कौन सी गोली किस बंदूक से चली, इसका पता कैसे लगाती हैं जांच एजेंसियां?

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जब कोई आपराधिक घटना जैसे गोलीबारी, हत्या या आतंकी हमला होता है तो जांच एजेंसियां सबसे पहले उस हथियार को ढूंढने की कोशिश करती हैं, जिससे घटना हुई. इसके साथ ही एजेंसियां घटनास्थल पर कारतूस के खोखे को भी ढूंढने की कोशिश करती हैं. दरअसल, हथियार की पहचान से अपराधी को पकड़ने, घटना के पीछे के मकसद को समझने और सबूत इकट्ठा करने में मदद मिलती है. लेकिन घटना में किस हथियार का प्रयोग हुआ है ये कैसे पता चलता है और ये कैसे पता चलता है कि घटना में बरामद गोली किस बंदूक से चलाई गई थी. आइये इसकी पूरी प्रक्रिया को समझते हैं.घटनास्थल से मिले सबूतआपको बता दें कि गोली से बंदूक की पहचान फॉरेंसिक बैलिस्टिक्स की वैज्ञानिक तकनीकों के जरिए की जाती है. यह प्रक्रिया गोली, कारतूस के खोखे और हथियार के बीच विशिष्ट निशानों का विश्लेषण करती है. घटना के बाद जांच एजेंसियां सबसे पहले घटनास्थल से गोलियां, कारतूस के खोखे और संदिग्ध हथियार इकट्ठा करती हैं. इन सबूतों को सावधानी से सील किया जाता है ताकि छेड़छाड़ न हो. प्रारंभिक फॉरेंसिक विशेषज्ञ गोलियों और खोखों का निरीक्षण करते हैं. इससे गोली का आकार और हथियार का प्रकार (पिस्टल, राइफल, रिवॉल्वर) का अंदाजा लगता है.कैसे लगता है हथियार का पता?मुख्य जांच राइफलिंग मार्क्स पर होती है. हर बंदूक की नली में खास धारियां होती हैं, जो गोली को घुमाव देती हैं. ये धारियां गोली पर अनोखे निशान छोड़ती हैं. विशेषज्ञ माइक्रोस्कोप से इन निशानों की तुलना संदिग्ध हथियार से दागी गई गोली से करते हैं. अगर निशान एकदम मिलते हैं, तो पक्का हो जाता है कि गोली उसी हथियार से चली. कारतूस के खोखे की भी जांच होती है. खोखे पर फायरिंग पिन, इजेक्टर और एक्सट्रैक्टर  के निशान बनते हैं. ये निशान हर हथियार के लिए अलग होते हैं. इन्हें माइक्रोस्कोप से देखकर संदिग्ध हथियार से टेस्ट फायर के खोखे से मिलाया जाता है.अंत में तैयार की जाती है रिपोर्टटेस्ट फायरिंग में संदिग्ध हथियार को लैब में दागा जाता है. इससे मिली गोली और खोखे की तुलना घटनास्थल के सबूतों से होती है. अगर निशान मेल खाते हैं, तो हथियार की पहचान हो जाती है. विशेषज्ञ अपनी जांच के आधार पर रिपोर्ट तैयार करते हैं और उस रिपोर्ट से ये स्पष्ट हो जाता है कि कारतूस या गोली किस हथियार से चलाई गई थी.इसे भी पढ़ें- जेल से कैदी भाग जाए तो कितनी बढ़ जाती है सजा, क्या इसके लिए अलग से चलता है मुकदमा?