यौन उत्पीड़न की शिकायत सुनने के लिए राजनीतिक पार्टियों के दफ्तरों में आंतरिक शिकायत समिति (ICC) बनाने की मांग सुनने से सुप्रीम कोर्ट ने मना कर दिया है. चीफ जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि कानून बनाना संसद का काम है.क्या थी याचिका?याचिकाकर्ता योगमाया एम जी ने प्रिवेंशन ऑफ सेक्सुअल हरासमेंट ऐट वर्कप्लेस (POSH) एक्ट के तहत हर राजनीतिक पार्टी के कार्यालय में आंतरिक शिकायत समिति (ICC) बनाने की मांग की थी. उनका कहना था कि अधिकतर राजनीतिक दलों ने इस तरह की कोई व्यवस्था नहीं बनाई है.केरल हाई कोर्ट के फैसले का हवालायाचिकाकर्ता के लिए पेश वरिष्ठ वकील शोभा गुप्ता ने केरल हाई कोर्ट के एक फैसले का हवाला दिया. उस फैसले में हाई कोर्ट ने कहा था कि अपने दफ्तर में काम करने वाले लोगों से राजनीतिक पार्टी का संबंध नियोक्ता और कर्मचारी का नहीं है. वरिष्ठ वकील ने कहा कि यह फैसला राजनीतिक पार्टियों में ICC बनाने में अड़चन की तरह है. इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि वह चाहें तो इस फैसले को चुनौती देने के लिए याचिका दाखिल कर सकती हैं.क्या है POSH?कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 को संक्षेप में POSH एक्ट कहा जाता है. इस कानून का उद्देश्य कामकाजी महिलाओं के लिए उनके कार्यालय में सुरक्षित माहौल बनाना है. इस कानून में किसी भी तरह के यौन उत्पीड़न को लेकर महिला कर्मचारियों की शिकायत सुनने के लिए हर दफ्तर में इंटरनल कम्प्लेंट कमेटी बनाने का प्रावधान है. इस कमेटी को जांच और कार्रवाई को लेकर व्यापक अधिकार दिए गए हैं. इसके अलावा हर जिले में प्रशासन की भी भूमिका ऐसे मामलों को लेकर तय की गई है. इसके तहत जिन छोटे दफ्तरों में ICC न हो, वहां काम करने वाली महिला जिला प्रशासन की तरफ से बनाई गई LCC (लोकल कम्प्लेंट कमिटी) को शिकायत दे सकती है.कोर्ट पहले भी कर चुका मनापिछले साल दिसंबर में सुप्रीम कोर्ट की एक दूसरी बेंच ने इसी याचिकाकर्ता को चुनाव आयोग के पास जाने की सलाह दी थी. जस्टिस सूर्य कांत की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा था कि राजनीतिक पार्टियों का रजिस्ट्रेशन चुनाव आयोग करता है इसलिए याचिकाकर्ता को पहले आयोग के पास जाना चाहिए.