सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को अपने एक अहम फैसले में कहा है कि बिना किसी अलर्ट के हाईवे पर अचानक ब्रेक लगाना लापरवाही है। ऐसे मामलों में कोई हादसा हुआ, तो अचानक ब्रेक लगाने वाले ड्राइवर को जिम्मेदार माना जा सकता है। जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस अरविंद कुमार की बेंच ने कहा कि हाईवे के बीच में किसी ड्राइवर का अचानक रुकना, भले ही वह किसी पर्सनल इमरजेंसी के कारण ही क्यों न हुआ हो, अगर इससे सड़क पर किसी और को खतरा हो, तो उसे सही नहीं ठहराया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने 8 साल पुराने मामले पर फैसला दियासुप्रीम कोर्ट का यह फैसला 8 साल पहले, 7 जनवरी, 2017 को तमिलनाडु के कोयंबटूर में अचानक ब्रेक लगाने के कारण हादसे के एक मामले पर आया है। इसमें इंजीनियरिंग के छात्र एस मोहम्मद हकीम का बायां पैर काटना पड़ा था। मोहम्मद हकीम ने इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई थी। उन्होंने याचिका में कहा कि यह घटना तब हुई जब हकीम अपनी मोटरसाइकिल से हाईवे पर जा रहे थे। तभी उनके आगे चल रही एक कार ने अचानक ब्रेक लगा दी। हकीम की बाइक कार के पिछले हिस्से से टकरा गई थी। हकीम सड़क पर गिर गया और पीछे से आ रही एक बस ने उसे कुचल दिया। कार ड्राइवर ने कहा- प्रेग्नेंट पत्नी को उल्टी जैसा महसूस हो रहा थाकार ड्राइवर ने दावा किया था कि उसने अचानक ब्रेक इसलिए लगाए क्योंकि उसकी प्रेग्नेंट पत्नी को उल्टी जैसा महसूस हो रहा था। हालांकि, कोर्ट ने इस दलील को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि हाईवे के बीच में अचानक कार रोकने पर कोई भी सफाई किसी भी तरीके से सही नहीं है। हालांकि, कोर्ट ने ड्राइवर के इस तर्क को खारिज कर दिया और उसे सड़क हादसे के लिए 50% जिम्मेदार माना। बेंच ने कहा कि इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि कार ड्राइवर के अचानक ब्रेक लगाने के कारण ही हादसा हुआ। सुप्रीम कोर्ट ने पीड़ित छात्र और बस ड्राइवर को भी जिम्मेदार ठहरायावहीं, कोर्ट ने लापरवाही के लिए याचिकाकर्ता हकीम को भी 20% और बस चालक को 30% तक जिम्मेदार ठहराया। पीड़ित की तरफ से मुआवजा बढ़ाने की उसकी याचिका स्वीकार करते हुए, बेंच ने कहा- याचिकाकर्ता ने भी आगे चल रही कार से पर्याप्त दूरी बनाए न रखने और बिना वैध लाइसेंस के मोटरसाइकिल चलाने में लापरवाही बरती थी। सुप्रीम कोर्ट ने मुआवजे की कुल राशि 1.14 करोड़ रुपए आंकी, लेकिन याचिकाकर्ता की लापरवाही के कारण इसे 20% कम कर दिया। बाकी की मुआवजे राशि बस और कार की बीमा कम्पनियों को चार सप्ताह के भीतर पीड़ित को देने का आदेश दिया गया है। ............................... सुप्रीम कोर्ट से जुड़ी ये खबरें भी पढ़ें... 'तलाक मामले में पत्नी की कॉल रिकॉर्डिंग सबूत': सुप्रीम कोर्ट बोला- रिश्ता जासूसी तक पहुंचा तो पहले ही टूट चुका सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पत्नी की जानकारी के बिना रिकॉर्ड कॉल को वैवाहिक विवादों में सबूत के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। कोर्ट ने पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के उस फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि ऐसा करना पत्नी के निजता के अधिकार का उल्लंघन है और इसे सबूत के रूप में नहीं माना जा सकता। पूरी खबर पढ़ें... सुप्रीम कोर्ट बोला- शादी विश्वास पर आधारित रिश्ता, इसका मकसद सम्मान; 20 साल से अलग कपल का तलाक मंजूर किया सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि शादी का रिश्ता आपसी भरोसे, साथ और साझा अनुभवों पर टिका होता है। अगर ये चीजें लंबे समय तक नहीं हों तो शादी सिर्फ कागजों पर रह जाती है। कोर्ट ने आगे कहा कि शादी का उद्देश्य दोनों की खुशी और सम्मान है, न कि तनाव और विवाद। कोर्ट ने यह टिप्पणी मद्रास हाईकोर्ट के उस फैसले को बरकरार रखते हुए की, जिसमें 20 साल से अलग रह रहे सॉफ्टवेयर इंजीनियर दंपति को तलाक देने का आदेश दिया गया था। पूरी खबर पढ़ें...