर्ट के अनुसार, 2023-24 में भारत ने नोट छापने पर कुल 5,101 करोड़ रुपए खर्च किए। 2024-25 में यह 6,372.8 करोड़ रुपए हो गया। छोटे नोट (10-20 रुपए) की लागत अधिक पड़ती है क्योंकि वे जल्दी खराब होते हैं (औसत जीवनकाल 6-12 महीने), जबकि बड़े नोट (500-2,000) लंबे चलते हैं। RBI नासिक, देवास और मैसूर के प्रेसों में नोट प्रिंट करता है, जो विदेशों की तुलना में 20-30% महंगा लेकिन सुरक्षित है। -------------------------------------- ये खबर भी पढ़ें... चीन का तीसरा एयरक्राफ्ट कैरियर 'फुजियान' नेवी में शामिल: हिंद महासागर से ताइवान तक बढ़ेगा चीन का दबदबा; भारत के लिए 5 चुनौतियां चीन ने अपना नया और अब तक का सबसे आधुनिक एयरक्राफ्ट कैरियर ‘फुजियान’ आधिकारिक तौर पर नौसेना में शामिल कर लिया है। यह घोषणा चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने की। पूरी खबर पढ़ें...