सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (22 जुलाई, 2025) को भारतीय पुलिस सेवा (IPS) की एक महिला अधिकारी को निर्देश दिया कि वह अपने पति और ससुर से माफी मांगे, जिन पर उसने केस किया है और वे जेल में बैठ हैं. कोर्ट ने आईपीएस पत्नी को सख्त लहजे में यह भी निर्देश दिया है कि वह अपने पद और पावर का इस्तेमाल पति के खिलाफ नहीं करेंगी. कोर्ट ने माफीनाम को प्रतिष्ठित अंग्रेजी और हिंदी डेली न्यूजपेपर में पब्लिश करने का निर्देश दिया है.पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार आईपीएस अधिकारी 2018 से पति से अलग रह रही थीं. कोर्ट ने अपनी असाधारण शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए अलग रह रहे पति-पत्नी को शादी खत्म करने की अनुमति दी और एक-दूसरे के खिलाफ दायर कई दीवानी और आपराधिक मामलों को भी रद्द कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के उस फैसले को भी रद्द कर दिया, जिसमें पति को हर महीने महिला को 1.5 लाख रुपये गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया गया था.मुख्य न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने महिला आईपीएस अधिकारी और उनके माता-पिता को अलग रह रहे पति के परिवार से बिना शर्त माफी मांगने का निर्देश दिया. पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए 2015 में हुई शादी के 2018 में टूट जाने के बाद उनके बीच लंबी कानूनी लड़ाई का अंत करने का आदेश दिया.अनुच्छेद 142 सुप्रीम कोर्ट को अपने समक्ष लंबित किसी भी मामले में पूर्ण न्याय के लिए आवश्यक कोई भी आदेश जारी करने का अधिकार देता है. पीठ ने दोनों पक्षों की दलीलों पर गौर किया कि वे बेटी की कस्टडी के मामलों सहित सभी विवादों को सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझाना चाहते हैं और भविष्य में किसी भी मुकदमेबाजी से बचने और शांति बनाए रखने के लिए सभी लंबित मामलों का निपटारा करना चाहते हैं.बेटी की कस्टडी के मुद्दे पर पीठ ने कहा, 'बच्ची की अभिरक्षा मां के पास होगी. पिता... और उसके परिवार को पहले तीन महीनों तक बच्ची से मिलने का निगरानी में अधिकार होगा और उसके बाद बच्ची की सुविधा और भलाई के आधार पर... हर महीने के पहले रविवार को सुबह नौ बजे से शाम पांच बजे तक बच्ची के शिक्षण स्थल पर, या स्कूल के नियमों और विनियमों के तहत अनुमति के अनुसार, मुलाकात की जा सकेगी.'बेंच ने इस तथ्य पर भी विचार किया कि महिला स्वेच्छा से पति से किसी भी प्रकार के गुजारा भत्ते के अपने दावे को छोड़ने के लिए सहमत हो गई है. परिणामस्वरूप सुप्रीम कोर्ट ने पत्नी को प्रति माह 1.5 लाख रुपये का भरण-पोषण देने के हाईकोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया.पीठ ने अपने आदेश में कहा, 'दोनों पक्षों के बीच लंबी कानूनी लड़ाई को समाप्त करने और पूर्ण न्याय सुनिश्चित करने के लिए, दोनों पक्ष की ओर से एक-दूसरे के खिलाफ दायर सभी लंबित आपराधिक और दीवानी मुकदमे, जिनमें पत्नी, पति और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ भारत में किसी भी अदालत या फोरम में दायर मुकदमे शामिल हैं, लेकिन इन्हीं तक सीमित नहीं हैं, जैसा कि उल्लिखित है, को एतद्द्वारा रद्द और/या वापस लिया जाता है.'पीठ ने तीसरे पक्ष की ओर से उनके खिलाफ दायर उन मामलों को भी रद्द कर दिया, जिनके बारे में दोनों पक्षों को जानकारी नहीं थी. कोर्ट ने इस तथ्य पर विचार किया कि आईपीएस पत्नी की ओर से दायर मामलों के कारण पति और उसके पिता जेल में हैं. पीठ ने महिला अधिकारी और उनके माता-पिता को उनसे बिना शर्त माफी मांगने को कहा.माफीनामा एक प्रतिष्ठित अंग्रेजी और हिंदी दैनिक के राष्ट्रीय संस्करण में प्रकाशित करने का निर्देश दिया गया. पीठ ने महिला अधिकारी को निर्देश दिया कि वह आईपीएस अधिकारी के रूप में अपने पद और शक्ति का प्रयोग कभी अपने पूर्व पति के खिलाफ न करे.