जरूरत की खबर- मानसून में बढ़ता इन्फेक्शन का रिस्क:डाइट में:डॉक्टर के मुताबिक, पुराने एल्युमिनियम बर्तन हो सकते हैं खतरनाक, 8 सेफ्टी टिप्स

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मुंबई के एक 50 वर्षीय व्यक्ति को महीनों से थकान, पैरों में दर्द और भूलने की समस्या हो रही थी। बार-बार टेस्ट कराए गए, लेकिन कोई ठोस कारण सामने नहीं आया। आखिरकार जब डॉक्टर ने हेवी मेटल स्क्रीनिंग करवाई तो चौंकाने वाला सच सामने आया। शरीर में लेड (सीसा) की मात्रा खतरनाक लेवल तक पहुंच चुकी थी। हैरानी की बात यह थी कि यह लेड किसी फैक्ट्री, पेंट या पानी से नहीं, बल्कि उनके किचन में 20 साल से इस्तेमाल हो रहे एक पुराने एल्युमिनियम प्रेशर कुकर से धीरे-धीरे शरीर में पहुंच रहा था। तो चलिए, जरूरत की खबर में बात करेंगे कि लेड पॉइजनिंग क्या है? साथ ही जानेंगे कि- एक्सपर्ट: डॉ. रोहित शर्मा, कंसल्टेंट इंटरनल मेडिसिन, अपोलो स्पेक्ट्रा हॉस्पिटल, जयपुर सवाल- लेड पॉइजनिंग क्या होती है? जवाब- लेड पॉइजनिंग तब होती है, जब शरीर में सीसा (lead) जमा हो जाता है। सीसा एक धातु है, जो पुराने पेंट, पानी की पुरानी पाइपों, कुछ बर्तनों की चमक (ग्लेज), बैटरियों में पाया जाता है। अमेरिका में लेड (सीसा) से होने वाली बीमारी एक बड़ी चिंता है। हर साल करीब 5 लाख बच्चों (जो 5 साल से छोटे हैं) के खून में लेड की मात्रा जरूरत से ज्यादा पाई जाती है। यह लेड धीरे-धीरे खाने, पानी, हवा या स्किन के संपर्क से शरीर में जमा हो जाता है। इसका असर खासतौर पर दिमाग, किडनी, नसों, बच्चे पैदा करने की क्षमता और बच्चों के व्यवहार पर पड़ता है। सवाल- क्या लेड पॉइजनिंग का असर तुरंत दिखता है? जवाब- नहीं, इसका असर धीरे-धीरे होता है। लेड शरीर में धीरे-धीरे जमा होता है, इसलिए शुरू में इसके लक्षण बहुत हल्के होते हैं। जैसे थकान, चिड़चिड़ापन या पेट में हल्का दर्द। अक्सर लोग इन्हें मामूली समझकर नजरअंदाज कर देते हैं। बच्चों में तो ये लक्षण और भी कम दिखते हैं, लेकिन धीरे-धीरे यह बड़ी बीमारी बन सकते हैं। सवाल- मुंबई में लेड पॉइजनिंग की असली वजह कैसे पता चली? जवाब- दरअसल उस शख्स को कमजोरी और पेट दर्द की शिकायत थी। जब उसके ब्लड की जांच की गई तो उसमें लेड की मात्रा 22 माइक्रोग्राम/डेसीलीटर पाई गई, जो सामान्य स्तर से चार गुना ज्यादा थी। इसके बाद जब उसके घर का निरीक्षण किया गया तो पता चला कि वह 20 साल पुराना एल्युमिनियम प्रेशर कुकर रोज इस्तेमाल कर रहा था। इसी कुकर से धीरे-धीरे लेड उसके शरीर में जा रहा था। सवाल- एल्युमिनियम कुकर से लेड शरीर में कैसे जाता है? जवाब- जब एल्युमिनियम कुकर बहुत पुराना हो जाता है तो उसकी परत घिसने लगती है। अगर उसमें रोज खट्टी चीजें जैसे टमाटर या इमली पकाई जाएं तो बर्तन से लेड और एल्युमिनियम जैसे धातु खाने में घुल सकते हैं। ये धातु धीरे-धीरे शरीर में जमा होते हैं और दिमाग समेत कई अंगों को नुकसान पहुंचा सकते हैं। सवाल- लेड पॉइजनिंग से बचाव कैसे करें? जवाब- सबसे पहले अपने किचन में मौजूद पुराने बर्तनों पर ध्यान दें। खासतौर पर वे एल्युमिनियम के बर्तन जो कई सालों से इस्तेमाल हो रहे हैं। अगर उनकी सतह घिस चुकी है या रंग उतरने लगा है तो वे खतरे का संकेत हो सकते हैं। इसलिए जरूरी है कि हम बर्तनों की चमक या ब्रांड नहीं, उनकी सेफ्टी पर ध्यान दें। समय-समय पर जांच करवाना, सुरक्षित मटेरियल वाले बर्तन इस्तेमाल करना और शक होने पर डॉक्टर से ब्लड टेस्ट कराना ही लेड पॉइजनिंग से बचने का सही तरीका है। सवाल- क्या लेड पॉइजनिंग का इलाज संभव है? जवाब- लेड पॉइजनिंग का इलाज संभव है, लेकिन यह समय पर पहचान पर निर्भर करता है। अगर शुरुआत में ही इलाज शुरू हो जाए तो शरीर से लेड की मात्रा कम की जा सकती है। लेकिन जिन अंगों को पहले ही नुकसान पहुंच चुका होता है, उनकी पूरी तरह से भरपाई नहीं हो पाती। इसलिए बचाव ही सबसे बेहतर उपाय है। सवाल- क्या लेड शरीर में जमा होता रहता है या बाहर निकल जाता है? जवाब- लेड एक बार शरीर में पहुंचने के बाद जल्दी बाहर नहीं निकलता है। यह हड्डियों, लिवर और किडनी में जमा हो सकता है और सालों तक बना रह सकता है। यही कारण है कि इसकी थोड़ी-थोड़ी मात्रा भी लंबे समय में गंभीर असर डाल सकती है। सवाल- लेड बच्चों को ज्यादा क्यों प्रभावित करता है? जवाब- बच्चों का शरीर और दिमाग तेजी से विकसित हो रहा होता है। ऐसे में लेड उनकी नसों और दिमागी विकास को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचा सकता है। इससे बच्चों में सीखने में दिक्कत, व्यवहार में बदलाव और ध्यान केंद्रित करने में परेशानी हो सकती है। सवाल- क्या RO या नल का पानी भी लेड का स्रोत हो सकता है? जवाब- हां, अगर पानी पुरानी सीसे की पाइपलाइन से आता है या टंकी में लंबे समय से जमा है तो उसमें लेड हो सकता है। अच्छी क्वालिटी का RO फिल्टर कुछ हद तक लेड हटाने में मदद करता है, लेकिन इसका समय-समय पर चेकअप जरूरी है। सवाल- शरीर से लेड निकालने के लिए क्या इलाज होता है? जवाब- जब शरीर में लेड बहुत ज्यादा हो जाता है तो उसे निकालने के लिए किलेशन थैरेपी (Chelation Therapy) दी जाती है। इसमें डॉक्टर ऐसी दवाएं देते हैं, जो खून में मौजूद लेड को पकड़ लेती हैं और उसे यूरिन के जरिए शरीर से बाहर निकाल देती हैं। लेकिन ये इलाज हर किसी को नहीं दिया जाता है सिर्फ तब, जब खून में लेड की मात्रा खतरनाक स्तर पर पहुंच जाती है। इस थैरेपी के दौरान मरीज की नियमित जांच की जाती है ताकि किसी साइड इफेक्ट का खतरा न हो। …………… ये खबर भी पढ़िए…जरूरत की खबर- मानसून में बढ़ता इन्फेक्शन का रिस्क:डाइट में करें बदलाव, डाइटीशियन से जानें इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए क्या खाएं बारिश का मौसम अपने साथ ठंडक और ताजगी लाता है। लेकिन इसके साथ कई बीमारियां भी दस्तक देती हैं। दरअसल इस मौसम में हवा में नमी बढ़ने से फंगस और बैक्टीरिया तेजी से पनपते हैं। ऐसे में खुद को स्वस्थ बनाए रखने के लिए बरसात के मौसम में खानपान और लाइफस्टाइल में कुछ बदलाव करना बेहद जरूरी है। पूरी खबर पढ़िए...