कांवड़ यात्रा QR स्टिकर मामले पर सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका का उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकार ने विरोध किया है. इस मामले में मंगलवार (22 जुलाई 2025) को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. कोर्ट ने कहा कि कुछ ढाबे कांवड़ यात्रा के दौरान मांसाहारी बनाना बंद कर देते हैं. हम सहमत हैं कि दुकानदार का नाम जानना जरूरी नहीं, लेकिन कोई तरीका तो होना चाहिए कि तीर्थयात्रियों को इस बारे में पता हो. कोर्ट ने कहा कि तीर्थयात्रियों की धार्मिक भावना और लोगों के संवैधानिक अधिकारों में संतुलन बने. कुछ लोग तो प्याज या लहसुन भी नहीं खाते.याचिकाकर्ता की तरफ से सीनियर एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी ने रोक की मांग की और कहा कि खाने के लिए मेन्यू देखना जरूरी है, दुकानदार का नाम नहीं. QR कोड लगाना सुप्रीम कोर्ट के पिछले साल आए आदेश का उल्लंघन है. उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी पेश हुए, जबकि याचिकाकर्ताओं की ओर से अभिषेक मनु सिंघवी और सीनियर एडवोकेट हुजैफा अहमदी ने दलील दीं. मामले पर सुनवाई जस्टिस एम एम सुंदरेश और जस्टिस एन के सिंह की बेंच कर रही थी.जज ने कहा- कुछ लोगों को प्याज-लहसुन से भी परहेजजस्टिस सुंदरेश ने अभिषेक मनु सिंघवी की दलीलों पर कहा कि जहां मांसाहारी खाना भी बनता है, वहां शाकाहारी लोग या तीर्थयात्री खाना नहीं चाहते. हमारे कई जज भी ऐसी रसोई का खाना नहीं खाते. अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा, 'मैं भी जैन हूं और कांवड़ यात्रा रूट पर पड़ने वाले सभी ढाबे शाकाहारी हैं.'कोर्ट में अभिषेक मनु सिंघवी ने यह भी कहा कि यहां दिक्कत ये है कि दुकानदार अपना नाम नहीं बता रहा, जबकि दिक्कत इस बात से होनी चाहिए कि ढाबे के मेन्यू में क्या है. नाम की जगह मेन्यू कार्ड पर सवाल उठने चाहिए. उन्होंने कहा कि हम होटल या ढाबे में खाना मालिक का नाम देखकर नहीं मेन्यू देखकर खाते हैं. सिंघवी ने कहा- विभाजन के बीज डाले जा रहेअभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि समाज में विभाजन का बीज डाला जा रहा है. इसे रोकना जरूरी है. इस पर यूपी सरकार के वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि दुकानदार का नाम बताना केंद्र सरकार का नियम है. हम कोई नई बात नहीं कर रहे. देश में कई लोग ऐसे हैं जो अशुद्धि की आशंका के चलते अपने भाई के घर भी खाना नहीं खाते.कुछ ढाबे सिर्फ कांवड़ यात्रा में नॉनवेज नहीं बनातेसुनवाई के दौरान यह मुद्दा भी उठा कि कुछ ढाबे सिर्फ कांवड़ यात्रा के दौरान नॉन वेज नहीं बनाते हैं. याचिकाकर्ता के वकील हुजैफा अहमदी ने कहा कि कांवड़ के दौरान मांसाहार न बनाने का सरकारी आदेश है. सभी ढाबे इसका पालन करते हैं. इस पर जज ने कहा, 'जो ढाबे साल भर शाकाहार परोसते हैं, उनकी बात अलग है. जो सिर्फ इस दौरान मांसाहार परोसना बंद करते हैं, उनके बारे में ग्राहक को पता होना चाहिए. हम सहमत हैं कि दुकानदार का नाम जरूरी नहीं है, लेकिन कोई तरीका होना चाहिए.उत्तराखंड सरकार ने क्या कहा?हुजैफा ने कहा कि दुकान के अंदर लाइसेंस लगा होता है. उसमें लिखा होता है कि यह लाइसेंस कैसे खाने के लिए मिला है. उत्तराखंड के वकील ने कोर्ट को बताया कि लाइसेंस और रजिस्ट्रेशन दोनों को दुकान पर लगाना अनिवार्य है.(निपुण सहगल के इनपुट के साथ)