आज का युग डिजिटल युग है। हमारे चारों तरफ स्मार्टफोन, लैपटॉप, टैबलेट और इंटरनेट की दुनिया है। ये गैजेट्स हमारी जिंदगी को आसान बनाते हैं, लेकिन इनका ज्यादा उपयोग हमारे दिमाग और शरीर पर भारी पड़ सकता है। सुबह उठते ही फोन चेक करना, रात को सोने से पहले सोशल मीडिया स्क्रॉल करना और दिनभर स्क्रीन पर नजरें गड़ाए रहना। यह सब हमारी दिनचर्या का हिस्सा बन चुका है। क्या आपने कभी सोचा कि इस डिजिटल दुनिया से थोड़ा ब्रेक लेना कितना जरूरी हो सकता है? यहीं से आता है डिजिटल डिटॉक्स का कॉन्सेप्ट, जो हमें तकनीक से दूरी बनाकर अपने मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मदद करता है। आज ‘गुड हैबिट्स’ कॉलम में डिजिटल डिटॉक्स की बात करेंगे। साथ ही जानेंगे कि- डिजिटल डिटॉक्स क्या है? डिजिटल डिटॉक्स का मतलब है कुछ समय के लिए स्मार्टफोन, कंप्यूटर, टैबलेट और ऐसे सभी डिजिटल गैजेट्स से दूरी बनाना। यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें हम जानबूझकर स्क्रीन टाइम को कम करते हैं और वास्तविक दुनिया की गतिविधियों में समय बिताते हैं। डिजिटल डिटॉक्स का उद्देश्य हमारे दिमाग को डिजिटल उत्तेजना से आराम देना और जीवन में संतुलन लाना है। उदाहरण के लिए, यह एक दिन बिना फोन के बिताना हो सकता है या कुछ घंटे बिना इंटरनेट के रहना। यह हमें अपने आसपास की दुनिया, परिवार और दोस्तों के साथ फिर से जुड़ने का मौका देता है। डिजिटल डिटॉक्स की जरूरत क्यों है? आज के समय में डिजिटल उपकरणों का उपयोग इतना बढ़ गया है कि लोग औसतन 10 घंटे से ज्यादा समय स्क्रीन पर बिताते हैं। डेलॉइट के 2015 के एक सर्वे के मुताबिक, 59% स्मार्टफोन यूजर्स सोने से 5 मिनट पहले और जागने के 30 मिनट के भीतर सोशल मीडिया चेक करते हैं। यह हद से ज्यादा उपयोग हमारे दिमाग पर बोझ डालता है। खासकर कोविड-19 के दौरान, जब लोग घरों में बंद थे, डिजिटल उपकरणों का उपयोग और भी बढ़ गया। डिजिटल डिटॉक्स के फायदे डिजिटल डिटॉक्स के कई फायदे हैं, जो हमारी जिंदगी को पहले से कहीं बेहतर बना सकते हैं। इसका सबसे बड़ा फायदा ये है कि आप अपने आसपास की दुनिया को ज्यादा करीब से और ध्यान से देख पाते हैं। इसके सभी फायदे ग्राफिक में देखिए- ग्राफिक में दिए इन पॉइंट्स को विस्तार से समझते हैं- दुनिया के सबसे सफल लोग करते हैं डिजिटल डिटॉक्स दुनिया के सबसे अमीर शख्स इलॉन मस्क से लेकर सिंगर अरमान मलिक तक सभी डिजिटल डिटॉक्स अपनाते हैं। ईलॉन मस्क: दुनिया के सबसे सअमीर शख्स हैं। वे भी समय-समय पर डिजिटल दुनिया से ब्रेक लेते हैं ताकि नए आइडिया सोच सकें। कीर्ति कुल्हारी: बॉलीवुड का जाना-माना नाम हैं। वे कहती हैं कि सोशल मीडिया से ब्रेक लेने से उनका दिमाग तरोताजा रहता है। अरमान मलिक: फेमस प्लेबैक सिंगर हैं। वे हफ्ते में एक दिन फोन से दूर रहते हैं ताकि परिवार के साथ समय बिता सकें। इन लोगों से हम सीख सकते हैं कि व्यस्त जिंदगी में भी डिजिटल डिटॉक्स संभव है और फायदेमंद भी है। डिजिटल डिटॉक्स का वैज्ञानिक आधार क्या है? वैज्ञानिकों का कहना है कि डिजिटल डिटॉक्स सच में काम करता है। एक रिसर्च बताती है कि जो लोग स्क्रीन से ब्रेक लेते हैं, उनका कॉन्संट्रेशन 20% तक बेहतर होता है। दूसरी स्टडी कहती है कि सोने से पहले फोन न देखने से नींद की परेशानी 30% कम हो सकती है। इससे तनाव और चिंता भी घटती है। तो यह सिर्फ अच्छी सलाह नहीं, बल्कि साइंस से साबित तरीका है। डिजिटल डिटॉक्स को आदत कैसे बनाएं? हमारी जिंदगी में स्क्रीन ने इस तरह जगह बना ली है कि इससे दूरी बनाना थोड़ा मुश्किल काम लगता है। ऑफिस में लैपटॉप में काम करते हैं। लोगों से बातचीत करने के लिए सोशल मीडिया यूज करते हैं। घर पर होते हैं तो टीवी में न्यूज देखते हैं या ओटीटी प्लेटफॉर्म में कोई फिल्म देखते हैं। इस तरह दिन का ज्यादातर समय स्क्रीन के साथ गुजरता है। ऐसे में एक सटीक प्लान की जरूरत है, जिससे हम स्क्रीन से दूरी बनाकर डिजिटल डिटॉक्स कर सकें। ग्राफिक में देखिए- इस तरह करें शुरुआत आप रविवार के दिन फोन बंद करके बच्चों के साथ या फैमिली के साथ कहीं घूमने-फिरने या पिकनिक पर जाइए। वहां बच्चों के साथ खेलिए, मस्ती करिए। इससे फैमिली के साथ वक्त बिताने का मौका मिलेगा और आप फोन से भी दूर रहेंगे। इसी तरह अगले रविवार को फैमिली के सभी सदस्यों के मोबाइल फोन एक बॉक्स में बंद कर दीजिए। इसके बाद सभी लोग अपनी-अपनी पसंद की एक-एक मैगजीन या किताब लेकर बैठ जाइए। इसके बाद सबलोग एक-दूसरे को बताएं कि उन्होंने क्या पढ़ा है। ऐसे छोटे-छोटे कई प्रयोग कर सकते हैं। डिजिटल डिटॉक्स न करने के नुकसान अगर हम डिजिटल डिटॉक्स नहीं करते हैं तो कई परेशानियां हो सकती हैं: कॉन्संट्रेशन भटकता है: पढ़ाई या काम में मन नहीं लगता है। नींद कम आती है: देर रात तक स्क्रीन देखने से नींद खराब होती है। अकेलापन बढ़ता है: ऑनलाइन ज्यादा समय बिताने से असली रिश्ते कमजोर पड़ते हैं। शरीर कमजोर होता है: बैठे रहने से सेहत खराब हो सकती है। तनाव बढ़ता है: डिजिटल नॉइज से दिमाग थक जाता है। लंबे समय तक ऐसा चलने से हम पूरी तरह थक सकते हैं, जिसे बर्नआउट कहते हैं। डिजिटल डिटॉक्स शुरू करते वक्त इन गलतियों से बचें: डिजिटल डिटॉक्स तोहफे की तरह है डिजिटल डिटॉक्स हमारे लिए एक तोहफा है। यह हमें डिजिटल दुनिया के शोर से दूर ले जाता है और जिंदगी में शांति लाता है। अपने दिमाग को आराम देना, परिवार के साथ हंसी-खुशी बिताना और खुद को तरोताजा करना, ये सब डिटॉक्स से संभव है। आज से ही शुरुआत करें। एक घंटा, एक दिन या एक छोटा कदम, बस कोशिश करें। आप देखेंगे कि जिंदगी कितनी हल्की और आसान लगने लगती है। .......................... ये खबर भी पढ़ें गुड हैबिट्स- NO कहने की ताकत:अच्छा बनने के लिए हमेशा Yes कहना जरूरी नहीं, NO का मतलब है सेल्फ डिफेंस, NO कहना कैसे सीखें हममें से कई लोग अक्सर विनम्रता के कारण, दूसरों को निराश न करने के डर से या सामाजिक अपेक्षाओं के कारण उन चीजों और कामों के लिए 'हां' कह देते हैं, जो हम वास्तव में नहीं करना चाहते हैं। पूरी खबर पढ़िए...