यह मामला सहमति की परिभाषा पर नई बहस छेड़ रहा है. सवाल उठ रहा है कि क्या भारतीय क़ानूनों, ख़ासकर 2012 के पॉक्सो क़ानून में बदलाव करके 16 से 18 साल वाले किशोरों के बीच सहमति से बने संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर देना चाहिए.