भारत को विविधताओं का देश कहा जाता है. वैसे तो यहां अनेक धर्म के लोग रहते हैं लेकिन हिंदू और मुस्लिम दो धर्म बड़े पैमाने पर रहते हैं. दोनों धर्मों के तीज-त्योहार अलग-अलग हैं. हिंदू धर्म में जहां मरने के बाद शरीर का अंतिम संस्कार किया जाता है तो वहीं मुस्लिम धर्म में शव को दफनाने की परंपरा है. इस्लाम में अगर किसी शख्स की मृत्यु हो जाती है तो मृत्यु के बाद शव को दफनाया जाता है. वहीं किसी शख्स की मृत्यु हो जाने के बाद वहां उपस्थित लोग "इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैहि राजिऊन" कहते हैं. इसका अर्थ होता है, वास्तव में हम अल्लाह के हैं और हम उसी की ओर लौटेंगे. आइये जानते हैं सुपुर्द-ए-खाक को अंजाम देने की क्या प्रकिया है. सुपुर्द-ए-खाक को अंजाम देने की प्रक्रियाइसके बाद मृतक के शरीर को स्वच्छ पानी से गुस्ल(स्नान) देना अनिवार्य है. करीबी रिश्तेदार और परिवार के लोगों के जरिए गुस्ल देना अच्छा माना जाता है. गुस्ल के बाद मृतक को साफ, सादे और सफेद कपड़े में लपेटा जाता है. कफन बिना सिला सफेद कपड़ा होता है. कफन में लपेटे जाने के बाद मय्यत को नमाज ए जनाजे के लिए ले जाया जाता है. नमाज एक जनाजा कब्रिस्तान या मस्जिद में अदा की जाती है. नमाज-ए-जनाजा के बाद मय्यत को कब्र में दफनाया जाता है. दफन किए जाने के बाद कब्र पर मिट्टी डाली जाती हैकब्र की लंबाई?आमतौर पर मरने वाले शख्स से एक से दो फीट ज्यादा की कब्र की लंबाई रखी जाती है. जिससे शरीर को आराम से रखा जा सके. इसकी चौड़ाई की बात की जाए तो दो से तीन फीट तक रखी जाती है. चौड़ाई में इस बात का ध्यान रखा जाता है कि मृतक का शरीर आसानी से रखा जा सके और उसे दबाव न महसूस हो. ज्यादातर कब्र की गहराई तीन से पांच फीट के करीब होती है. अंत में क्या होता है?दफ्न किए जाने के बाद कब्र पर मिट्टी डाली जाती है. एक शख्स के जरिए तीन बार मिट्टी डालने का आदेश है. लोग अपने दोनों हाथों से मिट्टी डालते हैं.इसे भी पढ़ें- जानें भारत में 5 साल से कम उम्र के कितने बच्चे कुपोषण का शिकार, आंकड़ें देख डर जाएंगे आप