एक देश, एक चुनाव पर JPC की बैठक आज:15वें वित्त आयोग के अध्यक्ष एनके सिंह राय रखेंगे, पिछली मीटिंग में दो पूर्व CJI शामिल हुए थे

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एक देश, एक चुनाव पर बनी संयुक्त संसदीय समिति (JPC) की बुधवार को छठी बैठक होगी। इस बैठक में इकोनॉमिस्ट एनके सिंह और इकोनॉमी की प्रोफेसर डॉ प्राची मिश्रा पैनल के सामने अपनी राय रखेंगी। एनके सिंह राज्यसभा सांसद रह चुके हैं। इसके अलावा वे 15वें वित्त आयोग के अध्यक्ष,योजना आयोग के सदस्य, केंद्रीय राजस्व सचिव और प्रधानमंत्री के सचिव जैसे अहम पदों पर भी काम कर चुके हैं। वहीं, डॉ प्राची मिश्रा अशोका यूनिवर्सिटी के आइजैक सेंटर फॉर पब्लिक पॉलिसी की प्रमुख और निदेशक हैं। इससे पहले 11 जुलाई को हुई JPC की बैठक में भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जेएस खेहर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के साथ बातचीत हुई थी। पूर्व CJI के अलावा पैनल ने पूर्व सांसद और कानून और न्याय पर संसदीय स्थायी समिति के पूर्व अध्यक्ष ईएमएस नचियाप्पन से भी चर्चा की थी। एक देश, एक चुनाव के लिए 129वें संविधान संशोधन बिल पर चर्चा करने और सुझाव लेने के लिए भाजपा सांसद पीपी चौधरी की अध्यक्षता में 39 सदस्यीय JPC बनाई गई है। JPC का काम बिल पर व्यापक विचार-विमर्श, विभिन्न पक्षकारों और विशेषज्ञों से चर्चा करके और अपनी सिफारिशें देना है। 5वीं बैठक में चंद्रचूड़ बोले- वन नेशन-वन इलेक्शन बिल संविधान के खिलाफ नहीं 11 जुलाई की बैठक में पूर्व CJI चंद्रचूड़ ने कहा था कि एक साथ लोकसभा-विधानसभा चुनाव कराने के प्रस्ताव को लागू करने वाला बिल संविधान के मूल ढांचे को प्रभावित नहीं करता। उन्होंने कहा कि बिल में चुनाव आयोग (EC) की शक्तियों से संबंधित कुछ प्रावधानों पर बहस करने की जरूरत है। पूर्व CJI ने कहा कि बिल के प्रावधान लागू करने के लिए विधानसभा के कार्यकाल में किसी भी बदलाव का फैसला संसद को करना चाहिए, चुनाव आयोग को नहीं। जिन मामलों को टालना है, उन्हें संसद की मंजूरी से किया जा सकता है। पहली बैठक- 8 जनवरी 8 जनवरी को JPC की पहली बैठक हुई थी। इसमें सभी सांसदों को 18 हजार से ज्यादा पेज की रिपोर्ट वाली एक ट्रॉली दी गई थी। इसमें हिंदी और अंग्रेजी में कोविंद समिति की रिपोर्ट और अनुलग्नक की 21 कॉपी शामिल है। इसमें सॉफ्ट कॉपी भी शामिल है। पूरी खबर पढ़ें... दूसरी बैठक- 31 जनवरी 129वें संविधान संशोधन बिल पर 31 जनवरी 2025 को दूसरी बैठक हुई थी। इसमें कमेटी ने बिल पर सुझाव लेने के लिए स्टेक होल्डर्स की लिस्ट बनाई। इसमें सुप्रीम कोर्ट और देश के अलग-अलग हाई कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस, चुनाव आयोग, राजनीतिक दल और राज्य सरकारें शामिल हैं। पूरी खबर पढ़ें... तीसरी बैठक- 25 फरवरी 25 फरवरी को कमेटी की तीसरी बैठक हुई। इसमें पूर्व चीफ जस्टिस उदय उमेश ललित, लॉ कमीशन के पूर्व अध्यक्ष ऋतुराज अवस्थी समेत 4 लॉ एक्सपर्ट्स कमेटी के सामने सुझाव दिए। पूरी खबर पढ़ें... चौथी बैठक- 26 मार्च 26 मार्च को जॉइंट पार्लियामेंट्री कमेटी (JPC) की मंगलवार को चौथी बैठक हुई थी। इसमें अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी, दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल, जेपीसी सदस्य प्रियंका गांधी वाड्रा समेत और अन्य लोग पहुंचे थे। सूत्रों के मुताबिक अटॉर्नी जनरल वेंकटरमणी ने JPC से कहा था- प्रस्तावित कानूनों में किसी संशोधन की आवश्यकता नहीं है। एक साथ चुनाव कराने के विधेयक संविधान की किसी भी विशेषता को प्रभावित नहीं करते। ये कानून की दृष्टि से सही हैं। पूरी खबर पढें... एक देश-एक चुनाव क्या है...भारत में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए अलग-अलग समय पर चुनाव होते हैं। एक देश-एक चुनाव का मतलब लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने से है। यानी मतदाता लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के सदस्यों को चुनने के लिए एक ही दिन, एक ही समय वोट डालेंगे। आजादी के बाद 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ ही हुए थे, लेकिन 1968 और 1969 में कई विधानसभाएं समय से पहले ही भंग कर दी गईं। उसके बाद दिसंबर, 1970 में लोकसभा भी भंग कर दी गई। इस वजह से एक देश-एक चुनाव की परंपरा टूट गई। एक साथ चुनाव करवाने के 4 बड़े फायदे रामनाथ कोविंद समिति ने अपनी रिपोर्ट में एकसाथ चुनाव करवाए जाने के पक्ष में ये तर्क दिए हैं... 1. शासन में निरंतरता आएगी: देश के विभिन्न भागों में चुनावों के चल रहे चक्रों के कारण राजनीतिक दल, उनके नेता और सरकारों का ध्यान चुनावों पर ही रहता है। एक साथ चुनाव करवाने से सरकारों का फोकस विकासात्मक गतिविधियों और जनकल्याणकारी नीतियों के क्रियान्वयन पर केंद्रित होगा। 2. अधिकारी काम पर ध्यान दे पाएंगे: चुनाव की वजहों से पुलिस सहित अनेक विभागों के पर्याप्त संख्या में कर्मियों की तैनाती करनी पड़ती है। एकसाथ चुनाव कराए जाने से बार बार तैनाती की जरूरत कम हो जाएगी, जिससे सरकारी अधिकारी अपने मूल दायित्यों पर फोकस कर पाएंगे। 3. पॉलिसी पैरालिसिस रुकेगा: चुनावों के दौरान आदर्श आचार संहिता के क्रियान्वयन से नियमित प्रशासनिक गतिविधियां और विकास कार्य बाधित हो जाते हैं। एक साथ चुनाव कराने से आदर्श आचार संहिता के लंबे समय तक लागू रहने की अवधि कम होगी, जिससे पॉलिसी पैरालिसिस कम होगा। 4. वित्तीय बोझ में कमी आएगी: एकसाथ चुनाव कराने से खर्च में काफी कमी आ सकती है। जब भी चुनाव होते हैं, मैनपॉवर, उपकरणों और सुरक्षा उपायों के प्रबंधन पर भारी खर्च होता है। इसके अलावा राजनीतिक दलों को भी काफी खर्च करना पड़ता है। ये आंकड़े करते हैं एकसाथ चुनावों का समर्थन • 2019-2024 के दौरान भारत में 676 दिन आचार संहिता लागू रही, यानी हर साल करीब 113 दिन। • अकेले 2024 के लोकसभा चुनावों में ही एक अनुमान के मुताबिक करीब 1 लाख करोड़ रुपए खर्च हुए। ------------------------------------------ मामल से जुड़ी यह खबर भी पढ़ें... एक देश-एक चुनाव संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं, पूर्व CJI चंद्रचूड़ ने संसदीय समिति को लिखित राय दी पूर्व चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, 'लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराना संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं है।' हालांकि, प्रस्तावित बिल में चुनाव आयोग (ECI) को दी जाने वाली शक्तियों पर चिंता उन्होंने जताई है। पूरी खबर पढ़ें...