मुख्य न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई की बेंच ने गुरुवार (31 जुलाई, 2025) को तेलंगाना में दलबदल करने वाले भारत राष्ट्र समिति (BRS) के विधायकों से जुड़े मामले पर सुनवाई करते हुए अहम बात कही कि ऑपरेशन सक्सेसफुल बट पेशेंट डाइड यानी ऑपरेशन सफल पर मरीज मृत जैसी स्थिति पैदा न हो. यह टिप्पणी उस वक्त की गई जब कोर्ट को पता चला कि विधानसभा अध्यक्ष ने विधायकों की अयोग्यता याचिकाओं को लेकर सात महीने से कोई नोटिस जारी नहीं किया. चीफ जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की बेंच ने कहा कि कोर्ट अयोग्यता की याचिकाओं को लंबित रखने की अनुमति देकर ऑपरेशन सक्सेसफुल बट पेशेंट डाइड जैसे हालात नहीं बनने दे सकता है. बेंच ने विधानसभा अध्यक्ष से कहा कि तीन महीने के अंदर सत्तारूढ़ कांग्रेस में शामिल होने वाले बीआरएस के 10 विधायकों के खिलाफ अयोग्यता याचिकाओं पर तीन महीने में फैसला करें.कोर्ट ने कहा कि अगर राजनीतिक दलबदल पर अंकुश नहीं लगाया गया तो यह लोकतंत्र को नुकसान पहुंचा सकता है. कोर्ट ने कहा कि संविधान की दसवीं अनुसूची के तहत अयोग्यता पर फैसला करते समय विधानसभा अध्यक्ष एक न्यायाधिकरण के रूप में कार्य करते हैं, लिहाजा उन्हें न्यायिक जांच के खिलाफ संवैधानिक प्रतिरक्षा प्राप्त नहीं है.सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अयोग्यता याचिकाओं पर निर्णय लेने में स्पीकर की ओर से की जाने वाली देरी से निपटने के लिए एक तंत्र विकसित करना संसद का काम है. हालांकि, कोर्ट ने यह भी कहा, 'हमारे पास कोई परामर्श देने का अधिकार नहीं है, फिर भी यह संसद को विचार करना है कि दलबदल के आधार पर अयोग्यता के मुद्दे पर निर्णय लेने का महत्वपूर्ण कार्य अध्यक्ष/सभापति को सौंपने की व्यवस्था राजनीतिक दलबदल से प्रभावी ढंग से निपटने के उद्देश्य की पूर्ति कर रही है या नहीं.'बेंच ने कहा, 'अगर हमारे लोकतंत्र की बुनियाद और उसे कायम रखने वाले सिद्धांतों की रक्षा करनी है, तो यह पता लगाना जरूरी है कि मौजूदा व्यवस्था पर्याप्त है या नहीं. हम मानते हैं कि इस पर फैसला संसद को ही लेना है.' कोर्ट ने पी. कौशिक रेड्डी समेत बीआरएस के नेताओं की अपीलों को स्वीकार कर लिया, जिसमें विधानसभा अध्यक्ष को दलबदल करने वाले विधायकों के खिलाफ अयोग्यता याचिकाओं पर शीघ्र निर्णय लेने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था.सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना हाईकोर्ट की खंडपीठ के 22 नवंबर, 2024 के फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें एकल न्यायाधीश के पूर्व आदेश में हस्तक्षेप किया गया था. बेंच ने कहा, 'अयोग्यता की कार्यवाही अध्यक्ष को सौंपने का उद्देश्य अदालतों में होने वाली देरी से बचना है.'पीठ ने विधानसभा अध्यक्ष से कहा कि वह विधायकों को अयोग्यता की कार्यवाही को लंबा न खींचने दें. साथ ही, अगर विधायक कार्यवाही को लंबा खींचते हैं, तो विधानसभा अध्यक्ष प्रतिकूल निष्कर्ष निकाल सकते हैं. हालांकि, फैसले में कुछ पूर्व निर्णयों का हवाला देते हुए यह दलील खारिज कर दी गई कि सुप्रीम कोर्ट को खुद ही अयोग्यता याचिकाओं पर निर्णय करना चाहिए.कोर्ट ने इस बात पर भी गौर किया कि विधानसभा अध्यक्ष ने करीब सात महीने तक अयोग्यता याचिकाओं पर नोटिस भी जारी नहीं किया. पीठ ने कहा, 'इसलिए हम अपनी ओर से यह प्रश्न पूछते हैं कि क्या अध्यक्ष ने शीघ्रता से कार्य किया है. शीघ्रता को ध्यान में रखकर ही संसद ने अयोग्यता याचिकाओं पर निर्णय करने का महत्वपूर्ण कार्य अध्यक्ष/सभापति को सौंपा था.' कोर्ट ने कहा कि सात महीने की अवधि तक नोटिस जारी न करना किसी भी तरह से त्वरित कार्रवाई नहीं मानी जा सकती.