जापान में 20 जुलाई को ऊपरी सदन के चुनाव हुए। इसमें सत्ताधारी पार्टी शिगेरु इशिबा की लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (LDP) का प्रदर्शन बहुत बुरा रहा। निचले सदन में पहले से अल्पमत में चल रही LDP ने उच्च सदन में भी बहुमत खो दिया। LDP की स्थापना 1955 में हुई थी और यह पहला मौका है जब वह दोनों सदनों में अल्पमत में है। पार्टी के खराब प्रदर्शन का जिम्मेदार दक्षिणपंथी सैनसेतो पार्टी को माना जा रहा है। जापान फर्स्ट एजेंडे को लेकर प्रचार करने वाली सैनसेतो ने चुनाव में 14 सीटें हासिल की हैं। इससे पहले सैनसेतो के पास 248 सीटों वाली संसद के उच्च सदन में सिर्फ 1 सीट थी। इसे जापान की राजनीति में एक बड़े बदलाव का संकेत माना जा रहा है। इसका श्रेय सैनसेतो पार्टी की शुरुआत करने वाले सोहेई कामिया को दिया जा रहा है। कामिया को जापान का ‘ट्रम्प’ कहा जाता है। उन्होंने कोविड-19 महामारी के दौरान यूट्यूब पर पार्टी की शुरुआत की थी। तब कामिया ने वैक्सीनेशन के खिलाफ साजिश की बातें फैलाकर काफी चर्चा हासिल की। सिर्फ 6 साल में उनकी पार्टी सैनसेतो जापान की सबसे लोकप्रिय पार्टियों में से एक बन गई है। मास्क-वैक्सीन का विरोध कर फेमस हुई सैनसेतो सैनसेतो पार्टी कोरोना के खतरों के बीच अप्रैल 2020 में YouTube पर लॉन्च हुई थी। यह ऐसा वक्त था जब दुनिया कोरोना के खतरे से जूझ रही थी। सोशल डिस्टेंसिंग और लोगों का मास्क पहनना जरूरी था। ऐसे में सैनसेतो ने मास्क का विरोध किया। पार्टी का कहना था कि यह एक अंतरराष्ट्रीय साजिश है। इसने वैक्सीन का भी विरोध किया। शुरू में इसे एक षड्यंत्र फैलाने वाली पार्टी माना गया जिस वजह से लोगों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। हालांकि बाद में सैनसेतो ने अपना एजेंडा बदला और खुद को राष्ट्रवादी और लोकलुभावन पार्टी के तौर पर पेश किया। चुनाव प्रचार में पार्टी ने टैक्स घटाने और बच्चों के भत्तों को बढ़ाने जैसे वादे किए, लेकिन असली पहचान इसे राष्ट्रवादी विचारों के कारण मिली है। युवाओं में खासतौर पर इस पार्टी की लोकप्रियता ऑनलाइन खूब बढ़ी है। इसका असर जापान की मुख्य सत्तारूढ़ लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (LDP) पर पड़ा है, जो कि दक्षिणपंथी मतदाताओं की पहली पसंद हुआ करती थी। एक्सपर्ट मानते हैं कि LDP के कई रूढ़िवादी समर्थक इशिबा को उतना मजबूत नेता नहीं मानते जितने कभी शिंजो आबे को मानते थे। उदाहरण के लिए, एलडीपी के नेतृत्व में LGBTQ अधिकारों को लेकर कानून पास किया गया, जो पारंपरिक रूढ़िवादियों को पसंद नहीं आया। ट्रम्प से सीख राजनीति में सफल हुए कामिया कामिया खुद ये मानते हैं कि उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प से बहुत कुछ सीखा है। खासकर भाषण देने की शैली। वह खुद को ट्रम्प जैसा बताते हैं। वे ट्रम्प की तरह जापान को विदेशी लोगों, वैश्विक ताकतों और भ्रष्ट नेताओं से बचाना चाहते हैं। वे भी जापान को ‘जापानियों के लिए’ बनाना चाहते हैं और कहते हैं कि विदेशी कंपनियां और बाहरी ताकतें देश की नीतियों का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए कर रही हैं। उनका मानना है कि जापान को वैश्विक पूंजी से आजाद होना चाहिए, क्योंकि विदेशी कंपनियां देश की नीतियों को प्रभावित कर रही हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर ऐसा चलता रहा तो जापान एक ‘उपनिवेश’ बन जाएगा। कामिया अमेरिका के साथ रिश्ते तो बनाए रखना चाहते हैं, लेकिन ट्रम्प की ही तरह वे चाहते हैं कि ये संबंध बराबरी के आधार पर हो। उनका मानना है कि ट्रम्प जैसे नेता जापान की आजादी का सम्मान करेंगे, बशर्ते जापान खुद आत्मनिर्भर बनने की कोशिश करे। राजा को मिस्ट्रेस रखने की दी सलाह कामिया ट्रम्प की तरह अपने विवादित बयानों को लेकर सुर्खियों में रहे हैं। उन्होंने एक बार कहा था कि जापान के सम्राट को ‘रखैल' रखने की अनुमति होनी चाहिए। कामिया का मानना है कि जापान में राजा के वंश को बनाए रखने के लिए ऐसा करना जरूरी है। ऐसा करने से वंश में पर्याप्त पुरुष वारिस पैदा हो सकेंगे जिससे शाही रक्तरेखा जारी रहेगी। जापान में महिलाओं को सिंहासन का वारिस बनाने की अनुमति नहीं है। हालांकि जापान में महिला सम्राट बनने का चलन है, लेकिन उनकी संतान को गद्दी नहीं मिलती है। कामिया ने यह भी कहा था कि महिलाओं के काम करने को बढ़ावा नहीं दिया जाना चाहिए, क्योंकि इससे वे बच्चे पैदा नहीं कर पा रही हैं। शिंजो आबे के बाद खाली हुई जगह भर रहे कामिया एक्सपर्ट्स का कहना है कि शिंजो आबे की हत्या के बाद जापान में दक्षिणपंथी राजनीति कमजोर हो चुकी है और सैनसेतो इसकी जगह भर रहे हैं। अब ये पार्टी सत्ताधारी लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (LDP) से वोट खींच रही है। BBC के मुताबिक सैनसेतो की लोकप्रियता की एक बड़ी वजह जापान में तेजी से बढ़ती महंगाई है। जीवन-यापन की लागत बढ़ती जा रही है। दशकों तक जापान में कीमतें स्थिर रहीं, लेकिन अब खाद्य की कीमतों में दोगुना इजाफा हुआ है। देश में मजदूरी में कोई खास बढ़ोतरी नहीं हुई है और धीमी अर्थव्यवस्था के कारण भविष्य को लेकर निराशा फैल रही है। गरीब और मध्यम वर्ग के लोग सबसे ज्यादा परेशान हैं और यही वजह है कि सैनसेतो का वोट बैंक बढ़ता जा रहा है। जापान में 3 साल में एक तिहाई विदेशी आबादी बढ़ी जापान की आबादी घट रही है और बुजुर्ग लोग बढ़ रहे हैं, इस वजह से देश को अब विदेशी कामगारों की जरूरत है। कोरोना के बाद जापान ने वीजा नियमों में ढील दी जिसका असर ये हुआ कि पिछले तीन साल में विदेशी निवासियों की संख्या एक तिहाई बढ़कर 38 लाख हो गई। यह कुल आबादी का सिर्फ 3% है, लेकिन जापानी समाज में इसे लेकर बेचैनी है। जापान जैसे देश में, जहां ज्यादातर लोग एक जैसे रहन-सहन और सोच के हैं, वहां इतने ज्यादा विदेशियों का आना कुछ लोगों को अच्छा नहीं लग रहा है। इससे वे लोग थोड़ा असहज महसूस कर रहे हैं। विदेशियों को अपराधी बताया जा रहासोशल मीडिया पर प्रवासियों को अपराध, नियम तोड़ने और सामाजिक व्यवस्था बिगाड़ने के लिए दोषी ठहराया जा रहा है, जबकि पुलिस के आंकड़े बताते हैं कि जापानी और गैर-जापानी नागरिकों में अपराध दर लगभग बराबर है, लेकिन सैनसेतो इन आंकड़ों को नजरअंदाज करते हुए जनता की भावनाओं को भड़का रहे हैं। जापान में विदेशी लोगों को लेकर फैल रही गलत सूचनाओं ने इस डर को और बढ़ा दिया है। सोशल मीडिया पर कई बार यह झूठ फैलाया जाता है कि कल्याणकारी योजनाओं का एक-तिहाई लाभ विदेशी लोग उठा रहे हैं, जबकि असलियत में ऐसा नहीं है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि सैनसेतो की राजनीति में एंट्री के बाद जापान में विदेशियों के खिलाफ कुछ बोलना आम हो चुका है, जबकि ऐसी बातें पहले ‘वर्जित’ मानी जाती थीं। कामिया का कहना है कि पहले जापान में आप्रवासन पर बात करना आसान नहीं था। जो भी यह मुद्दा उठाता, उसे वामपंथी लोग घेर लेते, लेकिन अब चीजें बदल रही हैं। अब लोग उनकी बातों को ध्यान से सुन रहे हैं, चाहे वे उनसे सहमत हों या नहीं। बूढ़ों के लिए लगने वाले टैक्स के खिलाफ कामिया कामिया की एक प्रमुख मांग 10% कंजम्प्शन टैक्स (उपभोग कर) को खत्म करना है। यह जापान का नेशनल सेल्स टैक्स है जो भारत के GST की तरह हर सामान पर लगता है। जापान में कंजम्प्शन टैक्स की शुरुआत 1989 में हुई थी। तब यह 3% लगाया जाता था। धीरे-धीरे बढ़कर यह 10% हो गया। इस टैक्स से सरकार को खरबों की आय होती है, जिससे वह जनहित से जुड़े खर्चे करती है। कामिया का कहना है कि कंजम्प्शन टैक्स युवाओं को बुजुर्ग आबादी का खर्च उठाने के लिए मजबूर करता है। उनका कहना है कि सरकार को सिर्फ बुजुर्गों की नहीं, बल्कि युवाओं की भी चिंता करनी चाहिए। -------------------------------------------- जापान से जुड़ी यह खबर भी पढ़ें... जापान में PM इशिबा की पार्टी ऊपरी सदन में हारी:1955 के बाद पहली बार दोनों सदनों में बहुमत नहीं, प्रधानमंत्री पर इस्तीफे का दबाव जापान में प्रधानमंत्री शिगेरु इशिबा की लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (LDP) और उसके सहयोगी दल ने देश के ऊपरी सदन में अपना बहुमत खो दिया है। हालांकि उन्होंने साफ कर दिया है कि वो प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा नहीं देंगे। पूरी खबर यहां पढ़ें...