सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाईकोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी है, जिसमें पश्चिम बंगाल की नई ओबीसी लिस्ट के कार्यान्वयन को स्थगित कर दिया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने लिस्ट पर रोक लगाने के लिए हाईकोर्ट की तरफ से जो कारण दिया है, उस पर हैरानी जताई. कोर्ट ने कहा कि आरक्षण कार्यकारी कार्यों का हिस्सा है. कोर्ट ने हाईकोर्ट से इस बात पर भी आपत्ति जताई कि राज्य सरकार को लिस्ट में नए समुदायों को शामिल करने या संशोधन के लिए विधानसभा में बिल लाना चाहिए. कोर्ट ने कहा, 'प्रथम दृष्टया हाईकोर्ट का आदेश त्रुटिपूर्ण प्रतीत होता है.'बंगाल सरकार ने 17 जून के हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी है. हाईकोर्ट ने ओबीसी लिस्ट में 77 नए समुदायों को शामिल किए जाने पर आपत्ति जताई थी, जिसके बाद राज्य सरकार ने नई लिस्ट तैयार की, लेकिन 17 जून को हाईकोर्ट ने इसका नोटिफिकेश जारी किए जाने पर भी रोक लगा दी.मुख्य न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई, जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस एनवी अंजारिया की बेंच मामले पर सुनवाई कर रही थी. बेंच ने बंगाल सरकार की स्पेशल लीव पेटिशन पर अंतरिम आदेश पारित करते हुए हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी.कोर्ट ने कहा, 'ये तो हैरानी वाली बात है. कैसे कोई हाईकोर्ट इस तरह रोक लगा सकता है आरक्षण कार्यपालिका के कार्यों का हिस्सा है. इंदिरा साहनी के समय से यह कानून है कि कार्यपालिका ऐसा कर सकती है. आरक्षण प्रदान करने के लिए कार्यकारी निर्देश पर्याप्त हैं, उसके लिए कानून बनाना जरूरी नहीं है. हम तो हैरान हैं... ये हाईकोर्ट ने क्या वजह दी है.'हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से कहा था कि उसे 2012 कानून की अनुसूचि में संशोधन करने या नए समुदायों को जोड़ने के लिए विधानसभा में बिल लाना चाहिए. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के इस तर्क पर असहमति जताई है. सीजेआई बी आर गवई ने सुझाव दिया कि अगर पक्षकार इच्छुक हों तो वे हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से अनुरोध कर सकते हैं कि वे इस मुद्दे पर छह सप्ताह के निर्धारित समय सीमा में निर्णय करने के लिए एक नई पीठ गठित करें.इससे पहले पीठ ने राज्य सरकार का पक्ष रखने के लिए पेश हुए सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल की दलीलों पर संज्ञान लेते हुए कहा, 'यह आश्चर्यजनक है. हाईकोर्ट ऐसा आदेश कैसे दे सकता है? आरक्षण कार्यपालिका के कार्य का हिस्सा है.' सीजेआई गवई ने चुनौती दिए गए आदेश के कुछ हिस्सों का उल्लेख करते हुए कहा कि जारी किए गये निर्देशों की समग्रता में व्याख्या किए जाने की आवश्यकता है.सीजेआई ने कहा, 'हम इस पर नोटिस जारी करेंगे. यह आश्चर्यजनक है. हाईकोर्ट इस तरह कैसे रोक लगा सकता है? आरक्षण कार्यपालिका के कार्यों का हिस्सा है. इंदिरा साहनी (मंडल फैसले) से ही यह स्थापित कानून है, स्थिति यह है कि कार्यपालिका ऐसा कर सकती है.' पीठ ने कहा कि आरक्षण देने के लिए कार्यकारी निर्देश पर्याप्त हैं और इसके लिए कानून बनाना आवश्यक नहीं है.कपिल सिब्बल ने हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने का अनुरोध करते हुए कहा कि इसकी वजह से शिक्षकों और अन्य की नियुक्तियां रुक गई हैं. प्रतिवादियों की ओर से पेश हुए सीनियर एडवोकेट रंजीत कुमार और गुरु कृष्णकुमार ने हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने की याचिका का विरोध किया.कृष्णकुमार ने दलील दी कि राज्य कार्यकारी आदेश के तहत आरक्षण देने के लिए स्वतंत्र है, लेकिन कुछ निर्णय ऐसे भी हैं, जिनमें कहा गया है कि यदि इसे नियंत्रित करने वाला विधायी ढांचा है, तो कानून की कठोरता का पालन किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि नई ओबीसी सूची बिना किसी आंकड़े के तैयार की गई है.कपिल सिब्बल ने कृष्णकुमार की दलील का विरोध करते हुए कहा कि नई सूची राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग की ओर से ताजा सर्वेक्षण और रिपोर्ट के आधार पर तैयार की गई है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'नोटिस जारी किया जाए. इस बीच, चुनौती दिए गए आदेश पर रोक रहेगी.'कलकत्ता हाईकोर्ट ने 17 जून को पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से ओबीसी-ए और ओबीसी-बी कैटेगरी के तहत 140 उपवर्गों को आरक्षण देने के संबंध में जारी अधिसूचनाओं पर अंतरिम रोक लगाने का आदेश दिया था. ओबीसी सूची में 77 समुदायों को शामिल करने के फैसले को मई 2024 में हाईकोर्ट की ओर से रद्द करने के बाद राज्य ने नई सूची तैयार की थी.