जरा सोचिए, आप अपने दोस्त के साथ बैठे हैं और एसी, फ्रिज या ब्रांडेड कपड़े खरीदने की कैजुअली बात कर रहे हैं। थोड़ी ही देर में आपके स्मार्टफोन पर इन्हीं चीजों के विज्ञापन दिखने लगते हैं। आप हैरान हो जाते हैं, न आपने सर्च किया, न कोई वेबसाइट देखी फिर अचानक ये एडवर्टाइजमेंट कैसे आने लगे? असल में इसका जवाब आपके स्मार्टफोन में ही छिपा है। स्मार्टफोन सिर्फ आपके टच को नहीं, बल्कि आपकी आवाज को भी सुनता है। ये तब तक सामान्य लगता है, जब तक इसका गलत इस्तेमाल न हो। लेकिन अगर आपकी पर्सनल बातें भी रिकॉर्ड होने लगे तो यह आपकी प्राइवेसी के लिए बड़ा खतरा बन सकता है। इसलिए जरूरी है कि स्मार्टफोन की उन सेटिंग्स को पहचानें और उन्हें समय रहते बंद करें। इससे आपकी निजता बनी रहे और आप अनचाहे विज्ञापनों से बच सकें। तो चलिए, जरूरत की खबर में बात करेंगे कि स्मार्टफोन का बात सुनना कितना खतरनाक है? साथ ही जानेंगे कि- एक्सपर्ट: ईशान सिन्हा, साइबर एक्सपर्ट, नई दिल्ली सवाल- क्या स्मार्टफोन वाकई हमारी बातें सुनता है? जवाब- स्मार्टफोन हर वक्त आपकी बातें नहीं सुनता है। हां, अगर आपने किसी एप को माइक्रोफोन की परमिशन दी है। या फिर फोन में ‘Hey Siri’, ‘OK Google’ जैसे वॉयस असिस्टेंट ऑन हैं। ये फीचर बैकग्राउंड में कुछ सेकेंड तक आवाजें सुनते हैं, लेकिन सिर्फ तब एक्टिव होते हैं, जब कोई कमांड ट्रिगर होती है। सवाल- क्या माइक्रोफोन के जरिए सुनी गई बातों के आधार पर ही एडवर्टाइजमेंट दिखाए जाते हैं? जवाब- ज्यादातर एडवर्टाइजमेंट आपके ऑनलाइन व्यवहार पर आधारित होते हैं। जैसे आपकी सर्च हिस्ट्री, एप इस्तेमाल, लोकेशन, ब्राउजिंग पैटर्न और खरीदारी की आदतें। वेबसाइट्स और एप्स आपके हर क्लिक और लाइक को ट्रैक करती हैं और उसी हिसाब से एडवर्टाइजमेंट दिखाती हैं। उदाहरण के लिए आपने मोबाइल कवर सर्च किया तो अब कई साइट्स पर उससे जुड़े एडवर्टाइजमेंट दिख सकते हैं। ‘बात सुनकर ऐड दिखाना’ यानी माइक्रोफोन-बेस्ड टारगेटिंग बेहद कम इस्तेमाल होने वाला तरीका है, जो तभी संभव है जब किसी एप को माइक्रोफोन की परमिशन मिली हो। सवाल- स्मार्टफोन हमारा कौन-कौन सा डेटा इकट्ठा करता है?जवाब- हमारे स्मार्टफोन और दूसरे डिजिटल डिवाइस (जैसे स्मार्टवॉच, लैपटॉप, स्मार्ट टीवी या गेमिंग कंसोल) कई तरह का डेटा इकट्ठा करते हैं, ताकि यूजर एक्सपीरियंस बेहतर हो सके और विज्ञापन ज्यादा रिलेवेंट लगें। इसे नीचे दिए ग्राफिक से समझिए- सवाल- क्या ये सब डेटा आपकी पहचान से जुड़ा होता है? जवाब- भरोसेमंद कंपनियां इस डेटा को आपकी सीधी पहचान (जैसे नाम या पता) से लिंक नहीं करती है। इसके बजाय वे इसे अनजान ग्रुप डेटा (अनाम डेटा) में बदल देती हैं ताकि आपकी प्राइवेसी बनी रहे और विज्ञापन टारगेट किए जा सकें। सवाल- एप हमारी बातचीत को सुन रहा है, यह कैसे पहचान सकते हैं? जवाब- सबसे पहले आप जिस एप का इस्तेमाल कर रहे हैं, उसकी माइक्रोफोन परमिशन चेक करें। अधिकांश स्मार्टफोन एप्स इंस्ट्रॉल के समय माइक्रोफोन एक्सेस की अनुमति मांगते हैं, उस समय जल्दबाजी में हम इग्नोर कर देते हैं और उसे परमिशन दे देते हैं। इसलिए एप्स की प्राइवेसी पॉलिसी पढ़नी चाहिए क्योंकि इनमें बताया जाता है कि एप आपके डेटा का कैसे इस्तेमाल कर सकता है। कुछ एप्स यह विकल्प भी देते हैं कि आप अपनी आवाज की रिकॉर्डिंग को बंद कर सक सकते हैं। सवाल- किसी भी एप का माइक्रोफोन एक्सेस कैसे बंद कर सकते हैं? जवाब- एप का माइक्रोफोन एक्सेस अपने स्मार्टफोन की सेटिंग्स से बंद कर सकते हैं। नीचे ग्राफिक में एंड्राइड और आईफोन दोनों के लिए तरीका दिया है। सवाल- क्या यह कानूनी है? जवाब- यह ग्रे जोन में आता है। अगर आपने माइक्रोफोन एक्सेस की अनुमति दी है तो टेक्निकल रूप से एप नियमों के भीतर है। लेकिन अगर अनुमति के बिना रिकॉर्डिंग हो रही है तो यह कानून का उल्लंघन है। सवाल- ऑनलाइन दुनिया में निजता (Privacy) को सुरक्षित रखने के लिए कौन-से जरूरी कदम उठाए जा सकते हैं? जवाब- ऑनलाइन निजता की सुरक्षा के लिए कुछ आसान आदतें अपनाना जरूरी है। सबसे पहले किसी भी एप को डाउनलोड करने से पहले उसकी प्राइवेसी पॉलिसी जरूर पढ़ें। एप को वही परमिशन दें जो वाकई जरूरी हों, जैसे कि कैमरा, लोकेशन या माइक्रोफोन तक एक्सेस। इसके अलावा यह परमिशन सिर्फ तभी दें, जब बिना उसके एप काम न करे। अपने मोबाइल और सोशल मीडिया की सेटिंग्स समय-समय पर चेक करें ताकि आप जान सकें कि कौन-सी जानकारी दूसरों को दिख रही है। सवाल- इसे लेकर भारतीय कानून क्या कहता है? जवाब- भारत में स्मार्टफोन डेटा की वैधता इस बात पर निर्भर करती है कि क्या डेटा आपकी सहमति से और कानूनी दायरे में किया जा रहा है। भारत में डेटा गोपनीयता से संबंधित प्रमुख कानून और एक्ट हैं। डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट, 2023 (DPDP Act) यह एक नया कानून है, जो आपके ऑनलाइन डेटा की सुरक्षा के लिए बना है। यानी जो जानकारी आप इंटरनेट पर देते हैं (जैसे नाम, मोबाइल नंबर, ईमेल, फोटो) उसे कोई भी कंपनी बिना आपकी इजाजत के इस्तेमाल नहीं कर सकती है। इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट, 2000 (IT Act)अगर कोई कंपनी आपकी निजी जानकारी (जैसे बैंक डिटेल या सेहत से जुड़ी जानकारी) को सुरक्षित नहीं रखती है या बिना आपकी मंजूरी के किसी और को देती है तो उस पर कानूनी कार्रवाई हो सकती है। ……………….ये खबर पढ़ें... स्मार्टफोन चोरी-गुम होने पर घबराएं नहीं, मिल सकता है फोन:CEIR पोर्टल से ब्लॉक करें IMEI नंबर, बैंक अकाउंट और पर्सनल डेटा रहेगा सुरक्षित भारत में हर साल लाखों स्मार्टफोन चोरी होते हैं, लेकिन बहुत से लोगों को यह नहीं पता कि स्मार्टफोन चोरी होने के बाद क्या करना चाहिए। साइबर क्रिमिनल्स आपके फोन का गलत इस्तेमाल कर फर्जीवाड़ा, ऑनलाइन फ्रॉड और पहचान की चोरी कर सकते हैं। पूरी खबर पढ़ें...