क्या करते हैं भारत में मौजूद दूसरे देशों के दूतावास, असली और नकली का कैसे लगाएं पता?

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दिल्ली से सटे गाजियाबाद में किराए के एक घर में चार-चार फर्जी दूतावास का खुलासा होने के बाद सुरक्षा एजेंसियां सतर्क हो गई हैं. यूपी एसटीएफ ने फर्जी दूतावास चलाने के आरोप में हर्षवर्धन जैन को गिरफ्तार कर लिया है. इस शख्स ने जिन चार देशों के नाम पर ये फर्जी दूतावास खोले थे, उस नाम के देश तो दुनिया के नक्शे में ही नहीं हैं. इस घटना के बाद से लोगों के मन में सवाल तो उठता ही है साथ ही साथ यह जानने की भी जिज्ञासा होती है कि आखिर दूतावास क्या होते हैं. दूसरे देशों के दूतावास भारत में क्या काम करते हैं. इसका संचालन कौन करता है और असली व फर्जी का पता कैसे लगता है. चलिए इन सभी सवालों के जवाब जानने की कोशिश करते हैं. किसी दूसरे देश में कैसे बनता है दूतावासकिसी भी देश के लिए दूतावास उसकी विदेश नीति और अंतरराष्ट्रीय संबंधों का अहम हिस्सा होते हैं. जब दो देश आपस में राजनयिक संबंध स्थापित करते हैं तो वे एक-दूसरे के देश में दूतावास खोल सकते हैं. जिस देश को दूतावास खोलना होता है, वह मेजबान देश से अनुमति लेता है. यह अनुमति औपचारिक पत्रों और समझौतों के जरिए होती है. दूतावास का सारा खर्चा संबंधित देश की सरकार को उठाना होता है. यह पैसा उस देश के विदेश मंत्रालय या फिर विदेश विभाग के बजट से आता है. जिन देशों के पास अच्छा पैसा होता है, वे आलीशान दूतावास बनाते हैं. जबकि गरीब या छोटे देशों के दूतावास साधारण होते हैं.भारत में क्या काम करते हैं दूसरे देशों के दूतावासदूतावास का मुख्य काम दोनों देशों के बीच बातचीत और सहयोग को बढ़ावा देना होता है. इसके अलावा इनका प्रमुख कार्य वीजा देना, विदेशी धरती पर अपने देश के नागरिकों की मदद करना, शिक्षा, व्यापार, संस्कृति और विज्ञान के समझौतों और बातचीत को बढ़ावा देना, आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक गतिविधियों की जानकारी जुटाना, दोनों देशों के बीच समझौते व बातचीत का आयोजन करना शामिल होता है. फर्जी दूतावास का पता कैसे लगता हैइसके लिए पहले यह जानें कि फर्जी दूतावास आखिर कैसे खुलता है. आमतौर पर फर्जी दूतावास मानव तस्करी, ठगी या अवैध वीजा पासपोर्ट जारी करने के लिए खोले जाते हैं. ये फर्जी दूतावास आम लोगों को भ्रमित करते हैं और सारे अवैध काम करते हैं. वे असली दूतावास जैसा माहौल बनाते हैं और लोगों से मोटी रकम लेकर फर्जी दस्तावेज जारी करते हैं. इनका भंडाफोड़ या पता तभी लग पाता है जब नागरिक सतर्क होते हैं, उनको असली-नकली दस्तावेजों की पहचान होती है, कुछ गड़बड़ लगने पर कॉमनसेंस का इस्तेमाल करते हैं. इसके बाज मीडिया या सुरक्षा एजेंसियों के जरिए इनका पता लगता है. यह भी पढ़ें: दुनिया का ऐसा देश जहां इनकम के हिसाब से होता है ट्रैफिक चालान, जितनी ज्यादा सैलरी उतना बड़ा जुर्माना