जब अपने बयानों की वजह से विवाद में रहे जगदीप धनखड़, सरकार से लेकर विपक्ष तक, सब ने देखे तेवर

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संसद का मॉनसून सत्र सोमवार (21 जुलाई) से शुरू हो चुका है. सत्र की शुरुआत में ही उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने इस्तीफा देकर सभी को चौंका दिया. उन्होंने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए पद छोड़ा. उपराष्ट्रपति धनखड़ का कार्यकाल काफी चर्चा में रहा. वे अपने अपने मुखर व्यक्तित्व की वजह से जाने जाते हैं, लेकिन कई बार बयानों की वजह से विवाद में भी रहे.धनखड़ ने जनवरी 2023 में सुप्रीम कोर्ट की मूल संरचना सिद्धांत के पुनरावृत्ति के संदर्भ में एक बयान दिया था. इसको लेकर काफी विवाद हुआ था. उन्होंने कहा था, ''अगर संसद के बनाए कानूनों को अदालत रोकती है तो यह लोकतंत्र के लिए खतरा है.'' विपक्ष ने इस बयान को लेकर केंद्र सरकार को घेर लिया था. विपक्ष का कहना था कि यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप है. जब छात्र राजनीति को लेकर धनखड़ ने दिया बयान उन्होंने मार्च 2023 में शैक्षणिक संस्थानों और छात्र राजनीति पर बयान दिया था. धनखड़ ने कहा था कि कुछ विश्वविद्यालय देश विरोधी विचारधार का अड्डा बन चुके हैं. उनके इस बयान को जेएनयू और कुछ अन्य केंद्रीय विश्वविद्यालयों की ओर इशारा समझा गया.धनखड़ ने विपक्ष को लेकर क्या कहा थाधनखड़ ने राज्यसभा में व्यवधान से लेकर बिना चर्चा के विधेयक पारित होने के आरोपों तक, कई मुद्दों पर विपक्ष को आड़े हाथों लिया. उन्होंने खास तौर पर उन शीर्ष वकीलों पर निशाना साधा, जो विपक्षी दलों, खासकर कांग्रेस का प्रतिनिधित्व करने वाले राज्यसभा सदस्य भी हैं. जगदीप धनखड़ ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम को रद्द करने के उच्चतम न्यायालय के फैसले की कड़ी आलोचना की, जिसमें उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली को पलटने की कोशिश की गई थी.धनखड़ ने भारत के तत्कालीन चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की उपस्थिति में दोनों सदनों द्वारा लगभग सर्वसम्मति से पारित कानून को रद्द करने के लिए शीर्ष अदालत पर सवाल उठाया था. उन्होंने सांसदों की भी आलोचना करते हुए कहा था कि जब कानून को रद्द किया गया, तो सांसदों की तरफ से विरोध का एक स्वर तक नहीं उभरा.