धरती की कोई भी हलचल अब छिप नहीं पाएगी. NASA और ISRO ने साथ मिलकर दुनिया का पहला डुअल-रडार सैटेलाइट NISAR -NASA-ISRO Synthetic Aperture Radar बनाया है, जो एक बड़ा गेमचेंजर साबित होगा. श्रीहरिकोटा से बुधवार (30 जुलाई, 2025) को लॉन्च हो रहा NISAR एक रडार सैटेलाइट है, जो धरती की सतह और बर्फ से ढके इलाकों का उच्च-रिज़ोल्यूशन 3D नक्शा तैयार करेगा. यह इतना संवेदनशील है कि सेंटीमीटर के अंश जितने छोटे बदलाव भी रिकॉर्ड कर सकता है. यह मिशन ना केवल विज्ञान के लिए बल्कि आम नागरिकों और policymakers के लिए भी बेहद उपयोगी साबित होगा.NISAR भारत के लिए गर्व की बातबड़ी बात ये है कि NISAR मिशन भारत के लिए बहुत ही गर्व की बात है. इसमें ISRO ने इसमें सिर्फ भागीदारी ही नहीं निभाई, बल्कि सैटेलाइट का आधा हिस्सा खुद बनाया है, जैसे S-बैंड रडार, सैटेलाइट का ढांचा और रॉकेट. ये सैटेलाइट भारत से ही लॉन्च होगा, जो दिखाता है कि भारत अब किसी भी बड़े अंतरिक्ष मिशन को खुद अपने दम पर संभाल सकता है. इसरो ने S-बैंड रडार बनाया है, जो सैटेलाइट का एक बड़ा और जरूरी हिस्सा है, खासकर खेती और सतह पर नजर रखने के लिए. सैटेलाइट का ढांचा (bus) ISRO ने तैयार किया है, जिसमें सभी सिस्टम जुड़ते हैं. GSLV रॉकेट दिया है जो इस सैटेलाइट को स्पेस में पहुंचाएगा. इसके अलावा डेटा रिसीव करना, उसकी प्रोसेसिंग और लोगों तक पहुंचाना, ये काम ISRO के सेंटर करेंगे. मिशन ऑपरेशन और कंट्रोल भारत की टीम संभालेगी, जो स्पेस में रहकर सैटेलाइट से डेटा लेती और दिशा-निर्देश भेजती है.NISAR के सबसे बड़े फैक्ट्स अब तक का सबसे hi– tech रडार सिस्टम है. NISAR में दो सिंथेटिक एपरचर रडार लगे हैं. L-बैंड रडार (NASA द्वारा विकसित). S-बैंड रडार (ISRO द्वारा निर्मित) है. इन दोनों की ताकत को मिलाकर यह सैटेलाइट दुनिया का पहला डुअल-फ्रीक्वेंसी रडार सिस्टम बनता है. L-बैंड गहरी सतहों और जंगलों की परतों तक पहुंच सकता है, जबकि S-बैंड सतह की ऊपरी गतिविधियों का सूक्ष्म अध्ययन करता है.हर 12 दिन में पूरी धरती का सर्विलांस NISAR पूरी पृथ्वी की स्कैनिंग हर 12 दिन में दो बार करेगा. यह कार्यक्षमता खास तौर पर उन इलाकों के लिए उपयोगी होगी, जहां भूकंप, हिमस्खलन, बर्फ पिघलने या जंगल कटने जैसी गतिविधियाँ होती हैं. इसकी दृष्टि बादलों, बारिश, अंधेरे किसी चीज़ से नहीं रुकती.आपदाओं से पहले चेतावनी देगा NISARभूकंप, ज्वालामुखी, लैंडस्लाइड और बांध जैसी संरचनाओं पर नजर रखकर NISAR संभावित खतरे पहले ही भांप सकेगा. उदाहरण के तौर पर, यह फॉल्ट लाइनों पर हुई गतिविधि से यह समझ सकेगा कि कौन सी जगह खतरे में है और कब वहां भूचाल आ सकता है.NISAR से किसे फायदा होगा? किसानों को फसलों की सेहत और जल प्रबंधन को समझने में मदद मिलेगी. वैज्ञानिक ग्लेशियरों, परमहिमानी क्षेत्रों, वनों और दलदलों के परिवर्तन की ट्रैकिंग कर सकेंगे. प्राकृतिक आपदाओं के रिस्क को पहले से पहचानकर सरकारें लोगों की सुरक्षा योजनाएं बना सकेंगी. क्लाइमेट चेंज को लेकर विश्वस्तरीय नीतियों को और सटीक बनाया जा सकेगा.NISAR की लॉन्चिंग- तारीख और स्थानलॉन्च की तारीख: 30 जुलाई 2025 ( शाम 5:40 ) लॉन्च स्थल: सतीश धवन स्पेस सेंटर, श्रीहरिकोटा, भारतरॉकेट: ISRO का GSLV (Geosynchronous Satellite Launch Vehicle)ये भी पढ़ेंShama Parveen: आतंकी संगठन अल कायदा से जुड़ी शमा परवीन गिरफ्तार, इस खतरनाक मकसद के लिए मिली जिम्मेदारी